कुमारी पूजन-अर्चन से मनोकामना होगी पूर्ण श्रीदुर्गा महानवमी गुरुवार, 14 अक्टूबर

नवरात्र में जगतजननी माँ जगदम्बा दुर्गाजी की पूजा-अर्चना की अनन्त महिमा है। नवरात्र के धार्मिक अनुष्ठान के पश्चात् कुमारी कन्याओं की पूजा-अर्चना करना अत्यन्त आवश्यक है। धर्मशास्त्रों में कुमारी कन्याओं को त्रिशक्ति यानि महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती देवी का स्वरूप माना गया है। नवरात्र में व्रतकर्ता को या देवी भक्त को कुमारी कन्या एवं बटुक की विधि-विधानपूर्वक पूजन करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। श्रीदुर्गाजी की अर्चना करके हवन आदि करने का विधान है। इस बार 14 अक्टूबर, गुरुवार को महानवमी का व्रत रखा जाएगा।

इस बार आश्विन शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 13 अक्टूबर, बुधवार को रात्रि 8 बजकर 08 मिनट पर लगेगी जो कि 14 अक्टूबर, गुरुवार को सायं 6 बजकर 53 मिनट तक रहेगी तदुपरान्त दशमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी, जो कि 15 अक्टूबर, शुक्रवार को सायं 6 बजकर 03 मिनट तक रहेगी महानवमी का व्रत 14 अक्टूबर, गुरुवार को रखा जाएगा। महानवमी का व्रत रखकर जगतजननी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाएगी। महाअष्टमी तिथि व महानवमी तिथि के दिन कुमारी व बटुक पूजन का विधान है। नवरात्र व्रत का पारण 15 अक्टूबर, शुक्रवार (दसमी) को किया जाएगा। इसी दिन दशमी तिथि सायं 6 बजकर 03 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप विजया दशमी का पर्व इसी दिन मनाया जाएगा।

मनोकामना की पूर्ति के लिए कुमारी पूजन
अपने मनोकामना की पूर्ति के लिए सभी वर्ण या अलग-अलग वर्ण की कन्याओं का पूजन करना चाहिए। देवीभागवत ग्रन्थ के अनुसार
ब्राह्मण वर्ण की कन्या शिक्षा जानार्जन व प्रतियोगिता,
क्षत्रिय वर्ण की कन्या- सुयश व राजकीय पक्ष से लाभ,
वैश्य वर्ण की कन्या आर्थिक समृद्धि व धन की वृद्धि के लिए,
गृह वर्ण की कन्या- शत्रुओं पर विजय एवं कार्यसद्धि हेतु पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
दो वर्ष से दस वर्ष तक की कन्या को देवी स्वरूप माना गया है, जिनको नवरात्र पर भक्तिभाव के साथ पूजा करने से भगवती प्रसन्न होती हैं।

किस वर्ष (उम्र ) की कन्या की होती है पूजा
धर्मशास्त्रों में दो वर्ष की कन्या को कुमारी,
तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति,
चार वर्ष की कन्या-कल्याणी,
पाँच वर्ष की कन्या- रोहिणी,
छः वर्ष की कन्या काली,
सात वर्ष की कन्या-चण्डिका,
आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी
नव वर्ष की कन्या- दुर्गा
दस वर्ष की कन्या सुभद्रा
के नाम से उल्लेखित हैं। इनकी पूजा-अर्चना करने से मनोवांछित फल मिलता है। कन्याओं का पूजन करने के पश्चात् उन्हें सात्त्विक व पौष्टिक भोजन करवाना चाहिए, तत्पश्चात् नववस्त्र, ऋतुफल, मिठात्र तथा नकद द्रव्य आदि उपहार स्वरूप देकर उनके चरणस्पर्श करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। भगवती की आराधना में अस्वस्थ, विकलांग एवं नेत्रहीन कन्याओं का पूजन वर्जित है। फिर भी इनकी उपेक्षा न करते हुए यथाशक्ति यथासामथ्य इनको सेवा व सहायता करते रहने पर जगत् जननी माँ की प्रसन्नता सदैव बनी रहती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली मिलती है।

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