
– सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और चुनाव आयोग की पहल के बावजूद., सूचनाएं 4 बार देना अनिवार्य
– अधिकांश प्रत्याशी जता रहे अज्ञानता, दिखा रहे लापरवाही
– कम प्रसार वाले अखबारों में फार्म सी 1 का प्रकाशन माना जाएगा अवैध
लखनऊ। उप्र सहित 5 राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में आपराधिक व्यक्तित्व के उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर भारत निर्वाचन आयोग ने खास उपाय लागू किए हैं जिनमें ऐसे उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर उनके ऊपर चल रहे आपराधिक प्रकरणों की सार्वजनिक प्रचार माध्यमों से जानकारी जनता को देना प्रत्याशियों के लिए खासा सिरदर्द बन रहा है और अनेकानेक प्रत्याशी इसे लेकर गंभीर नहीं दिख रहे हैं। जबकि ऐसा करना उनके आगामी राजनीतिक कैरियर के लिए गंभीर संकट उत्पन्न कर सकता है।
खास बात यह है कि चुनाव आयोग के निदेर्शानुसार इन विधानसभा चुनाव में केवल प्रत्याशी को ही नहीं, उसकी पार्टी को भी अपने प्रत्याशी के बारे में इस तरह की जानकारी को सार्वजनिक करने की जिम्मेदारी दी गई है और पार्टी को प्रत्याशी की घोषणा के 48 अंदर के अंदर यह जानकारी जनता को अपनी पार्टी की बेवसाइट सहित टीवी और दो समाचार पत्रों के माध्यम से देनी है। पार्टी को प्रत्याशी के बारे में यह सूचनाएं 4 बार देना अनिवार्य है। इसी तरह प्रत्याशी को भी 3 बार अपने आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में यह सूचनाएं सार्वजनिक करना है और इसके लिए उसे भी दो समाचार पत्रों के साथ टीवी और सोशल मीडिया माध्यमों पर देना है।
बता दें कि प्रत्याशी को पूर्व में भी ऐसा करना अनिवार्य था लेकिन पार्टी को इससे छूट थी। प्रत्याशी को भी केवल एक बार ही यह काम करना था। एक जनहित याचिका पर भारत के उच्चतम न्यायालय ने 2018 में राजनीति के अपराधीकरण और शुचिता बनाए रखने के मद्देनजर यह आदेश दिये थे लेकिन इन पर वास्तविक अमल अब जाकर हो रहा है। खास बात यह है कि विधानसभा ही नहीं लोकसभा और राज्यसभा उम्मीदवारों को भी यह सूचनाएं चुनाव लड़ते समय आयोग को देनी होंगी।
चिंता यह है कि आयोग की सख्ती और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को अब भी विभिन्न दलों के प्रत्याशियों द्वारा गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है जबकि इन आदेशों के पालन में कोताही करने से प्रत्याशी का न केवल नामांकन रद्द किया जा सकता है बल्कि उसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवमानना का दोषी भी ठहराया जा सकता है। इस संबंध में चुनाव आयोग का कहना है कि यदि प्रत्याशी इस सम्बन्ध में निर्देशित फार्म सी1 दाखिल नहीं करता है तो सुप्रीम कोर्ट को इस सम्बन्ध में अवगत कराया जाएगा और उच्चतम न्यायालय इस पर संज्ञान लेगा। अनेक दलों के प्रत्याशियों से जब इस संबंध में जानकारी दी गई तो उन्होंने इस सम्बन्ध में ऐसे किसी निर्देश की जानकारी होने से ही इंकार कर दिया। जब ऐसे प्रत्याशियों को ऐसा न करने पर परिणामों की गंभीरता की जानकारी दी गई तो उन्होंने लापरवाही से कंधे उचका दिये। साफ है कि प्रत्याशी इस व्यवस्था को गंभीरता से लेकर नहीं चल रहे हैं। ऐसा भी देखा जा रहा है कि कुछ प्रत्याशी कम प्रसार वाले अखबारों में। फार्म सी1 छपवाकर अखबारों को मार्केट में न बंटवाकर खरीद ले रहे हैं ताकि उनके कुकर्मों की जानकारी आवाम तक न पहुंच सके। जबकि ऐसा करना उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का उल्लघंन माना जाएगा क्योंकि अदालत ने ऐसे समाचारपत्रों की सकुर्लेशन सीमा भी तय कर रखी है और तय सीमा से कम प्रसार वाले अखबारों में फार्म सी1 का प्रकाशन अवैध माना जाएगा।
जिस तरह प्रत्याशियों का इस मामले में रुख है उससे यह डर भी है कि कहीं अज्ञानता या लापरवाही में प्रत्याशी खुद ही अपने पैरों पर लाठी न मार बैठे। अगर ऐसा हुआ तो प्रत्याशियों के लिए अब पछताए होत का, चिड़िया चुग गई खेत वाली कहावत चरितार्थ होगी।
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