
कार्तिक मास : 21 अक्टूबर से 19 नवम्बर तक
भगवती श्रीलक्ष्मीजी व भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना का विशिष्ट माह
कार्तिक मास में दीपदान से आरोग्य व सौभाग्य की प्राप्ति
धार्मिक व पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार हिन्दू धर्म में कार्तिक मास को अत्यन्त पावन मास माना गया है। धर्म उत्सव की शृंखला इसी मास से प्रारम्भ होती है। इस बार कार्तिक मास 21 अक्टूबर से प्रारम्भ होकर 19 नवम्बर तक रहेगा। ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि शरद पूर्णिमा से ही भगवती श्रीलक्ष्मीजी की महिमा में उनकी आराधना के साथ दीपदान करके कार्तिक मास के यम-संयम-नियम एवं धार्मिक अनुष्ठान प्रारम्भ हो जाते हैं। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि कार्तिक मास के समान कोई दूसरा मास नहीं है, सतयुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।
स्कन्दपुराण के अनुसार यह मास लक्ष्मी प्रदाता, सद्बुद्धिदायक एवं आरोग्यप्रदायक माना गया है। वर्ष के द्वादश मास में कार्तिक मास को ही धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष को देने वाला माना गया है। काॢतक मास भगवान श्रीविष्णुजी व श्रीलक्ष्मीजी को समर्पित है। कार्तिक मास में तुलसीजी व पीपल वृक्ष की पूजा की जाती है। इस मास में यमदेव को प्रसन्न करने के लिए आकाशदीप प्रज्वलित किए जाते हैं। कार्तिक मास में एक माह तक आंवले के वृक्ष का संचय व पूजन करना फलदायी माना गया है। मासपर्यन्त भगवान विष्णुजी को आंवला अर्पित करके उनका पूजन करने पर लक्ष्मीजी की प्राप्ति बतलाई गई है।
कार्तिक मास में क्या करें—
काला तिल व आंवले का चूर्ण लगाकर स्नान करने से समस्त पापों का शमन होता है। कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य नियम का पालन करना चाहिए। भूमि पर शयन करें। ब्रह्ममुहूर्त में (सूर्योदय से पूर्व) उठकर स्नान व ध्यान करना चाहिए। गंगाजी में कमर तक जल में खड़े होकर पूर्ण स्नान करना चाहिए। सात्विक भोजन करना चाहिए। पीपल वृक्ष व तुलसी जी के पौधे की भी धूप-दीप से पूजा करें। काॢतक मास में नियमपूर्वक गंगा-स्ïनान करके व्रत रखकर भगवान विष्णुजी का पूजन करना विशेष पुण्य फलदायी माना गया है। मान्यता के मुताबिक श्रीकृष्ण-राधा का पूजन-अर्चन करने से प्रभु की असीम कृपा बरसती है। जिससे जीवन में सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
कार्तिक मास में क्या न करें?—
कार्तिक मास में व्रतकर्ता व साधक को अपने परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र किसी दूसरे का कुछ भी (अन्न) ग्रहण नहीं करना चाहिए। चना, मटर, उड़द, मूंग, मसूर, राई, लौकी, गाजर, बैंगन, बासी अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। साथ ही लहसुन, प्याज और तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए। शरीर में तेल नहीं लगाना चाहिए। काॢतक मास की द्वितीया, सप्तमी, नवमी, दशमी, त्रयोदशी व अमावस्या तिथि के दिन तिल व आंवले का प्रयोग नहीं करना चाहिए। काॢतक मास में स्नान व व्रत करने वालों को केवल कार्तिक कृष्ण (नरक) चतुर्दशी के दिन ही तेल लगाना चाहिए। मास के अन्य दिनों में तेल नहीं लगाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस माह में भगवान विष्णु की महिमा में व्रत रखने पर ग्रहजनित दोषों से मुक्ति मिलती है तथा संकटों का निवारण होता है। यथासम्भव स्वच्छ वस्त्र ही धारण करना चाहिए।
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