पढ़िए, श्रावणी एवं ऋषि पूजन – ब्राम्हणों महापर्व में शुमार है श्रावणी उपाकर्म

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सावन मास के अंतिम दिन यानि पूर्णिमा तिथि को जहाँ एक और बहनें भाइयो के कलाइयों पर रक्षा सूत्र बाँधती है तो वही ब्राम्हण समाज आज अपने श्रेष्ट श्रावणी पर्व मानते है। बनारस की गंगा घाटो पर सूर्योदय के साथ ब्राम्हणों का दल विभिन्न घाटो पर श्रावण उपाकर्म के लिए जुटे है, इस पूजा की शुरुआत प्राश्चित महा संकल्प से शुरू होता है जिसके बाद दस विध स्नान , सप्त ऋषि की पूजा और अंत में यज्ञोपवीत पूजन किया जाता है आज के दिन पूजे गये जनेऊ को ब्राम्हण पूरे साल बदल बदल कर पहनता है।

क्या है श्रावणी
इस पर्व की शुरुआत पवित्र सरोवर से होता है। जहाँ बिप्र द्वारा वर्षपर्यंत अपने द्वारा किये जाने और अनजाने पापों का प्राश्चित करता है। जिसके बाद ऋषि पूजन में ब्रह्म सूत्र (जनेऊ ) का पूजन किया जाता है । सरोवर स्नान के दौरान बिप्र गोबर, गोमूत्र, दूध, दही, घी, भस्म, मिट्टी, कुश, दूर्वा और अपामार्ग से स्नान करता । जिससे मनसा, वाचा, कर्मणा किसी तरह से हुए पापों से मुक्ति मिलती है। वर्ण व्यवस्था के अनुसार ब्राम्हणों का श्रावणी , श्रत्रिय का विजयादसमी ,वैश्यों का दीपावली और शुद्र का होली महा त्यौहार कहा गया है।

श्रावणी उपाकर्म के पक्ष
श्रावणी उपाकर्म के तीन पक्ष है- प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय। सर्वप्रथम होता है- प्रायश्चित रूप में हेमाद्रि स्नान संकल्प। स्नान के बाद ऋषिपूजन, सूर्योपस्थान एवं यज्ञोपवीत पूजन तथा नवीन यज्ञोपवीत धारण करते हैं। यज्ञोपवीत या जनेऊ आत्म संयम का संस्कार है। आज के दिन जिनका यज्ञोपवित संस्कार हो चुका होता है, वह पुराना यज्ञोपवित उतारकर नया धारण करते हैं । इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति आत्म संयमी है, वही संस्कार से दूसरा जन्म पाता है और द्विज कहलाता है।



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