@banaras  – श्री कृष्ण जन्मोत्सव विशेष

@banaras – श्री कृष्ण जन्मोत्सव विशेष

जन्माष्टमी व्रत और उसके विधान
11 अगस्त, मंगलवार को स्मार्त एवं 12 अगस्त, बुधवार को वैष्णव का जन्माष्टमी
तिथि विशेष  / इन्नोवेस्ट डेस्क / 9 अगस्त

अखिल ब्रह्माण्ड के महानायक षोडश कला युक्त से भगवान् श्रीकृष्णजी की महिमा अपरम्पार है। भगवान् श्रीकृष्णजी की जन्मकुण्डली अपने आप में अद्भुत है। भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण के समय जन्मकुण्डली में चार प्रमुख ग्रह चन्द्रमा, मंगल, वृहस्पति व शनि उच्च राशि में , सूर्य, बुध व शुक्र स्वराशि में तथा राहु वृश्चिक और केतु ग्रह वृषभ राशि में विराजमान थे। धार्मिक व पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण का अवतार द्वापर युग के अन्तिम चरण में भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मध्यरात्रि 12 बजे वृषभ लग्न में मथुरा में हुआ था। इस दिन बुधवार व रोहिणी नक्षत्र से बना जयन्ती योग था। शास्त्रों के मुताबिक भगवान् श्रीकृष्ण के अवतार को पूर्ण अवतार माना गया है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की जन्माष्टïमी पर व्रत उपवास रखकर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाने पर अनन्त पुण्यफल की प्राप्ति के साथ ही जीवन में सुख-समृद्धिï व खुशहाली सदैव बनी रहती है।

 ज्योतिषविद् विमल जैन के अनुसार इन मुहूर्त में करें पूजन  
ग्रह नक्षत्रों के योग से जयन्ती योग पर षोडश कलायुक्त जगत योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण धरती पर अवतरित हुए थे। भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में हिन्दुओं में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लोकप्रिय विशिष्ट पर्व माना गया है।  इस बार जन्माष्टमी का पावन पर्व 11 अगस्त, मंगलवार को मनाया जाएगा। भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि 11 अगस्त, मंगलवार को प्रात: 9 बजकर 07 मिनट पर लगेगी, जो कि 12 अगस्त, बुधवार को प्रात: 11 बजकर 17 मिनट तक रहेगी। तत्पश्चात् नवमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी, जो कि 13 अगस्त, गुरुवार को दिन में 12 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। 12 अगस्त, बुधवार को सम्पूर्ण दिन सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना का विशिष्ट काल तथा अष्टमी तिथि 11 अगस्त, मंगलवार को मिल रही है। 11 अगस्त, मंगलवार को अष्टïमी तिथि तथा महानिशिथकाल  का योग रात्रि 11 बजकर 41 मिनट से रात्रि 12 बजकर 25 मिनट तक रहेगा, जो कि भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना के लिए विशेष फलदायी रहेगा। जिसके फलस्वरूप 11 अगस्त, मंगलवार को स्मार्तजन एवं 12 अगस्त, बुधवार को वैष्णवजन व्रत, उपवास रखकर भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।

ऐसे करें भगवान श्रीकृष्ण जी को प्रसन्न
व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि के पश्चात् इष्ट देवी-देवता की आराधना करके पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पूजन एवं व्रत का संकल्प लेना चाहिए। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की पावन बेला पर रात्रि में भगवान् श्रीकृष्ण का नयनाभिराम अलौकिक, मनमोहक शृंगार करना चाहिए। भगवान् श्रीकृष्ण के बालस्वरूप को झूला झुलाया जाता है। इस दिन शुभ बेला में पूजा  के अन्तर्गत नैवेद्य के तौर पर मक्खन, दही, धनिये से बनी मेवायुक्त पंजीरी, सूखे मेवे, मिष्ठान्न व ऋतुफल आदि अॢपत किए जाते हैं। सम्पूर्ण दिन उपवास रखकर रात्रि 12 बजे भगवान् श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के पश्चात् पूजा-आरती के बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इस दिन भगवान् श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की शृंगारिक अलौकिक झांकियाँ सजाकर रात्रि जागरण करने की भी परम्परा है। इस दिन व्रत, उपवास रखने पर जीवन के समस्त पापों का शमन होता है, साथ ही सुख-समृद्धि के साथ अनन्त पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

आखिर क्या थे श्री कृष्ण क्षत्रिय या यादव ..?

