
गंगा दशहरा 20 जून, रविवार को
– आज के दिन पृथ्वी पर गंगा आयी थी स्वर्ग से
– गंगा स्नान से होता है समस्त पापों का शमन
– दान से कटेंगे 10 प्रकार के पाप
भारतीय संस्कृति अपने आपमें अनूठी है, हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार प्रत्येक माह के व्रत त्योहार जयन्ती की विशेष महिमा है। विशिष्ट माह की विशिष्ट तिथियों पर देवी-देवताओं का प्राकट्य दिवस श्रद्धा भक्तिभाव से मनाए जाने की धाॢमक व पौराणिक परम्परा है। ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन राजा भगीरथ की विशेष तपस्या से गंगाजी का अवतरण स्वर्ग से पृथ्वी पर हुआ था। गंगाजी को समस्त नदियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को संवत्सर का मुख भी माना गया है। इस बार गंगा दशहरा 20 जून, रविवार को विधि विधानपूर्वक मनाया जाएगा। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 19 जून, शनिवार की सायं 6 बजकर 46 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 20 जून, रविवार को सायं 4 बजकर 22 मिनट तक रहेगी। गंगा दशहरा के पावन पर्व पर गंगा स्नान करने पर 10 जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। जिसमें 3 प्रकार कायिक (शारीरिक), 4 प्रकार के वाचिक, 3 प्रकार के मानसिक दोषों का शमन होता है।
गंगा-आराधना की विधि
इस पर्व पर माता गंगाजी की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए। पूजा के अन्तर्गत 10 प्रकार के फूल अॢपत करके 10 प्रकार के नैवेद्य, 10 प्रकार के ऋतुफल, 10 ताम्बूल, दशांग, धूप के साथ 10 दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। गंगा अवतरण से सम्बन्धित कथा का श्रवण, श्रीगंगा स्तुति एवं श्रीगंगा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
माँ गंगा का पवित्र पावन मंत्र— ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा।
गंगा दशहरा के पर्व पर स्ïनान-ध्यान करने के पश्चात् आज विशेष पर्व पर स्नान-ध्यान देव-अर्चना के पश्चात् दस ब्राह्मणों को 10 सेर तिल, 10 सेर जौ, 10 सेर गेहूँ दक्षिणा के साथ दान देने पर जीवन में अनन्त पुण्यफल की प्राप्ति होती है। आज के दिन रात्रि जागरण का भी विशेष महत्व है। गंगा अवतरण से सम्बन्धित कथा का श्रवण एवं श्री गंगा स्तुति, श्रीगंगा स्तोत्र का पाठ भी किया जाता है। अपनी दिनचर्या नियमित संयमित रखते हुए गंगा दशहरा का पावन पर्व हर्ष व उमंग के साथ मनाने से जीवन में सुख-समृद्धि-खुशहाली मिलती है।
यह है पौराणिक कथा
भागीरथ एक प्रतापी राजा थे। अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने तथा गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या आरम्भ की। गंगा उनकी तपस्या से प्रसन्न हुईं तथा स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हो गईं। पर उन्होंने भागीरथ से कहा कि यदि वे सीधे स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरेंगी तो पृथ्वी उनका वेग सहन नहीं कर पाएगी और वह रसातल में चली जाएंगी। यह सुनकर भागीरथ सोच में पड़ गए। गंगा को यह अभिमान था कि कोई उनका वेग सहन नहीं कर सकता। तब राजा भगीरथ ने भगवान शिवजी की उपासना शुरू कर दी। संसार के दुखों को हरने वाले भगवान शिवजी प्रसन्न हुए और भागीरथ से वर मांगने को कहा। भागीरथ ने अपना सब मनोरथ उनसे कह दिया। गंगा जैसे ही स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरने लगीं गंगा का गर्व दूर करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें जटाओं में कैद कर लिया। वह छटपटाने लगी और शिवजी से माफी मांगी। तब शिवजी ने उन्हें अपनी जटा से एक छोटे से पोखर में छोड़ दिया, जहां से गंगा सात धाराओं में प्रवाहित हुईं। इस प्रकार राजा भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके भाग्यशाली हुए। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है।
धार्मिक व पौराणिक मान्यता के अनुसार काशी में दशाश्वमेध घाट पर गंगा स्नान के पश्चात् श्री दशाश्वमेधेश्वर महादेव के दर्शन-पूजन की विशेष महिमा है।
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