मायने अपर्णा के बगावत की, आखिर क्यों अलग की अपनी राहें ?

मायने अपर्णा के बगावत की, आखिर क्यों अलग की अपनी राहें ?


– कृष्ण कुमार द्विवेदी

लम्बे समय से चल रहा अखिलेश-अपर्णा का शीतयुद्ध
शिवपाल की समझाइश भी रही बेअसर
मुलायम ने एक रखा,पर अखिलेश से न संभला परिवार
शिवपाल के भी असंतुष्ट होने की खबरें

लखनऊ। मुलायम परिवार की छोटी बहू अपर्णा यादव के बुधवार को भगवा पार्टी में शामिल होने के बाद अखिलेश यादव ही नहीं, मुलायम सिंह यादव की परिवार पर ढीली होती पकड़ का साफ़ संकेत है। वहीं अपर्णा यादव के समाजवादी पार्टी छोड़ते समय शिवपाल सिंह सहित अन्य सदस्यों की राय को नजरंदाज कर भगवामयी होने के बाद यह भी चर्चाएं हैं कि वे भी मेनका गांधी की राह चल रहीं हैं और आगे जाकर अगर कहीं वे भाजपा के लिए अप्रासंगिक सिद्ध हुईं तो उन्हें भी मेनका की तरह वनवास न झेलना पड़े। लेकिन इन सब बातों से इतर फिलहाल भाजपा ने मुलायम परिवार में सेंध लगाकर मतदान से पहले अखिलेश यादव पर मनोवैज्ञानिक बढ़त तो हासिल की ही है। पुराने समाजवादियों और मुलायम सिंह समर्थकों को भी यह अफसोस है कि बेबस सपा संरक्षक यदुवंश को इस तरह बिखरते हुए देखने को बस विवश नजर आ रहे हैं। जबकि अखिलेश समर्थकों का दावा है कि अपर्णा यादव के भाजपा में जाने से सपा पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा?
अपर्णा यादव ने भाजपाई बनते हुए कहा कि वह राष्ट्रवाद के लिए भाजपा में आई हैं। उन्होंने बताया कि भाजपा से वह बहुत दिनों से प्रभावित रही हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यों से भी उन्हें प्रेरणा मिली है। जाहिर है कि अब अपर्णा यादव ऐसे उवाच भाजपा के पक्ष में प्रदेश में देती नजर आएंगी।
उत्तर प्रदेश का अपना बड़ा राजनीतिक घराना अथवा घर छोड़कर मुख्य राजनीतिक दुश्मन दल में सैनिक की भूमिका में जा खड़ी अपर्णा यादव का भाजपा में आगे भविष्य क्या होगा! इसके लिए तो अभी आने वाले समय का इंतजार करना होगा?
मुलायम सिंह यादव के परिवार में मचा हुआ घमासान कई वर्षों से थमने का नाम नहीं ले रहा है? इससे पहले सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने अखिलेश यादव एवं उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच के महासंग्राम को पूरे देश, प्रदेश ने नंगी आंखों से देखा है। एक मंच पर मुलायम सिंह यादव के मौजूद रहने के बावजूद भी जिस तरह से चाचा- भतीजे के बीच में रिश्तों का कत्ल हुआ था उसे समाजवादी शायद ही कभी भूल पाएं? यह अलग बात है कि कई वर्षों बाद अब चाचा -भतीजे एक सुर में भाजपा को प्रदेश की सत्ता से हटाने के लिए एक साथ नजर आ रहे हैं, लेकिन यहां भी असंतोष की चर्चाएं हैं?