ये कथा है कृष्ण के लड्डू गोपाल कहे जाने की 
तिथि विशेष  / इन्नोवेस्ट डेस्क / 9 अगस्त

ब्रज भूमि में बहुत समय पहले श्रीकृष्ण के परम भक्त रहते थे.. कुम्भनदास जी । उनका एक पुत्र था रघुनंदन । कुंम्भनदास जी के पास बाँसुरी बजाते हुए श्रीकृष्ण जी का एक विग्रह था, वे हर समय प्रभु भक्ति में लीन रहते और पूरे नियम से श्रीकृष्ण की सेवा करते। वे उन्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाते थे, जिससे उनकी सेवा में कोई विघ्न ना हो।एक दिन वृन्दावन से उनके लिए भागवत कथा करने का न्योता आया। पहले तो उन्होंने मना किया, परन्तु लोगों के ज़ोर देने पर वे जाने के लिए तैयार हो गए कि भगवान की सेवा की तैयारी करके वे कथा करके रोज वापिस लौट आया करेंगे व भगवान का सेवा नियम भी नहीं छूटेगा। अपने पुत्र को उन्होंने समझा दिया कि भोग मैंने बना दिया है, तुम ठाकुर जी को समय पर भोग लगा देना और वे चले गए।रघुनंदन ने भोजन की थाली ठाकुर जी के सामने रखी और सरल मन से आग्रह किया कि ठाकुर जी आओ भोग लगाओ । उसके बाल मन में यह छवि थी कि वे आकर अपने हाथों से भोजन करेगें जैसे हम खाते हैं। उसने बार-बार आग्रह किया, लेकिन भोजन तो वैसे ही रखा था.. अब उदास हो गया और रोते हुए पुकारा की ठाकुरजी आओ भोग लगाओ। ठाकुरजी ने बालक का रूप धारण किया और भोजन करने बैठ गए और रघुनंदन भी प्रसन्न हो गया।
रात को कुंम्भनदास जी ने लौट कर पूछा कि भोग लगाया था बेटा, तो रघुनंदन ने कहा हाँ। उन्होंने प्रसाद मांगा तो पुत्र ने कहा कि ठाकुरजी ने सारा भोजन खा लिया। उन्होंने सोचा बच्चे को भूख लगी होगी तो उसने ही खुद खा लिया होगा। अब तो ये रोज का नियम हो गया कि कुंम्भनदास जी भोजन की थाली लगाकर जाते और रघुनंदन ठाकुरजी को भोग लगाते। जब प्रसाद मांगते तो एक ही जवाब मिलता कि सारा भोजन उन्होंने खा लिया।
कुंम्भनदास जी को अब लगने लगा कि पुत्र झूठ बोलने लगा है, लेकिन क्यों..?? उन्होंने उस दिन लड्डू बनाकर थाली में सजा दिये और छुप कर देखने लगे कि बच्चा क्या करता है। रघुनंदन ने रोज की तरह ही ठाकुरजी को पुकारा तो ठाकुरजी बालक के रूप में प्रकट हो कर लड्डू खाने लगे। यह देख कर कुंम्भनदास जी दौड़ते हुए आये और प्रभु के चरणों में गिरकर विनती करने लगे। उस समय ठाकुरजी के एक हाथ मे लड्डू और दूसरे हाथ का लड्डू मुख में जाने को ही था कि वे जड़ हो गये । उसके बाद से उनकी इसी रूप में पूजा की जाती है और वे ‘लड्डू गोपाल’ कहलाये जाने लगे।

शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी की शुद्ध तिथि
तिथि विशेष  / इन्नोवेस्ट डेस्क / 9 अगस्त

