
हिंदू धर्म के विविध पर्व-त्योहारों को मनाने के पीछे वैज्ञानिक सोच व तत्व-दर्शन निहित है। हर माह की लगभग सभी तिथि किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है। चैत्र माह में पड़ने वाली अष्टमी तिथि को अष्टमी तिथि के नाम से जाना जाता है। इस दिन मां शीतला माता की विधि-विधान से पूजा की जाती है। हिंदू पंचाग के अनुसार, होली के आठवें दिन शीतला अष्टमी या बसौड़ा मनाया जाता है । शास्त्रों के अनुसार शीतला अष्टमी के दिन विधि-विधान से पूजा करने से व्यक्ति के रोगों से छुटकारा मिलता है ।
देवी को बासी भोजन का भोग
शीतला अष्टमी के दिन मां को बासी भोजन का भोग लगाने की परंपरा है । इस दिन मां शीतला को मीठे चावल और बासी रोटी का भोग लगाते हैं । यह भोग एक दिन पहले यानि सप्तमी तिथि की रात को ही बना लिया जाता है । जहां मीठे चावल, गुड़, चावल से बनते हैं या फिर गन्ने के रस या गुड़ से बनाए जाते हैं । माँ शीतला के नैवेद्य में मीठी पूरी एवं चावल का भोग लगाया जाता है एवं सप्तमी के दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता | माँ शीतला रोगों का नाश करने वाली परम दयालु है, चेचक के रोग में भी माँ के आशीष से ही शीतलता प्राप्त होती है ।
कौन है शीतला देवी
शीतला माता एक प्रसिद्ध हिन्दू देवी हैं। स्कंद पुराण के अनुसार ब्रह्माजी ने सृष्टि को सेहदमंद और रोगमुक्त रखने का कार्य शीतला माता को दिया था। देवी शीतला स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। मान्यता है कि नेत्र रोग,ज्वर,चेचक,कुष्ठ रोग,फोड़े-फुंसियां तथा अन्य चर्म रोगों से आहत होने पर मां की आराधना रोगमुक्त कर देती है,यही नहीं माता की आराधना करने वाले भक्त के कुल में भी यदि कोई इन रोगों से पीड़ित हो तो ये रोग-दोष दूर हो जाते हैं। शीतला माता के स्वरूप के प्रतीकात्मक अर्थ हैं। मां के हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाड़ू) तथा नीम के पत्ते धारण किए हुए चित्रित किया गया है। शीतला को गर्दभ ( गदहा ) पर ही आसीन होती है। शीतला माता के संग ज्वरासुर ( ज्वर का दैत्य ), ओलै चंडी बीबी ( हैजे की देवी ), चैंसठ रोग, घेंटुकर्ण ( त्वचा-रोग के देवता) एवं रक्तवती (रक्त संक्रमण की देवी ) होते हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणुनाशक जल होता है।
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