
सनातन धर्म में चार नवरात्र के विधान है । जिनमें वासंतिक और शारदीय नवरात्र का चलन ज्यादा है । चैत्र महीने में आने वाले नवरात्र को वासंतिक नवरात्र और शारदीय नवरात्र में दुर्गा पूजा के रूप में ख्यात है । वासंतिक नवरात्र में नौ देवियों के स्वरूप के तौर पर नौ अलग अलग स्थानों में नौ देवियों के पूजन विधान और महत्व है। काशी में नौ देवियों को नौ गौरी के रूप में पूजन की मान्यता है यही वजह कि नौ अलग अलग मंदिरों में नौ दिनों के पूजनपाठ का क्रम जारी रहता है ।
मान्यताओं के अनुसार काशी में गौरी के नौ स्वरूप मौजूद हैं। इनमें से प्रथम दिन मुखनिर्मालिका गौरी का होता है, उनका मंदिर गायघाट के हनुमान मंदिर में है। द्वितीय ज्येष्ठा गौरी की मान्यता है, उनका कर्णघंटा क्षेत्र के सप्तसागर मोहल्ले में मंदिर है। तृतीय सौभाग्य गौरी का मंदिर ज्ञानवापी के सत्यनारायण मंदिर परिसर में माना जाता है जो अब विश्वनाथ कारिडोर का हिस्सा है। चतुर्थ श्रृंगार गौरी की मान्यता ज्ञानवापी मस्जिद के पृष्ठ भाग में है। पंचम विशालाक्षी गौरी मंदिर मीरघाट मोहल्ले में धर्मकूप के निकट है। षष्ठम ललिता गौरी मंदिर ललिता घाट के निकट है। सप्तम भवानी गौरी का मंदिर अन्नपूर्णा मंदिर के पास श्रीराम मंदिर में है। अष्ठम मंगला गौरी का मंदिर पंचगंगा घाट के निकट है। वहीं नवम महालक्ष्मी गौरी का मंदिर पर लक्ष्मीकुंड के समीप स्थित है।
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