– क्या है नवमी विद्धा और क्यों है ये श्रेष्ठ
जन्माष्टमी पर्व भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि के समय में वृष के चंद्रमा में हुआ था अतः अधिकांश उपासक उक्त बातों में अपने अपने अभीष्ट युग का ग्रहण करते हैं । परंतु शास्त्र में इसका दो भेद है एक है सुद्धा और विद्धा। सुद्धा मतलब यह है कि उदय से उदय पर्यंत अष्टमी हो तो सूद्धा कहलाता है। और सप्तमी या नवमी युक्ता अष्टमी हो तो  विद्धा कहा जाता है। समान समान और न्यून अधिक भेद से तीन प्रकार है। यदि परंतु सिद्धांत रूप में तत्काल व्यापिनी अर्धरात्रि में रहने वाले तिथि को ही अधिक मान्य होती है। वह यदि 2 दिन का हो या दोनों ही दिन में ना हो तो सप्तमी विद्धा को सर्वथा त्याग कर नवमी विद्धा को ग्रहण करना चाहिए।

हमारे पुराणों में इसका वर्णन कुछ यूँ है…
– माधव का मत है कि अष्टमी दो प्रकार की है पहले जन्माष्टमी और दूसरी जयंती इसमें पहले केवल अष्टमी को ही माना गया है।स्कंद पुराण में भी यही बात कही गई है।- निर्णय सिंधु में कहा गया है कि यदि दिन या रात में कला मात्र में भी रोहिणी  हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि को मान लेना चाहिए।- भविष्य पुराण में कहा गया है कि भाद्रपद मास के कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को कहा गया है।   केवल जन्माष्टमी में ही उपवास करना है। यदि वह तिथि रोहिणी नक्षत्र युक्त हो तो जयंती नाम से कही जाती है।
– बन्ही पुराणों में कहा गया है कृष्ण पक्ष की अष्टमी यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती के नाम से कहा जाता है उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए।- विष्णु रहस्य में भी कहा गया है कि कृष्ण पक्ष अष्टमी में रोहिणी नक्षत्र युक्त भाद्रपद मास में हो तो जयंती नाम वाली कही गई है।-  विष्णुधर्मोत्तरा पुराण में भी कहा गया है यह योग आधी रात के बाद रोहिणी उदय होने पर शुद्ध आत्मा  स्नान कर यदि उसी दिन अगर उदय कालीन में अष्टमी हो तो भी उसी दिन को व्रत पालन कर लेना चाहिए ।- निर्णय सिंधु में एक और वाक्य कहा है कि जब पूर्व दिन या पर दिन रोहिणी नक्षत्र योग हो और अष्टमी का सहयोग हो तो उसी दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव पालन करना चाहिए।
– इसी बात को माधव ने भी यही कहा है कि जिस वर्ष में जयंती का योग जन्माष्टमी में हो तो जयंती में अन्तर्भूत नक्षत्र योग की प्रशंसा जानना चाहिए।
– मदन रत्न, निर्णयामृत, गौड़ और मैथिली मत भी यही है ।
– हिमाद्रि में वर्णन है कि रोहिणी  युक्त उपष्य (उपवास के तुल्य) सब पाप को नाश करने वाली है। यदि आधीरात के पूर्व हो या बाद हो एक कला से भी रोहिणी सहयोग हो तो उस दिन जन्माष्टमी व्रत अत्यंत शुभ है।
– अग्नि पुराण के अनुसार आधी रात में रोहिणी का योग अंश मात्र भी हो आधी रात्रि में ना हो परंतु चंद्रमा से ही रोहिणी नक्षत्र का योग हो तो उसी दिन ही जन्माष्टमी व्रत पालन करना  यह उत्तम है।
– विष्णुधर्मोत्तरा पुराण में भी कहा गया है आधी रात के समय में रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण अर्चन पूजन करने से अनेक पापों को नष्ट हो जाता है।

