पितरों की प्रसन्ता के लिये धर्म के नियमानुसार हविष्ययुक्त पिंड प्रदान आदि कर्म करना ही श्राद्ध है। श्राद्ध करने से पितरों कों संतुष्टि मिलती है और वे सदा प्रसन्न होते हैं । त्रिपिंडी काम्य ( विशेष कामना के लिए ) श्राद्ध है। इस श्राद्ध को करने का अधिकार विवाहित, अविवाहिता, विधवा और सधवा सभी व्यक्ति कर सकते है| तमोगुणी, रजोगुणी एवं सत्तोगुणी – ये तीन प्रेत योनियां हैं। पृथ्वी पर वास करने वाले पिशाच तमोगुमी अंतरिक्ष में वास करने वाले पिशाच रजोगुणी एवं वायुमंडल पर वास करने वाले पिशाच सत्तोगुणी होते है। इन तीनों प्रकार की प्रेतयोनियो की पिशाच पीडा के निवारण हेतु त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है । त्रिपिंडी श्राद्ध में ब्रम्हदेव, विष्णु, रुद्र तीन देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा पूर्वक पुजा की जाती है। त्रिपिंडी श्राद्ध में सात्विक प्रेत दोष निवारण के लिए ब्रम्ह पुजन करते है और यव (जौ )का पिंड दिया जाता है। राजस प्रेत दोष निवारण के लिए विष्णु पुजन करते है और चावल का पिंड दिया जाता है।तामसप्रेत दोष निवारण के लिए तिल्लिका ( तिल ) पिंड दिया जाता है और रुद्र पुजन करते है। यह पुजा सभी अतृप्त आत्माओंके मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाता है। त्रिपिंडी श्राद्ध में अपने गोत्र,पितरोंके नाम का नही लिया जाता। कारण कौनसी पितरों की बाधा है।इस के बारेमे शाश्वत ज्ञान नहीं होता।सभी अतृप्त आत्माओंकी मोक्ष प्राप्ति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करने का शास्त्र धर्मग्रंथ में बताया गया है ।
त्रिपिंडी श्राद्ध का आरम्भ करने से पूर्व किसी पवित्र नदी या तीर्थ स्थान में शरीर शुद्धि के लिये प्रायश्चित के तौर पर क्षौर कर्म कराने का विधान है। त्रिपिंडी श्राद्ध में ब्रह्मा, विष्णु् और महेश इनकी प्रतिमाएं तैयार करवाकर उनकी प्राण-प्रतिष्ठापुर्वक पूजन किया जाता है। ब्राह्मण से इन तीनों देवताओं के लिये मंत्रों का जाप करवाया जाता है।
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