यूपी के नये मंत्रीमंडल की रेस में कौन है आगे, किनको दिया जाएगा रेस्ट

यूपी के नये मंत्रीमंडल की रेस में कौन है आगे, किनको दिया जाएगा रेस्ट

हरिमोहन विश्वकर्मा वरिष्ठ राजनैतिक विश्लेषक

– दिल्ली में चल रहा यूपी मंत्रिमंडल के चेहरों पर सघन मंथन
– 24 का रोड मैप होगी योगी 2.0 कैबिनेट
– उप मुख्यमंत्रियों के चेहरों को ले चल रहा चिंतन
– कैबिनेट के पुराने चेहरों में अनेक की बेदखली तय

लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत दर्ज कर 2024 में लोकसभा चुनाव का मार्ग प्रशस्त करने में जुटी भारतीय जनता पार्टी परिणाम घोषित होने के ठीक 15 दिन बाद 25 मार्च को शपथग्रहण कर रही है। कहा जा सकता है कि अब तक उप्र में योगी आदित्यनाथ 2.0 की तैयारियों में सिर्फ शपथग्रहण की तिथि सुनिश्चित है, अन्य कुछ नहीं। इस बीच मंत्रिमंडल के संभावित चेहरों को लेकर सोशल मीडिया पर रोज नयी सूचियां जारी हो रहीं हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ कितने मुख्यमंत्री होंगे, कैबिनेट में कौन चेहरे शामिल होंगे, यह सब सोशल मीडिया पर तो वायरल हो रहा है लेकिन पार्टी की ओर से कोई हिंट इस बारे में अब तक नहीं मिले हैं। ऐसा शायद इसलिए है, कि मंत्रिमंडल तैयार करने की पूरी कवायद गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में दिल्ली से चल रही है और नरेंद्र मोदी, अमित शाह की ऐन समय पर चौंकाने वाली कार्यशैली सभी को मालूम है।
इसी बीच सर्वाधिक कवायद उपमुख्यमंत्रियों की संख्या और नामों को लेकर है। कहा जा रहा है कि योगी को उप मुख्यमंत्रियों के रुप में तीन या चार सहयोगी दिए जा सकते हैं। इनमें वर्तमान मुख्यमंत्रियों केशव मौर्य और दिनेश शर्मा की जगह कुछ दिन पहले तक स्वतंत्र देव, असीम अरुण, बेबी रानी मौर्य, बृजेश पाठक और अरविंद शर्मा के नाम तैर रहे थे लेकिन अगर सूत्रों की मानी जाए तो केशव मौर्य एक बार पुनः उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पक्की करते नजर आ रहे हैं। जबकि दूसरे उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा का जाना तय माना जा रहा है। उनकी जगह स्वतंत्र देव के अलावा अरविंद शर्मा और स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले राजनीति में उतरने वाले असीम अरुण के नाम मजबूती के साथ उभर रहे हैं। वास्तव में मंत्रिमंडल के गठन के जरिए पार्टी जनता को संदेश देना चाहती है कि उसके यहां योग्यता की कद्र है और असरदार लोगों को ही मंत्री बनाया जाता है, इसीलिए इस बार योगी के नए मंत्रिमंडल में बड़ी तादाद में विषय विशेषज्ञ, पूर्व काबिल नौकरशाह और तपे तपाए राजनेताओं का सामंजस्य हो सकता है। इनमें पूर्व नौकरशाह राजेश्वर सिंह और असीम अरुण चुनाव जीत कर आए हैं तो पीएमओ में काम कर चुके अरविंद शर्मा पहले से मौजूद हैं। योगी के नए मंत्रिमंडल में इनको जगह मिल सकती है।
बीजेपी की कोशिश पिछड़ों और दलितों को भी उचित प्रतिनिधित्व देने की है, पार्टी को जिनका बड़ी तादाद में विपरीत परिस्थितियों में वोट भी मिला है। महिलाओं को वोटों की जीत में बड़ी भूमिका होने के चलते उन्हें भी उचित प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है।
पार्टी सहयोगी दलों का भी पूरा ख्याल रखना चाहती है, जो हर स्थिति में साथ खड़े थे। इनमें अपना दल (एस) के 12 तो निषाद पार्टी के 11 विधायक जीत कर आए हैं। दोनों दलों की मांग कम से कम दो मंत्री पद सहित और बड़े विभागों की है।
निषाद पार्टी अध्यक्ष डा. संजय निषाद कम से कम अपने लिए एक कैबिनेट तो एक राज्य मंत्री की मांग कर रहे हैं। अपना दल की मुखिया अनुप्रिया पटेल के पति आशीष पटेल भी इतने की ही मांग कर रहे हैं। माना जा रहा है कि संख्याबल को देखते हुए सहयोगियों के लिए दो कैबिनेट व दो राज्य मंत्री का पद छोड़ा जा सकता है।
इनके साथ सतीश महाना, जय प्रताप सिंह, आशुतोष टंडन, सूर्यप्रताप शाही, रमापति शास्त्री, जितिन प्रसाद, रवींद्र जायसवाल, गिरीश यादव, सुरेश पासी और नितिन अग्रवाल जैसे पुराने नाम तो हर हाल मे मंत्रिमंडल में बरकार रह सकते हैं। योगी मंत्रिमंडल के पूर्व में मंत्री रहे और सबसे वरिष्ठ विधायकों में से एक सुरेश खन्ना को इस बार विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है।
वास्तव में लोकसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। बीते साल सरकार और संगठन के तालमेल को लेकर उठे सवालों और बैठकों के दौर के दोहराव से भी बचना चाहती है। इन्हीं सब स्थितियों को देखते हुए यूपी में सरकार के गठन का इंतजार सामान्य से कुछ ज्यादा ही लंबा खिंच गया है।
यह भी संभव है कि चौंकाने वाली कार्यशैली के चलते अंतिम क्षणों में सारे कयास धरे रह जाएं और केंद्र चौंकाने वाले निर्णय लेकर कैबिनेट का रुख भी बदल दे। आपको भी 2017 में मनोज सिन्हा की ताजपोशी की जगह अंतिम क्षणों में योगी आदित्यनाथ को उप्र का ताज सौंपा जाना तो याद होगा।
बहरहाल, शपथग्रहण की तिथि के अलावा इस बार जो दूसरी चीज निश्चित लग रही है, वह योगी आदित्यनाथ 2.0 ही है, बाकी चेहरों को तब तक ईश्वर से प्रार्थना करते रहना चाहिए कि उनके साथ कोई राजनीतिक अनहोनी न हो।

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