क्यों 12 अगस्त को ही मनाया जाए जन्माष्टमी  …. 
ब्रह्मांड पुराण में कहा गया है अभिजीत नामवाला नक्षत्र था जयंती नामवाली रात्रि विजय नाम का मुहूर्त होता है इसी में भगवान श्रीकृष्ण जनार्दन अवतरित हुए हैं। तो दिन में या रात में कला मात्र भी रोहिणी का योग हो अष्टमी संयोग हो बुधवार का दिन हो तो यह जन्म उत्सव के लिए सबसे ग्राह्य  है । इसमें रोहिणी का योग आधी रात में भी ही  तो व्रत महोत्सव के लिए उत्तम है। इन सभी पुराण मत के अनुसार इस वर्ष भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म उत्सव 12 अगस्त को मनाया जाए क्योंकि 12 अगस्त को बुधवार भी है उदया तिथि में अष्टमी है रोहिणी नक्षत्र रात्रि में स्पर्श कर रही है और इसी दिन भाद्रपद कृष्ण अष्टमी भी है इस सूत्र के अनुसार 12 तारीख को भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म उत्सव व्रत है बड़े आनंद से हर्ष उल्लास से व्रत महोत्सव मनाएं।ज्योतिष के विद्वानों ने भी रोहिणी योग अर्धरात्रि में उत्तम ,अर्ध रात्रि  के बाद रोहिणी योग मध्यम, और दिन के आदि में रोहिणी नक्षत्र अधम कहा गया है। वशिष्ट संहीता में वर्णन है कि यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अर्धरात्रि में अंश पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी यह योग से उसी दिन को ही मान लेना चाहिए। हम श्री कृष्ण जन्म का पालन करते समय कुछ अन्य बात भी ध्यान रखना चाहिए कि अगर दिन में अष्टमी हो और रात्रि के अंत में रोहिनियुक्त हो तो यह जयंती के लिए विशेष शास्त्र मत है।
साभार  – पं संजय शुक्ला शास्त्री

जानिए राधा की अनसुनी कहानी

जानिये आप क्या है … स्मार्त या वैष्णव
तिथि विशेष  / इन्नोवेस्ट डेस्क / 9 अगस्त

धर्मग्रंथों के अनुसार योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग के अंतिम चरण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को अर्धरात्रिकालीन ‘महानिशिीथकाल’ में रोहणी नक्षत्र के अन्तर्गत वृष लग्न में हुआ था। भारतीय काल गणना के अनुसार 5238 वर्ष पूर्व मथुरा में कंस के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण की जन्मतिथि होने के कारण भाद्रपद-कृष्णा- अष्टमी ‘श्रीकृष्णावतार अष्टमी’ के नाम से विख्यात हुई। सनातन धर्म की मान्यतानुसार सामान्य गृहस्थों एवं श्रद्धाुलुओं को अर्धरात्रिकालीन अष्टमी के दिन व्रत रखना चाहिए। सामान्य गृहस्थजन (स्मार्त) दिन में उपवास रखकर अर्धरात्रिकालीन ‘महानिशीथकाल’ में श्रीकृष्णजी का आविर्भावोत्सव मनायें। इससे उन्हें शास्त्रोक्त पुण्यफल प्राप्त होगा। वैष्णवों के लिए सप्तमी से संयुक्त अष्टमी में जन्माष्टमी का व्रतोत्सव करना सर्वथा निषिद्ध है। इसी कारण दीक्षाप्राप्त वैष्णव अपने संप्रदाय के नियम का पालन करते हुए अष्टमी के ‘उदयातिथि’ होने वाले दिन श्रीकृष्णजन्माष्टमी का व्रत और उत्सव करते है । साधु-संन्यासी और सन्तजन भी इसी सिद्धांत के अनुरूप 11 अगस्त, मंगलवार को स्मार्तजन एवं 12 अगस्त, बुधवार को वैष्णवजन व्रत,उपवास रखकर भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। जिन लोगों ने किसी वैष्णव गुरु से दीक्षा नहीं ली है और वे सनातम धर्म के अनुयायी किसी अन्य सम्प्रदाय (शैव, शाक्त, गाणपत्य और सौर) को मानने वाले हैं, वे सभी ‘स्मार्त’ की श्रेणी में आएंगे। जिन भक्तों ने किसी वैष्णव गुरु से दीक्षिा (कण्ठी) ले ली है वे वैष्णवों’ की श्रेणी में आयेंगे। शास्त्रों का निर्देश है कि हर व्यक्ति को निज सम्प्रदाय के सिद्धांतानुसार व्रत रखना चाहिए। तभी व्रत सफल होता है और उसका सम्पूर्ण पुण्यफल प्राप्त होता है।

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