
।। अक्षय तृतीया एवं भगवान परशुराम जयन्ती – 3 मई, मंगलवार को ।।
॥ अक्षय पुण्यफल के लिए किया जाता है पूजा-अर्चना और दान-पुण्य ।।
॥ भगवान श्रीविष्णु-लक्ष्मीजी की होगी विशेष आराधना।।
॥ अक्षय तृतीया पर किए गए दान से मिलता है अनन्त पुण्य ।।
।। तृतीया तिथि में रोहिणी नक्षत्र व शोभन योग का अनुपम संयोग ।।
भारतीय संस्कृति के हिन्दू सनातन धर्म में अक्षय पुण्यफल की कामना के लिए मनाये जानेवाला पर्व अक्षय तृतीया वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि के दिन हर्षोल्ïलास के साथ मनाने की परम्परा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया से ही त्रेतायुग का प्रारम्भ हुआ था। इस दिन भगवान परशुराम जी भगवान विष्णु के अंश के रूप में अवतरित हुए थे, जिसके फलस्वरूप भगवान परशुराम जयन्ती मनाने की पौराणिक परम्परा है।
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि अक्षय पुण्यफल की कामना के संग मनाये जाने वाला पर्व अक्षय तृतीया 3 मई, मंगलवार को मनाया जाएगा। वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि 2 मई, सोमवार को अर्धरात्रि के बाद 5 बजकर 19 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 3 मई, मंगलवार को अर्धरात्रि के बाद 5 बजकर 25 मिनट तक रहेगी। इस बार रोहिणी नक्षत्र 2 मई, सोमवार को अर्धरात्रि 12 बजकर 24 मिनट से 3 मई, मंगलवार को अर्धरात्रि के बाद 3 बजकर 18 मिनट तक रहेगा इसके साथ ही इस बार शोभन योग 2 मई, सोमवार को दिन में 3 बजकर 37 मिनट से 3 मई, मंगलवार को दिन में 4 बजकर 15 मिनट तक रहेगा। फलस्वरूप 3 मई, मंगलवार को तृतीया तिथि में रोहिणी नक्षत्र एवं शोभन योग का अनूठा संयोग बन रहा है, जो कि पूजा-अर्चना के लिए विशेष पुण्यफलदायी है। इस बार ग्रहों का भी खास संयोग बन रहा है। जिसमें सूर्य उच्च राशि मेष में, चन्द्रमा-बुध राशि वृषभ में, मंगल कुम्भ राशि में, गुरु-शुक्र मीन राशि में, शनि कुम्भ राशि में, राहु मेष राशि में, केतु तुला राशि में विरामजमान होने शुभ फलयोग बन रहा है। इस दिन भगवान श्री लक्ष्मीनारायण की प्रसन्नता के लिए व्रत एवं उपवास रखकर यह पर्व मनाने का विधान है। ‘अक्षय’ का वास्तविक अर्थ है, जिसका कभी क्षय न होता हो। इस तिथि के दिन जो कुछ भी किया जाता है, उसका प्रभाव अक्षय हो जाता है।
कैसे करें पूजा—
विष्णु धर्मोत्तर पुराण के मुताबिक जो व्यक्ति अक्षय तृतीया का व्रत करता है, उसे सभी तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का कथन है कि अक्षय तृतीया के दिन स्नान-दान, जप-तप, पितृ तर्पण, हवन और दान जो भी धार्मिक कृत्य किया जाता है, वह सब अक्षय हो जाता है। इस दिन व्रतकर्ता को चाहिए कि प्रात:काल स्नान ध्यान करके अक्षय तृतीया के व्रत का संकल्प लेकर विधि-विधान से पूजा-अर्चना करना चाहिए। अक्षय तृतीया के दिन भगवान नर नारायण, श्री परशुराम, हयग्रीव जी भूलोक (पृथ्वी) पर अवतरित हुए थे। इनकी महिमा में व्रत उपवास रखकर विधि-विधानपूर्वक पूजा अर्चना करने से अक्षय पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
किस देवता की करें पूजा—
