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देवाधिदेव महादेव की नगरी यूं तो हर रोज महाभैरव को पूजन-स्तवन और दर्शन में मगन रहती है।मगर अगहन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर उन्हें रिझाने के लिए विशेष जतन होते है । कहीं प्रदक्षिणा यात्रा निकाली गयी तो कहीं शोभायात्रा उठी , भय के भगवान भैरव की जयंती मनाने के लए आस्थावान पलक-पांवड़े बिछाए रहते हैं। केदारखण्ड से लेकर ओंकारेश्वर खण्ड तक हर ओर आसन जमाये महादेव के रूप भैरव बाबा का साज-श्रृंगार और महाआरती आज हुआ ।
भैरवनाथ भूत भावन भगवान शंकर के ही रूप हैं। धुनी रमाये हैं काशी के कोतवाल संग दण्डाधिकारी : अष्ट प्रधान भैरव में कपाल भैरव या लाट भैरव बाबा और रुद्र भैरव में काल भैरव बाबा को माना गया है। आराध्य के दोनों ही स्वरूप ओंकारेश्वर खंड में धुनी रमाएं हैं। कपाल भैरव सरैया स्थित कपाल मोचन तीर्थ पर स्थापित है। एक बारब्रम्हा के पाचवे सिर ने महादेव को अपशब्द कहा। इससे क्रोधित होकर महादेव के शरीर से कपाल भैरव प्रकट हुए और ब्रम्हा के पांचवें सर को दाहिने हाथ की तर्जना के नाखुन से काट दिया। ब्रम्हा का सर उनके हाथ से लटकता रहा। ब्रम्ह हत्या से बचने के लिए उन्होंने महादेव से उपाय पूछा तो भोले भण्डारी ने त्रैलोक्य भ्रमण की बात कही। भ्रमण के दौरान नारद जी मिले और कपाल भैरव को काशी जाने को कहा। काशी आकर इस स्थल पर जब वे पहुंचे तो उनके हाथ में लटकता ब्रम्हा जी का सिर गिर गया। इस पर बाबा कपाल भैरव नृत्य करने लगे। रुद्र भैरव में स्थान पाने वाले काल भैरव को महादेव के रुद्रावतार से प्रकट हुए। महाराजा दक्ष के यह कुंड में सती के भस्म होने के बाद जब युद्ध शुरू हुआ तो दक्ष की ओर से लड़ने वाले सैनिकों का रक्त गिरते ही वे फिर उत्पन्न हो जाते। उस समय रुद्रावतार लिए महादेव ने काल भैरव को भेजा और बाबा काल भैरव ने खप्पर में रक्त भरकर पीते है ।
शिव की नगरी काशी में भगवान भैरव के जन्म दिवस के अवसर पर बनारस के सभी भैरव मंदिर में भगवान् भैरव के दर्शन के लिए भक्तो की लम्बी कतारे लगी रही यु तो भगवान भैरव के आठ रूप है सब की अपनी अपनी मान्यताये है पर भैरव अष्टमी के दिन सभी भैरव मंदिर में भगवान भैरव के दर्शन से भक्तो का उद्धार होता है और लोगो को पापो से मुक्ति मिल जाती है । काशी कोतवाल कालभैरव मंदिर में भी भक्तों की भीड़ है ।
मान्यताओ के अनुसार भगवान् भैरव के दर्शन पूजा पाठ एवं आराधना से शनि की पीड़ा का निवारण होता है भैरव जी कलयुग के जाग्रत देवता है जिनके भक्ति भाव एवं स्मरण मात्र से ही मनुष्य की सभी समस्याए दूर होती है और इनका आश्रय लेने से भक्त निर्भय हो जाता है।
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