
आज शरद पूर्णिमा है सनातन धर्मंब्लाम्बी आज के दिन खास होता है ये व्रत रखते है साथ ही आज रात चन्द्रमा के प्रकाश में खीर रखा जाता है आज ही के दिन भगवान् श्री कृष्ण गोपियों संग महा रास रचाया था बंगीय समाज आज कोजागरी पर्व मानते है। कार्तिक माह 21 से शुरू होगा लेकिन 19 को स्नान दान की पूर्णिमा के साथ ही मास र्पयत स्नान यम नियम विधान और दीपदान शुरू हो जाएगा जो कार्तिक पूर्णिमा पर 25 नवंबर को विराम पाएगा। कार्तिक के पहले दिन से ही पितरों के नाम से आकाशदीप भी जलाया जाएगा।
शरद यानि जागृति, वैभव, उल्लास और आनंद का मौसम। गदलेपन से मुक्ति का प्रतीक। गोस्वामी तुलसीदास भी शरद ऋतु पर मोहित होकर कहे थे कि-‘वर्षा विगत शरद ऋतु आई, देखहुं लक्ष्मण परम सुहाई।’ मौसम का राजा बसंत है, लेकिन दीर्घ जीवन की कामना करते पुरनिये नौ बसंत नहीं सौ शरद् मांगते हैं। वैदिक वांग्मय भी सौ शरद की बात करता है-‘जीवेम् शरद: शतम्।’ ऐसे में शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा की बात भी निराली है। यूं तो अमावस्या और पूर्णिमा का चक्र बाराहमासा है, लेकिन आश्विन पूर्णिमा खास है। इसे कोजागरी, आश्विन, कौमुदी या शरद पूर्णिमा कहा गया है।
पूर्णिमा की रात आसमान में चमकने वाला चांद तो वही होता है, लेकिन इस दिन चांद की खूबसूरती नजर लगने जितनी निखार पर होती है। इस रात सोलह कलाओं से युक्त चांद अपनी धवल चांदनी के साथ अमृत बरसाता है। घर-आंगन से लेकर मंदिरों तक बहती अमृत धारा से पूरित खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने को मन आकुल रहता है। इस खीर के सेवन से आरोग्य सुख की प्राप्ति होती है। साथ ही दमा और शीतजनित बीमारियां दूर करने में यह विशेष लाभकारी माना गया है। चांद की चांदनी को दुग्धपान का आस्वाद लेते निहारना सभी के मन को बेहद भाता है। इस दिन का इंतजार पूरे साल किया जाता है। इस बार शरद पूर्णिमा 27 अक्टूबर, सोमवार को अश्वनी नक्षत्र में पड़ा है।
कोजागरी या शरद पूर्णिमा स्नान व्रत-पूजन अनुष्ठान सोमवार को होगा। पूर्णिमा की रात लक्ष्मी व कुबेर पूजन का विधान है। लक्ष्मी देखेगी, कौन जाग रहा है : कहा जाता है पूर्णिमा की रात देवी महालक्ष्मी चंदल्रोक से पृथ्वीलोक पर भ्रमण करने आती हैं। वह यह देखती हैं कि कौन जाग रहा है। इसलिए इस रात से जागरण का विशेष महात्म्य जुड़ा है। जो जागता है उस पर देवी मेहरबान होती हैं और समस्त मनोकामनाएं पूरी करती हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार शरद में ही भगवान कृष्ण ने वृंदावन में सोलह हजार गोपियों संग महारास रचाया था। हर गोपी को यह अहसास था कि कृष्ण उसके साथ नृत्य कर रहे हैं। इस रास में ग्वाल-बाल, देवी-देवता सब एक रस थे और प्रकृति, मनुष्य, जड़-चेतन सब एक प्राण थे।
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