इस दिन भगवान श्री विष्णु, लक्ष्मीजी तथा कृष्णजी की पंचोपचार या दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजन करने का विधान है। शिवपुराण में बताया गया है कि भगवान शिव और माता पार्वती जी की मालती, मल्लिका, जवा, चम्पा एवं कमल के पुष्पों से पूजा-अर्चना करने पर मनुष्य के कोटि-कोटि जन्म के तन-मन-वचन से किए गए महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। श्री विमल जैन जी के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्रीपरशुराम को ककड़ी, हयग्रीवजी को चने की भीगी दाल, नर-नारायणजी को भुने हुए सत्तू से निॢमत नैवेद्य अॢपत करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। पूजा-अर्चना के उपरान्त भूदेव (ब्राह्मïण) को जल से भरा हुआ कलश, नवीन व , पंखा, खड़ाऊं, छाता, चावल, दही, सत्तू, खरबूजा, तरबूज, जौ, गेहूँ, चना, दूध, गुड़ तथा अन्य उपयोगी वस्तुएँ नकद दक्षिणा के साथ दान देने से अक्षय पुण्यफल की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त स्वर्ण एवं रजत धातु की वस्तुएँ तथा ग्रीष्म ऋतु में प्रयोग में आनेवाली अन्य वस्तुओं का गुप्त दान करने का विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया के दिन पीले रंग के परिधान एवं आभूषण धारण करना पुण्य फलदायी रहता है।
अक्षय तृतीया को ‘अबूझÓ मुहूर्त भी बतलाया गया है। अक्षय तृतीया के दिन नवीन व्यवसायिक प्रतिष्ठान के शुभारम्भ का मुहूर्त होता है, साथ ही समस्त मांगलिक धाॢमक आयोजन भी होते हैं। इस दिन समस्त कार्य प्रारम्भ करना शुभ फलदायी रहता है। गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, नामकरण संस्कार, वैवाहिक एवं मांगलिक आयोजन भी अबूझ मुहूर्त (अक्षय तृतीया) में करने का विधान है। इस दिन अपनी राशि के अनुसार विशेष वस्तुओं का दान करने पर सुख-सौभाग्य में अभिवृद्धि के साथ ही खुशहाली मिलती है।
अक्षय पुण्यफल के लिए करें राशि के अनुसार दान
मेष—भूदेव (ब्राह्मण) को जौ एवं सत्तू से निर्मित पदार्थ, गेहूँ एवं सत्तू। वृषभ—ब्राह्मण (भूदेव) को ऋतुफल जैसे—तरबूज, खरबूजा, ककड़ी एवं अन्य फल तथा जल से पूरित तीन घट एवं दूध का दान। मिथुन—ब्राह्मण को हरा मूँग, खीरा, ककड़ी, सत्तू एवं अन्य हरे रंग के पदार्थ का दान। कर्क—साधु को जल से पूरित घट, दूध, मिश्री का दान तथा किसी गरीब व्यक्ति को छाता का दान। ङ्क्षसह—शिव मंदिर में सत्तू, जौ एवं गेहूँ के आटे से निॢमत पदार्थ का दान। कन्या—किसी मंदिर के पुजारी को खीरा, तरबूज, ककड़ी का दान। तुला—ब्राह्मण को श्वेत पदार्थ जैसे—मिश्री, दूध एवं खोवे से निॢमत मिष्ठान्न का दान। वृश्चिक—ब्राह्मण को जल से भरा हुआ घट, पंखा, लाल रंग के मिष्ठान्न का दान। धनु—शिव मंदिर में चने की दाल से निॢमत पदार्थ, बेसन से बने पदार्थ, सत्तू तथा ऋतुफल का दान। मकर—ब्राह्मण को जल से पूरित घट, मिष्ठान्न एवं दूध का दान। कुम्भ—गरीब व्यक्ति को जल से पूरित घट, ऋतुफल एवं गेहूँ व सत्तू तथा चना का दान। मीन—किसी ब्राह्मण या मंदिर के पुजारी को बेसन से बने पदार्थ, सत्तू, पीले रंग के मिष्ठान्न तथा खड़ी हल्दी की गाँठ का दान। विशेष—अक्षय तृतीया के दिन स्नान, ध्यान के बाद दोपहर से पूर्व दान करना चाहिए। दान की वस्तुओं के साथ नकद द्रव्य भी देना चाहिए।
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