निर्जला एकादशी –  वर्ष भर के समस्त एकादशी के व्रत का फल प्राप्ति की तिथि

निर्जला एकादशी – वर्ष भर के समस्त एकादशी के व्रत का फल प्राप्ति की तिथि


तिथि विशेष –

गंगा दशहरा, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मां गंगा का अवतरण हुआ था।


– व्रत से मिलता है जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति

भारतीय संस्कृति के हिन्दू धर्मशास्त्रों में प्रत्येक माह की तिथियों एवं व्रत त्यौहार का अपना खास महत्व है। प्रत्येक तिथियों का किसी न किसी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना से सम्बन्ध है। भारतीय सनातन धर्म में एकादशी तिथि अपने आप में अनूठी मानी गई है। प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि निर्जला एकादशी या भीमशयनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस बार ज्येष्ठ शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 20 जून, रविवार को दिन में 4 बजकर 22 मिनट पर लगेगी जो कि 21 जून, सोमवार को दिन में 1 बजकर 32 मिनट तक रहेगी। निर्जला एकादशी के समस्त धार्मिक अनुष्ठान 21 जून, सोमवार को सम्पन्न होंगे फलस्वरूप इसी दिन व्रत भी रखा जाएगा। निर्जला एकादशी की खास महिमा है, जैसा कि तिथि के नाम से विदित है कि तिथि विशेष के दिन सम्पूर्ण दिन निर्जल एवं निराहार रहकर भक्तिभाव के साथ पीले वस्त्र पहन कर भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना करना विशेष फलकारी रहता है। ऐसी मान्यता है कि निर्जला एकादशी के व्रत से वर्ष भर के समस्त एकादशी के व्रत का फल मिल जाता है। निर्जल एवं निराहार रहकर भक्तिभाव के साथ भगवान श्रीहरि विष्णु जी की हर्षोल्लास के साथ पूजा-अर्चना करने का विधान है।

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व्रत का विधान
व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा-स्नानादि करना चाहिए। गंगा-स्नान यदि सम्भव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् निर्जला एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। व्रत के दिन प्रात:काल सूर्योदय से ही अगले दिन सूर्योदय तक जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। व्रत का पारण दूसरे दिन स्नानादि के पश्चात् इष्ट देवी-देवता तथा भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा-अर्चना करने के पश्चात् किया जाता है।

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ब्राम्हण (भूदेव) किस वस्तुओं के दान से होंगे प्रसन्न
आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ दानादि भी किया जाता है। जल से भरा कलश, अन्न, मिष्ठान्न, चीनी, शक्कर, गुड़, फल, स्वर्ण, रजत, पंखा एवं अन्य नित्य प्रयोजन में आनेवाली वस्तुएँ दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को दान करनी चाहिए। निर्जला एकादशी का व्रत महिला व पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदायी है। मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है। भक्तिभाव से निर्जला एकादशी के व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, साथ ही जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।

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