
वरिष्ठ पत्रकार हरिमोहन विश्वकर्मा की रिपोर्ट
– अखिलेश का एक और हिडेन एजेंडा हो सकता है ‘आप’
– आजाद से बातचीत फ्लाप होने के बाद सपा फेंक सकती है आखिरी दांव
– 50-60 सीटें साथी दलों को देने को कह चुके हैं अखिलेश
– 10 सीटों पर बन सकती है केजरीवाल से बात
लखनऊ। उप्र में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद भाजपा के कई विधायकों द्वारा समाजवादी पार्टी का दामन थामने के बाद अखिलेश यादव ने इसे अपनी छिपी हुई रणनीति बताया था। उसके बाद इस बात की संभावना और बढ़ गई है कि आम आदमी पार्टी से गठबंधन के ऐलान को भी अखिलेश यादव यूपी चुनाव से पहले भाजपा को अचानक झटका देने के लिए इस्तेमाल करेंगे। दरअसल, अखिलेश यादव ने भाजपा से आए विधायकों को शामिल करने को लेकर कहा था कि उनकी ये रणनीति भाजपा भांप नहीं पाई। अगर इसके बारे में थोड़ी सी भनक लगी होती, तो भाजपा डैमेज कंट्रोल में जुट जाती। इन इस्तीफों के पीछे अखिलेश यादव की ही रणनीति नजर आती है। क्योंकि, भाजपा से इस्तीफा देने वाले हर विधायक की भाषा तकरीबन एक जैसी ही थी। माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को अखिलेश यादव अपने चुनावी तरकश के आखिरी तीर के रूप में आगे की परिस्थितियों को देखते हुए इस्तेमाल करेंगे।
यूपी चुनाव 2022 के लिए आम आदमी पार्टी ने राज्यसभा सांसद संजय सिंह को यूपी प्रभारी बनाया था। यूं तो अभी तक आम आदमी पार्टी सभी सीटों पर अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने का दम भर रही है। लेकिन चुनाव की तारीखों के ऐलान से करीब दो महीनों पहले ही संजय सिंह ने अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। इससे पहले भी संजय सिंह कभी पंचायत चुनावों में हुई धांधली तो कभी मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के बहाने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की कड़ियों को मजबूत करने की कोशिशों में जुटे रहे थे। यूपी चुनाव 2022 की तारीखों के ऐलान के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि जल्द ही आम आदमी पार्टी के साथ भी समाजवादी पार्टी की बातचीत फाइनल हो सकती है। यह अलग बात है कि एक इंटरव्यू में संजय सिंह ने कहा है कि हम 403 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं। हम समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन चाहते थे या नहीं, इसका समय बीत चुका है।
जातीय समीकरणों को सुधारने के लिए अखिलेश यादव पहले ही कई छोटे सियासी दलों से गठबंधन कर चुके हैं। आसान शब्दों में कहा जाए तो बड़े दलों को छोड़कर छोटी सियासी पार्टियों से गठबंधन के अपने फॉर्मूले को अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल सिंह यादव से आशीर्वाद लेकर और मजबूत किया है। चंद्रशेखर आजाद से हुई मुलाकात भी इसी नजरिये से देखी जा रही थी। लेकिन आजाद समाज पार्टी के साथ ये बातचीत गठबंधन में तब्दील नहीं हो सकी। अब देखा जाए तो सूबे में भाजपा, बसपा और कांग्रेस से इतर एक ही छोटा दल बचा हुआ है और वो है आम आदमी पार्टी। अखिलेश यादव किसी भी हाल में समाजवादी पार्टी को भाजपा के सामने कमजोर नहीं दिखाना चाहते हैं तो सवाल खड़ा होना लाजिमी है कि क्या आम आदमी पार्टी भी अखिलेश यादव की गठबंधन पॉलिटिक्स से जुड़ेगी? अभी भी क्या ये गुंजाइश बाकी है ?
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