हिन्दू सनातन धर्म में व्रत त्यौहार की परम्परा काफी पुरातन है। भारतीय सनातन धर्म में अजा/जया एकादशी तिथि अपने आप में अनूठी मानी गई है। धार्मिक मान्यता के अनुसार समस्त पापों का नाश करने वाली इस एकादशी व्रत का फल अश्वमेध यज्ञ से मिलने वाले फल से अधिक पुण्यफलदायी होता है। इस बार भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि अजा/जया एकादशी के रूप में मनाई जाएगी।
पौराणिक मान्यता
जो मनुष्य इस दिन भगवान ऋषिकेश की पूजा-अर्चना अथवा व्रत को करता है उसे वैकुंठ की प्राप्ति बतलाई गई है। अजा/जया एकादशी का महत्व भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा था।
भाद्रपद कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि 2 सितम्बर, गुरुवार को प्रात: 6 बजकर 22 मिनट पर लग रही है जो 3 सितम्बर, शुक्रवार को प्रात: 7 बजकर 45 मिनट तक रहेगी। स्मार्तजन-2 सितम्बर, गुरुवार को एवं वैष्णवजन-3 सितम्बर, शुक्रवार को रखेंगे व्रत।
ऐसे करें भगवान श्रीहरि की पूजा
व्रतकर्ता को एक दिन पूर्व सायंकाल स्नान ध्यान के पश्चात् जया एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए, और दूसरे दिन यानि जया एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना के पश्चात् उनकी महिमा में श्रीविष्णु सहस्रनाम, श्रीपुरुषसूक्त तथा श्रीविष्णुजी से सम्बन्धित मन्त्र ‘ॐ श्रीविष्णवे नम:, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः या ‘ॐ अच्युताय नम: का जप अधिक से अधिक संख्या में करना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहकर व्रत सम्पादित करना चाहिए। व्रत का पारण द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है।
व्रत के दिन क्या न करें
चावल का सेवन, दिन में शयन, हास-परिहास एवं व्यर्थ वार्तालाप।ऐसी मान्यता है कि जया एकादशी के व्रत व भगवान श्रीविष्णुजी की विशेष कृपा से सभी मनोरथ सफल होते हैं, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य की प्राप्ति होती है। अपने जीवन में मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है। आज के दिन ब्राह्मण/ जरूरतमंद को यथा समर्थ दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए।
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