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एक ऐसा कुआँ जहां से जाता हैं नाग लोक का रास्ता
हर साल सावन मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाने वाली तुलसीदास जयंती इस बार 15 अगस्त आज है। एक हिंदू संत और कवि के रूप में अपनी पहचान कायम करने वाले तुलसीदास की भगवान राम के प्रति बहुत श्रद्धा थी। तुलसीदास को महर्षि वाल्मिकी की संस्कृत में लिखी मूल रामायण को अवधी भाषा में लिखने का श्रेय जाता है, जिसे आज हम ‘रामचरितमानस’ के नाम से जानते हैं। तुलसीदास के बारे में कुछ महत्वपूर्ण और दिलचस्प बातें….
1. तुलसीदास ने अपने जीवन का ज्यादातर समय वाराणसी में बिताया। वाराणसी में गंगा नदी पर बना प्रसिद्ध ‘तुलसी घाट’ उन्हीं के नाम पर रखा गया है।
2. तुलसी दास ने भगवान हनुमान का प्रसिद्ध संकटमोचन मंदिर संग और भी मन्दिर स्थापित किया था। कहते हैं । संकट मोचन मंदिर में तुलसीदास को भगवान हनुमान के पहली बार दर्शन हुए थे। इसके बाद यहीं संकटमोचन मंदिर बनाया गया।
3. तुलसीदास आज बेहद लोकप्रिय अवधी भाषा में ‘हनुमान चालिसा’ की रचना साकेत नगर स्थित संकट हरण मंदिर में किया था ।
4. तुलसीदास ब्राम्हण परिवार से थे इनके पिता आत्माराम दुबे और माता हुलसी थी ।
5. तुलसीदास भगवान राम के भक्त थे। ऐसी मान्यता है कि कलयुग में इन्हें हनुमान सहित भगवान राम और लक्ष्मण के दर्शन हुए थे।
6. तुलसीदास ने ‘हनुमानाष्टक’ की भी रचना की थी। मान्यता है कि हनुमान जयंती पर संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करने से व्यक्ति को हर पीड़ा से मुक्ति मिलती है और उसके सभी संकट दूर होते हैं।
7. बनारस के मानस मंदिर में तुलसीदास का हस्तलिखित रामचरितमानस का अयोध्या कांड अब भी रखा हुआ है। इसकी देखरेख तुलसीदास के प्रथम शिष्य राजापुर निवासी गनपतराम के वंशज कर रहे हैं।
8. मान्यता है कि तुलसीदास ने रामचरित की संपूर्ण रचना 2 साल 7 महीने और 26 दिन में पूरी की।
9. अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?
तुलसी राम को पत्नी रत्नावली के इसी दोहे से वैराग्य हुआ और तुलसी दास कहलाये ।
10. अपने १२६ वर्ष के दीर्घ जीवन-काल में तुलसीदास ने कालक्रमानुसार निम्नलिखित कालजयी ग्रन्थों की रचनाएँ कीं –
रामललानहछू (1582), वैराग्यसंदीपनी (1612), रामाज्ञाप्रश्न (1612), जानकी-मंगल (1582), रामचरितमानस (1574), सतसई, पार्वती-मंगल (1582), गीतावली (1571), विनय-पत्रिका (1582), कृष्ण-गीतावली (1571), बरवै रामायण (1612), दोहावली (1583) और कवितावली (1612)।
सुनिये, तुलसी दास की पूरी कहानी
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