जीवतिया व्रत आज , शाम को गंगा नदी तट संग लक्ष्मी कुंड पर होगी व्रतियों की भीड़

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पुत्र की रक्षा व लम्बी आयु के लिए अनेक व्रत-उपासना का विधान शास्त्रों में बताया गया है। इसी व्रतो में से व्रत आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत का उल्लेख है। ये व्रत दो दिवसीय होता है। अष्टमी तिथि को निराजल व्रत रखने के बाद नवमी तिथि (कल) को पारण (समाप्ति)किया जाता है।विवाहिता अपने संतान के सलामती के लिए माता जीवित्पुत्रिका का पवित्र सरोवर या गंगा तट पर कथा सुनती है पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित बिहार और झारखण्ड प्रदेश में त्यौहार सा दृश्य होता है बनारस के लक्ष्मी कुण्ड क्षेत्र माता का मंदिर है जहां सबसे ज्यादा भीड़ लगता है ।

बात शास्त्रों की करे तो इसमे वर्णन है कि इस व्रत के प्रभाव से पुत्र शोक नहीं होता। व्रत में स्त्रियां अपने पुत्रों के दीर्घायुष्य, आरोग्य व बल-बुद्धि वर्धन के लिए प्रार्थना करती हैं। नदी या सरोवर के तट पर भगवान सूर्य व भगवती जगदंबिका की नानाविधि से पूजन कर राजा जीमुतवाहन की कथा सुनी जाती है। पूजन के उपरांत दीपक लेकर पुत्र के कल्याण की कामना के साथ स्त्रियां घर जाती हैं। यह व्रत लोकाचारों में खर-जिउतिया नाम से प्रचलित है। इसका आशय यह है कि अखंड निर्जला व्रत रहते हुए दूसरे दिन पारण किया जाए। व्रती स्त्रियां आज बनारस के गंगा घाटों के अलावा लक्ष्मीकुंड, लोलार्क कुंड, ईश्वरगंगी तालाब आदि स्थानों पर एकत्र होकर पूजन करती हैं। लेकिन सबसे ज्यादा क्षधालू लक्सा स्थित लक्ष्मीकुंड पर होता है इस क्षेत्र में पूरे दिन मेला लगा रहता है। इसी दिन भगवती लक्ष्मी की आराधना व साधना के सोरहिया (16 दिनी) व्रत व सोरहिया मेले का समापन भी होता है। लोग महालक्ष्मी की मिंट्टी की प्रतिमा क्रय कर घर में पूजते हैं। महालक्ष्मी व्रत का भी पारण भी नवमी तिथि में ही किया जाता है।
संतान के दीर्घायु के लिए निर्जला व निराहार रहकर देवी भगवती व सोरहिया माता का स्तुति वंदन करने की विशेष तिथि आज है। 29 सितम्बर ,बुधवार को जीवित्पुत्रिका के कठिन व्रत की संकल्प के साथ महिलाएं लक्ष्मी कुण्ड पर एकत्र होकर पूजा- अर्चना करती है । इसके साथ ही कथा सुनती है । व्रत का पारण कल जिउतिया माता की पूजा व उसे धारण करे के बाद किया जाएगा। पूजा की विभिन्न छोटी-बड़ी सामग्रियों की खरीदारी के लिए मंगलवार को महिलाएं जुटी रही। शहर के तमाम इलाको संग लक्सा रोड से लेकर औरंगाबाद चौराहे तक और लक्ष्मीकुण्ड के आसपास पूजन- सामग्रियों की दर्जनों अस्थायी दुकानें सजी रहीं। इन दुकानों पर दोपहर बाद से खरीदारी करती महिलाओं की भीड़ जुटनी शुरू हो गयी थी। देर शाम तक खरीदारों की भीड़ बढ़ती ही चली गयी। दुकानों पर वैभव मुद्रा में सिंहासन पर विराजमान माता महालक्ष्मी के अलावा माता रानी की श्रृंगारिक छोटी-बड़ी विग्रह सजी रही। इसके अलावा जीवित्पुत्रिका व्रत के निमित्त विभिन्न पूजन सामग्रियों जैसे दीया, रुई की बाती और धूपबत्ती सहित माता रानी को अर्पित होने वाला सोलह श्रृंगार के सामग्रियों से पटी रही। सबसे अधिक खरीदारी विभिन्न रंगों की जिउतिया माला की हुई। इसमें नायलोन और कच्चे सूत की जिउतिया माला सहित काला गण्डा औरा नारा की भी खूब बिक्री हुई। पांच रुपये से लेकर पंद्रह रुपये तक कीमत की जिउतिया माला की खरीदारी में जुटी महिलाएं मोलभाव के साथ माला की क्वालिटी का भी खासा ध्यान रख रही थीं। इसके अलावा भगवान जी का वस्त्र, चुनरी और नारियल की भी हाथों-हाथ बिक्री होती रही। मंदिर में दर्शन-पूजन के साथ खरीदारी का क्रम देर रात तक चलता रहा। उधर, लंका में भी सड़क पर बने डिवाइडर पर जिउतिया माता की ढेरों अस्थाई दुकानें लगी रहीं। जीवित्पुत्रिका व्रत के साथ सोरहिया मेला का समापन हो जायेगा। मान्यता के अनुसार महालक्ष्मी माता के साथ सोरहिया माता की पूजा-अर्चना की जाती है और इसमें सोलह प्रकार की वस्तुएं अर्पित की जाती हैं।


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