254 साल पुरानी दुर्गा प्रतिमा , जो आज तक नहीं हो सकी विसर्जित, आखिर क्या है मामला

254 साल पुरानी दुर्गा प्रतिमा , जो आज तक नहीं हो सकी विसर्जित, आखिर क्या है मामला


शारदीय नवरात्र
तिथि – नवमी (अंतिम दिन )
दिनांक – 14 अक्टूबर , गुरुवार
देवी दर्शन – सिद्धदात्री देवी , गोलघर ​


पार्ट 2 – बनारस के शानदार 51 पंडालों में स्थापित देवी का दर्शन

बनारस के शानदार 51 पंडालों में स्थापित देवी का दर्शन


नवरात्रि के अंतिम दिन नवमी को सर्व सिद्धि के करिये दर्शन सिद्धि माता की


वो दिव्य स्थान जहाँ भीष्म ने काशी के तीन राजकुमारियों के हरण के बाद तप कर पाई थी शक्ति

शारदीय नवरात्र के अवसर पर पंडालो में माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है जिसे दशहरा के दिन नदियो में प्रवाहित किये जाते है लेकिन बनारस के मदनपुरा क्षेत्र में पिछले दो सौ चौवन साल से अपनी आभा मंडल के साथ अपने स्थान पर एक मिट्टी की मुर्ति पड़ी है ,जो इस वैज्ञानिक युग में बात चौकाने वाली है लेकिन पूरी तरह से सत्य | मिट्टी ,पुआल , बॉस और सुतली से बनी यह दुर्गा प्रतिमा इतने साल बाद भी अपने स्वरूप में कैसे है ये खोज का विषय हो सकता है ?
शिव की नगरी काशी में शारदीय नवरात्र में 2600 पंडालो का निर्माण विभिन्न संस्था द्वारा बड़े ही आकर्षक ठंग से कराया जाता है यही वजह है की भव्य दुर्गा प्रतिमा और पंडाल के सजावट के लिए शिव की नगरी को मिनी बंगाल का दर्जा प्राप्त है | बनारस में १८ वी शदाब्दी के मध्य से शुरू हुए दुर्गा प्रतिमा के स्थापना की परम्परा बंगाल के नवावो द्वारा शुरू किया गया था ,उस दौर में शहर के पाच बंगाली परिवार अपने घर में ही इस उत्सव को मानते थे , इन्ही परिवार में एक मुखर्जी परिवार भी सन 1767 में अपने घर में माँ की प्रतिमा स्थापित कराया चार दिन पूजा के विधि विधान से पूजा के बाद विसर्जन की तैयारी शुरू की जा रही थी क़ि उस रात स्वपन में देवी ने मूर्ति विसर्जित न करने की बात कही …स्वप्न पर विश्वास न करते हुए विसर्जन की तैयारी के बाद मूर्ति को उठाये जाने लगा तो तमाम प्रयास के बाद भी मुर्ति अपने जगह से नहीं हिली ..परेशान मुखर्जी परिवार एक बार फिर और अधिक भक्तो के सहयोग से माँ के इस प्रतिमा को उठाने का प्रयास किया लेकिन फिर भी सफलता नहीं मिली तभी उन्हें माँ के सपने की याद आई और यह निश्चय किया गया की माँ के आदेश का पालन किया जाय , तब से आज तक माँ की यह प्रतिमा अपने ही जगह पर ज्यूँ की तयु वही मौजूद है
परिवार के सदस्य इस सपने को माँ का आशीर्वाद समझ स्वीकार तो लिया लेकिन एक सवसे बड़ी दिक्कत ये आई की माँ का भोग और आरती के साथ नियम सयम का क्या होगा क्योकि पूरे साल इस तरह से पूजा और भोग संभव ही नहीं था , माँ ने पुनः स्वप्न में रोज चना – गुड के रूप में प्रसाद की बात कही | तब से लगातार मुखर्जी परिवार उनके दिये आदेश के अनुसार काम करते आ रहे है , हाँ ये अलग बात है की पुरे वर्ष में शारदीय नवरात्र पर माँ का बस्त्र बदलने के साथ ही रंग रोगन कराया जाता है
आस्था और विश्वाश के माँ की इस प्रतिमुर्ति में आज भी मुखर्जी परिवार तो पूरी श्रद्धा रखता ही है साथ ही बनारस के भक्त इस मंदिर रूपी घर में लगातार माँ के दर्शन को आते है और कुपा का बंदन करना नहीं भूलते , शारदीय नवरात्र के दौरान परिवार के सभी सदस्य यहाँ आते और पूजा के बाद वापस अपने घर चले जाते रहे लेकिन माता रानी आज भी अपने ही जगह पर विद्धमान है वो भी करुणा और वात्सत्य के साथ |


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