समरसता और दिलों को जोड़ने की क्रांति का साक्षी बना काशी विश्वनाथ कॉरिडोर

समरसता और दिलों को जोड़ने की क्रांति का साक्षी बना काशी विश्वनाथ कॉरिडोर



– दलित और आदिवासी महिला पुरुषों को साथ लेकर इन्द्रेश कुमार ने मंदिर में किया प्रवेश
– काशी विश्वनाथ से उठी लहर, छुआछूत मिटा, समता, समानता, समरसता आयी

वाराणसी । भले ही भारत के संविधान ने दलित समुदाय के मंदिर में प्रवेश की आज़ादी दी हो लेकिन कोई न उनको प्रेरित कर पाया और न ही उनका संकोच खत्म कर पाया। रामपंथ और विशाल भारत संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में भारत के इतिहास में समानता, बंधुत्व और प्रेम की क्रांति बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर से निकल कर पूरी दुनियां में गयी, यह तो आज दर्ज हो ही गया। मुसहर, धरकार के साथ अन्य दलित जातियों की महिलाओं ने पहली बार विश्वनाथ मंदिर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेता इन्द्रेश कुमार और रामपंथ के पंथाचार्य डॉ० राजीव श्रीगुरुजी के साथ प्रवेश किया। दलित बस्ती, मुसहर बस्ती में 15 दिन से महिलाएं दर्शन की तैयारी कर रही थीं। काशी के आस-पास के जिलों से भी आया दलित परिवार उत्साहित था। बाबा से मिलने के लिए 51 महिला-पुरुषों ने जब सुभाष भवन से हर हर महादेव और जय सियाराम का उदघोष करते हुए कूच किया तो नजारा देखने लायक था। अपने भगवान से मिलने की खुशी जो चेहरे पर थी, वह सैकड़ों वर्षों बाद दिखी। मन्दिर में जाना मना तो नहीं था, लेकिन इस समाज को कोई मंदिर ले जाने वाला भी तो नहीं था। संकोच में कि पता नहीं कोई क्या कह दे, मन्दिर ही नहीं जा पाए। अपने विश्वनाथ से मिल नही पाई, जबसे कॉरिडोर की चर्चा सुनी थी, मन में ये तो था कि कोई विश्वनाथ मंदिर ले जाता तो अच्छा होता। समाज सुधारक इन्द्रेश को जब यह बात पता चली तो उन्होंने विशाल भारत संस्थान और रामपंथ के पदाधिकारियों से अनुसूचित समाज को दर्शन पूजन कराने को कहा। मुसहर समाज के लोगों के लिए यह अद्भुत क्षण था, जब दर्शन करके दलित समाज के लोग बाहर निकले तो जौनपुर के किशन बनवासी रो पड़े। किशन ने कहा कि मुसहर समाज को अब तक बाबा से क्यों दूर रखा गया। आज हम धन्य हो गए, हमारा मुसहर समाज इन्द्रेश कुमार और डॉ० राजीव गुरुजी का सदा ऋणी रहेगा।

आजाद भारत की पहली घटना है, जब इतनी बड़ी संख्या में पहली बार दलित एवं अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं ने इन्द्रेश कुमार के नेतृत्व में बाबा विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश किया। काशी के धर्माचार्य महंत अवध किशोर दास जी ने काशी के संतों का प्रतिनिधितव किया।
इस अवसर पर इन्द्रेश कुमार ने कहा कि सामाजिक समरसता और समानता की क्रांति की शुरुवात हो चुकी है। अब गांव-गांव से चलो विश्वनाथ दरबार का नारा गूंजेगा और दलित, जनजातीय समाज अयोध्या काशी और मथुरा की ओर दर्शन पूजन करने को निकलेगा और संस्कृति को दुनियां में प्रसारित करेगा।
विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं रामपंथ के पंथाचार्य डॉ० राजीव श्रीगुरुजी ने कहा कि इतिहास में समानता और समरसता के साथ दलित समुदाय को सनातन धर्म रक्षक के रूप में इस घटना को याद किया जाएगा। दलित समुदाय की महिलाएं और बेटियों को कुछ भारत विरोधी लोगों ने बाबा विश्वनाथ और प्रभु श्रीराम से दूर कर दिया था, आज उस दूरी को मिटाने में सफलता मिली। बाबा सबके हैं, सभी धर्म जातियों के लोगों का अधिकार बाबा पर है, वो विश्व के नाथ हैं। मुसहर समाज की भक्ति बाबा के मन्दिर तक ले आयी।
दलित समाज की महिलाओं का नेतृत्व लक्ष्मीना देवी ने और मुसहर समाज का नेतृत्व किशन बनवासी ने किया। अल्पसंख्यक समाज का नेतृत्व नाजनीन अंसारी ने किया।

दर्शन करने वालों में अर्चना भारतवंशी, नजमा परवीन, इली भारतवंशी, पूनम, सुनीता, अर्चना, प्रियंका, पार्वती, ऊषा, निर्मला, हीरामनी, लालती, सुमन, सविता, धनेसरा, नीतू, किशुना, श्यामदुलारी, विद्या देवी, प्रभावती, उर्मिला, गीता, सरोज, रमता, शीला, ज्ञान प्रकाश, सूरज चौधरी, राजेश आदि लोग शामिल रहे।


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