जीवतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत : महाभारत काल से शुरू हुई इस व्रत की सम्पूर्ण जानकारी , जानिए व्रत में किन किन वस्तुओं की होती है जरूरत

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– अष्टमी तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 28, 2021 को शाम 06:16 बजे
– अष्टमी तिथि समाप्त – सितम्बर 29, 2021 को रात 08:29 बजे

– Jivitputrika Vrat 2021 Puja Vidhi, Muhurat जिवितपुत्रिका व्रत का आरंभ 28 सितंबर 2021 से होगा। 28, 29, 30 इन तीन दिन जिवितपुत्रिका व्रत मनाया जाएगा। 29 सितंबर के दिन बिना कुछ खाए, पिए, निर्जला जिवितपुत्रिका व्रत का पालन किया जाएगा। इसके ठीक अगले ही दिन 30 सितंबर को व्रत का समापन किया जाएगा।

जिवितपुत्रिका व्रत, जिसे जितिया व्रत भी कहा जाता है। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में इस व्रत को अधिक महत्व दिया जाता है। यह व्रत हिन्दू मास के अन्तर्गत आने वाले अश्विनी मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत को महिलाओं द्वारा अपनी संतान के सुख शांति के लिए रखा जाता है।

महाभारत काल से सम्बंध
जिवितपुत्रिका व्रत पूजा का आरंभ सप्तमी से शुरू हो जाता है। इसके बाद यह व्रत पूजा सप्तमी, अष्टमी, नवमी इन तीन दिनों तक चलता है। कुछ माताएं अपनी संतान के लिए यह व्रत निर्जला रखती हैं तो कुछ निराहार रख पाती हैं। पुराणों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पलने वाले शिशु को जीवनदान का अवसर दिया था इसलिए यह व्रत अपनी संतान की रक्षा के लिए रखा जाता है। इस व्रत के धारण करने पर संतान की रक्षा का दायित्व भगवान श्री कृष्ण के हाथों में आ जाता है।

व्रत से जुड़ी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि एक बार एक चील और एक मादा लोमड़ी नर्मदा नदी के पास एक हिमालय के जंगल में रहते थे। एक दिन इन दोनों ने कुछ महिलाओं को पूजा – पाठ करते और व्रत रखते हुए देखा। इन्हें देखने के बाद उनके मन में भी इस व्रत को रखने की इच्छा जागी और दोनों ने इस व्रत को रख लिया। उपवास के दौरान लोमड़ी को बहुत भूख लगी और वो भूख के कारण बेहोश हो गई और उसने चुपके से खाना खा लिया। वहीं दूसरी तरफ चील ने पूरे विधि – विधान से व्रत का पालन किया और उसे पूरा किया। इसके परिणामस्वरूप, लोमड़ी से जो बच्चा पैदा हुआ वो जन्म के कुछ दिन बाद ही मर गया और चील की संतान लंबी आयु के लिए धन्य हो गई।

व्रत से जुड़ी चीजे
चिड़चिड़ा का डंठल ( मुहँ साफ करने के लिए दातुन ), का आटा ,तरोई, नोनिया का साग (खाने के लिए), सत्पुतिया ( निगलने के लिए ) सत्पुतिया का पत्ता ( आहार निकालने के लिए ) लाल धागा ( गले में धारण करने के लिए )


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