काशी का सोरहिया मेला – जानिये सोलह अंक की विशेष महिमा 

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* सोरहिया मेला: 13 सितम्बर, सोमवार से प्रारम्भ
* 16 दिनों तक होती है भगवती माँ लक्ष्मीजी की विशेष पूजा-अर्चना
★ धन-सम्पत्ति, वैभव एवं ऐश्वर्य के साथ होती है सन्तान सुख की प्राप्ति
★ 16 दिनों तक चलने वाला सोरहिया मेला 13 सितम्बर, सोमवार से 29 सितम्बर, गुरुवार तक

भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में देवी-देवताओं की व्रत उपवास रखकर पूजा-अर्चना करने की धार्मिक व पौराणिकमान्यता है। इसी क्रम में भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से भगवती माँ लक्ष्मी ( maa lakshmi ) की उपासना का विशेष पर्व प्रारम्भ हो रहा है, जोकि आश्विन कृष्णपक्ष की अष्टमी पर्यन्त प्रतिदिन 16 दिनों तक चलता है। ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि भाद्रपदशुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि 13 सितम्बर, सोमवार को दिन में 03 बजकर 11 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 14 सितम्बर,मंगलवार को दिन में 01 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप 13 सितम्बर, सोमवार को अष्टमी तिथि का मान होने से भगवती लक्ष्मीजी की उपासना का पर्व इस दिन से प्रारम्भ हो जाएगा जो कि 16 दिनों तक लगातार 29 सितम्बर, गुरुवार तक चलेगा। काशी में यह ‘सोरहिया मेला'( sorahiya mela ) के नाम से प्रसिद्ध है, श्रीलक्ष्मीकुण्ड में स्नान का विधान है। ऐसी धार्मिक पौराणिक मान्यता है किभक्तिभाव से किए गए व्रत से धन-सम्पत्ति, वैभव व ऐश्वर्य के साथ ही सन्तान सुख की प्राप्ति भी होती है।

श्रीलक्ष्मीजी की पूजा व व्रत का विधान
व्रत के विधान में मिट्टी या चन्दन से निर्मित नवीन लक्ष्मी जी की आकर्षक व मनोहारी मूर्ति खरीद कर उसको स्थापना करनी चाहिए। विधि-विधान से 16 दिनों तक पूजा आराधना करनी चाहिए। व्रतकर्ता को चाहिए कि प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करके 16 बार 16 अंजलि जल से मुख हाथ धोकर पूजा अर्चना करनी चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-आराधना के पश्चात् 16 दिन के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

16 के अंक की विशेष महिमा 
इस व्रत के अंतर्गत आचमन करके भगवती लक्ष्मी के की 16 गाँठ का धागा, 16 दूर्वा, 16 अक्षत (चावल) का दाना व्रत की कथा सुनने के बाद महिलाएँ अर्पित करती है। 16 सूत का 16 गाँठों से युक्त सूत्र को धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करके हाथ के बाजू में धारण किया जाता है। 16 सूत्र को 16 गाँठ बांधते समय एक एक गाँठ बाँधते हुए ‘लक्ष्म्यै नमःमत्रत्येक गाँठ में एक मंत्र का उच्चारण करके 16 गाँठे बाँधी जाती है। पूजा के अंतर्गत भगवती लक्ष्मी के विग्रह के सम्मुख आटे का 16 दीपक बनाकर प्रज्वलित किए जाते हैं। माँ लक्ष्मीजी के वाहन हाथी की भी पूजा की जाती है व्रत के अन्तर्गत दूर्वा के 16 पलवलेकर 16 बोस की कथा सुनी जाती है। भगवती लक्ष्मीजी के 16 दिन के व्रत के पारण के पश्चात् ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर पुण्य अर्जित करना चाहिए। मान्यता के मुताबिक 4 ब्राह्मण तथा 14 ब्राणियों को घर पर निमंत्रित करके उन्हें भोजन कराना चाहिए। भोजनोपरान्त यथाशति यथासामर्थ्य दान-पुण्य करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। व्रत कर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। परनिन्दा नहीं करनी चाहिए। जीवनयों में शुचिता के साथ संयमित रहना चाहिए। इस व्रत को मुख्यतः महिलाएं ही करती हैं। यह व्रत नियमित रूप से 16 वर्ष तक किया जाता है। जिससे जीवन में सुख-समृद्धव खुशहाली बनी रहे।



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