
– 24 चुनाव में होगी मुख्यमंत्री की अहम भूमिका
– कट्टर हिंदुत्व और प्रखर राष्ट्रवाद योगी की पूंजी
– संघ की गुडबुक में अब शीर्ष पर हैं दोनों नेता
– हरिमोहन विश्वकर्मा
नयी दिल्ली। पिछले दस साल के अंदर 38 साल पुरानी भारतीय जनता पार्टी के अंदर उदित दो चेहरों ने भाजपा ही नहीं, देश की राजनीति की भी दिशा बदल डाली हैं। ये चेहरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दुबारा उप्र की सत्ता विजित करने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। भारतीय राजनीति, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के बारे में सामान्य जानकारी रखने वाले भी मानेंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ इस कदर मजबूत नेता के रुप में उभरे हैं कि एक दूसरे के पर्याय समझे जा रहे हैं। कहा यह भी जा सकता है कि दोनों अब एक दूसरे की राजनीतिक मजबूरी भी बन गये हैं। कारण, 24 में दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने के लिए मोदी को उप्र का संग चाहिए तो योगी को इतने बड़े प्रदेश को चलाने के लिए केंद्र की मदद चाहिए। हालांकि पिछले दो वर्षों में दोनों को एक दूसरे से बेहतर बताने और प्रतिस्पर्धी बताने का भी सुनियोजित अभियान चला लेकिन अब फिलहाल इस अभियान की भी हवा निकली हुई है।
उप्र में 10 मार्च को जो परिणाम आए हैं उसने योगी को डबल स्ट्रांग बना दिया है। सिवा भाजपा के चंद लोगों के, किसी को भी यह स्पष्ट अनुमान न था कि भाजपा इस मजबूती से सत्ता में लौटेगी। खुद भाजपा के स्वामीप्रसाद मौर्य जैसे अहम नेता इस आशंका में पार्टी छोड़ चुके थे कि भाजपा की दुबारा वापसी नामुमकिन है लेकिन योगी ने इसे मुमकिन बना दिया। अनेक विधायकों के विरुद्ध व्यापक असंतोष के बावजूद लोगों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया तो उसमें नरेंद्र मोदी के साथ योगी के व्यक्तित्व की भी भूमिका है। राज्य भर में यह स्वर सुना गया कि हम मोदी- योगी के नाम पर वोट दे रहे हैं। पुलिस और प्रशासन के व्यवहार को लेकर नाराजगी और विधायकों के विरुद्ध आक्रोश होते हुए भी बहुमत की चाहत यह हो कि योगी ही दोबारा मुख्यमंत्री बनें तो इसे सामान्य नहीं कहा जा सकता। खास बात यह कि योगी के मामले में यह चाहत राज्य तक सीमित नहीं है। उनके प्रति आकर्षण का स्वरूप अब राष्ट्रव्यापी है। योगी आदित्यनाथ की वर्तमान स्थिति, भाजपा और संघ के नेतृत्व के साथ उनके रिश्ते, उसमें उनका स्थान और भावी राजनीति में उनकी भूमिका से जुड़े तमाम सवालों के जवाब निहित हैं।
इस जीत के बाद हिंदुत्व विचारधारा की प्रखरता और मुखरता के योगी इस समय उसके बड़े प्रतीक बन गए हैं। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री होने के कारण जो कुछ नहीं बोल सकते, उसे योगी खुल कर बोलते हैं। भगवा वस्त्रधारी एक संन्यासी इस समय हर दृष्टि से भाजपा और संघ परिवार के नेतृत्व के लिए अनुकूल है। इसीलिए अब बंगाल से लेकर पूर्वोत्तर तक के चुनावों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद सबसे ज्यादा सभाएं योगी की होती हैं। नरेंद्र मोदी ने उप्र की जनसभाओं में योगी को उप्र के लिए उपयोगी बताकर यह साबित किया कि अब पार्टी में उनकी हैसियत क्या रहने वाली है। योगी आदित्यनाथ संघ और बीजेपी नेतृत्व की सोच को व्यवहार में परिणत करने वाले नेताओं में सबसे आगे हैं। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ऐसे दूसरे नेता हैं। पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की जगह हेमंता को मुख्यमंत्री बना कर नरेंद्र मोदी ने जो संदेश दिया, उसे समझें तो योगी आदित्यनाथ के बारे में उठाई गई सारी आशंकाएं ध्वस्त हो जाएंगी।
यह 2017 में योगी में जताए गये उस विश्वास का भी परिणाम था, जब विधायक न होते हुए भी योगी को उप्र जैसे बड़े सूबे का मुख्यमंत्री बनाया गया। अब योगी का हिंदुत्व और राष्ट्रीयता भाजपा और संघ का वह एजेंडा है जो नरेंद्र मोदी से नहीं कराया जा सकता, वह बेधड़क योगी से कराया जा सकता है। अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों से योगी की तुलना करें तो निष्कर्ष निकालना आसान हो जाएगा कि आखिर योगी क्यों इस समय नरेंद्र मोदी, अमित शाह के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय और मजबूत नेता बनकर उभर रहे हैं। ऐसा कौन नेता है जो यह पूछने पर कि दुनिया भर के विरोधी आपको चुनाव में हराना चाहते हैं, मुसलमान आपके विरोधी हैं आप कैसे जीतेंगे तो जवाब दे कि चुनाव 80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत का होगा और 20 प्रतिशत की हम परवाह नहीं करते? मुख्यमंत्री होते हुए भी बार-बार मुस्लिम आक्रांता शब्द का इस्तेमाल करने और इतिहास की गलतियों को ठीक करने का संकल्प व्यक्त करने वाला बीजेपी के राज्य नेतृत्व में कोई दूसरा नेता नहीं है।
स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर दोबारा आसीन होने के साथ योगी भाजपा और संघ परिवार की लिस्ट में राष्ट्रीय नेताओं की कतार में स्थापित हो चुके हैं। धीरे-धीरे वे इसी दिशा में निर्णय लेते और काम करते दिखाई देंगे। 2024 लोकसभा चुनाव की दृष्टि से योगी की लोकप्रियता का व्यापक महत्व है। यह भी अब कमोवेश स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी 75 वर्ष की राजनीतिक आयु के एजेंडे में रिलेक्स लेकर 24 में केंद्र में तिबारा प्रधानमंत्री आरूढ़ हो भी लें तो भी पार्टी को 29 के लिए मोदी का विकल्प चाहिए ही चाहिए। पार्टी और संघ के लिए यह वरदान की तरह ही हो सकता है कि वह विकल्प 24 में ही उपलब्ध है।
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