अपर्णा ही नहीं उनके साथ परिवार की राजनीतिक विरासत को तिलांजलि देकर भाजपा का आंचल थामने वाले और भी मुलायम परिवार के सदस्य हैं। ये सारी घटनाएं इस बात का संकेत देती हैं कि कहीं न कहीं अखिलेश यादव अपने परिवार को एकजुट करने के मामले में असफल हुए हैं? उन्हें इसे आगे रोकने के लिए मुलायम बनना ही पड़ेगा। जैसे मुलायम सिंह यादव ने तमाम विपरीत परिस्थितियों में समाजवादी पार्टी का गठन करते हुए अपने परिवार को हमेशा एकजुट रखा और सत्ता पर बार-बार आसीन भी होते रहे, ऐसे में यदि अगर आज मुलायम परिवार बिखर रहा है तो उसको संभालने की जिम्मेदारी अखिलेश यादव पर ही है? ऐसी घटनाएं अखिलेश यादव के राजनैतिक रथ की गति को गौण कर देती हैं। जहां तक सवाल है अपर्णा यादव का तो, सियासी तौर पर सपा व अपने घर- परिवार को छोड़ना उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी हो सकता है। क्योंकि समाजवादी पार्टी ने 2017 में उन्हें कैंट लखनऊ से विधानसभा का चुनाव लड़ाया था। लेकिन वह चुनाव हार गई थी। ऐसे में अब जब प्रदेश में भाजपा एवं सपा के बीच में सीधे महासंग्राम जारी है, इस घड़ी में अपने परिवार को छोड़कर सपा के शत्रु दल के साथ जाकर वहां राष्ट्रवाद की बात करती अपर्णा आश्चर्यचकित तो जरूर करती हैं?
अपर्णा यादव यदि सपा में रहतीं तो समाजवादी पार्टी एवं अन्य नागरिकों में उनकी एक समर्पित बहू की छवि जरूर बनी रहती? लेकिन आज जब पूरे यादव परिवार अथवा सपा परिवार को एकजुट होने की जरूरत है ऐसे में उनका अपने जेठ अखिलेश यादव को छोड़ना कहीं ना कहीं परिवार में भारी खटास कारणों का संकेत देता है? बीच-बीच में खबरें मुलायम सिंह यादव के परिवार में कुछ न कुछ गड़बड़ की आतीं रहीं हैं लेकिन इसे ठीक करने के प्रयास परिवारिक स्तर पर शायद ठीक से नहीं हुए और उसकी परिणिति यह हुई कि अपर्णा यादव आज भाजपा में जाकर अर्पण हो गई‌।
अब भाजपा का यह प्रयास रहेगा कि वह अपर्णा यादव के भाजपा में शामिल होने को जोर से प्रचारित करें। प्रदेश के विधानसभा चुनाव में या आगे भाजपा अपर्णा यादव को कितना महत्व देगी इसके लिए समय का इंतजार करना होगा।
समाजवादी पार्टी के कुछ लोग अपर्णा के भाजपा छोड़ने के पीछे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके मधुर रिश्तों की दुहाई दे रहे हैं ? लेकिन कड़वा सच यही है कि अपर्णा यादव सारी दूरियों के बावजूद मुलायम सिंह यादव के परिवार की बहू हैं। उनका भाजपा में जाना समाजवादी पार्टी को सियासी कटघरे में जरूर खड़ा करेगा। भाजपा इसका कोई भी मौका नहीं छोड़ेगी। यही नहीं बसपा तथा कांग्रेस भी इस मुद्दे पर समाजवादियों पर हमलावर रहेंगे।
उधर एका के तमाम दावों के बावजूद खबरें शिवपाल यादव के भी असंतुष्ट बने रहने की हैं क्योंकि सूत्रों के अनुसार शिवपाल गठबंधन में 20 से कम सीटें नहीं चाहते थे। पारिवारिक एकता की खातिर बाद में वे महज 6 सीटों के लिए भी राजी हुए लेकिन खबरें यह हैं कि अखिलेश केवल शिवपाल के लिए जसवन्तनगर सीट देना चाह रहे हैं। अब कोई दूसरा राजनीतिक धमाका ना हो इसको रोकने की जिम्मेदारी भी अखिलेश यादव की है।
भाजपा ने तो बीते समय में कई मंत्रियों के सपा में जाने को लेकर जो दर्द झेला है, उस दर्द का सटीक उपचार भी कर दिया है। आगे की राह का रास्ता अखिलेश को ही तय करना है।



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