जगन्नाथपुरी रथयात्रा : क्यों बिना हाथ पैर के है प्रभु,  पुरी के  रथयात्रा की परम्पराएं

जगन्नाथपुरी रथयात्रा : क्यों बिना हाथ पैर के है प्रभु, पुरी के रथयात्रा की परम्पराएं


– चेतनादित्य आलोक

चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी के प्रति लोगों की असीम आस्था है। इसे पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र एवं श्रीक्षेत्र जैसे नामों से भी जाना जाता है। यह भगवान कृष्ण के ही एक रूप श्री जगन्नाथ की लीला भूमि है। यहां प्रत्येक वर्ष श्री जगन्नाथ रथयात्रा को काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। रथयात्रा का शुभारम्भ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को होता है।

इस दिन लाखो श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, बलराम जी और सुभद्रा जीके रथों को मोटे-मोटे रस्मों से बांधकर खींचते हुए उनके मौसी के घर ‘गुडाचा मंदिर’ ले जाते है, जो जगन्नाथ मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर है। इस अवसर पर रथों को खींचना भक्त अपना सौभाग्य मानते भगवान । श्री जगन्नाथ, श्री बलराम एवं बहन सुभद्रा के लिए यात्रा में प्रयुक्त होने बाले तीन भिन्न रथों का निर्माण पंच तत्वों यानी लकड़ी, धातु, रंग, वस्त्र एवं सजावटी सामग्री से किया जाता है। विभिन्न प्रकार के औषधीय गुणों से परिपूर्ण नीम की लकड़ी का उपयोग रथ निर्माण में होता है।

श्री बलराम जी का ‘ताल ध्वज’ नामक लाल तथा हरे रंग का रथ यात्रा में सबसे आगे होता है। बीच में लाडली बहन सुभद्रा का ‘दर्पदलन’ नामक काले एवं नीले रंग का, जबकि जगत के पालनहार भगवान श्री जगन्नाथ का ‘गरुड़ध्वज’ नामक रथ सबसे पीछे चलता है। इस पर श्री हनुमान जो और श्री नृसिंह भगवान के प्रतीक चिह्न अंकित रहते हैं। इसका रंग लाल व पीला होता है। 16 पहियों से बने भगवान श्री के रथ की ऊंचाई 45.6 फीट जगन्नाथ के रथ जबकि श्री बलराम जी के रथ की ऊंचाई 45 फीट तथा सुभद्रा जी के रथ को ऊंचाई 44.6 फीट होती है। रथ के निर्माण में किसी प्रकार की कील या अन्य नुकीली अथवा काटेदार वस्तु का प्रयोग नहीं है रथ के लिए लकड़ी संग्रह करने का कार्य वसंत पंचमी को, जबकि रथ निर्माण का कार्य अक्षय तृतीया को आरम्भ होता है। रथयात्रा में शामिल होने वाली भगवान जगन्नाथ, बलराम जी तथा सुभद्रा जी की मूर्तियों में हाथ, पैर एवं पंजे नहीं होते। एक पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल से भगवान जगन्नाथ, बलराम जी तथा सुभद्रा जी की मूर्तियों का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा जी कर रहे थे। मूर्ति निर्माण दौरान विश्वकर्मा जी ने तत्कालीन राजा से शर्त रखो थी कि तीनों विग्रहों का निर्माण कार्य संपन्न होने तक कोई उनके कक्ष में प्रवेश नहीं करेगा। लेकिन राजा ने इस शर्त की अवहेलना करते हुए उनके कक्ष का दरवाजा खोल दिया।

उसके बाद विश्वकर्मा जी ने मूर्तियों का निर्माण कार्य अधूरा छोड़ दिया। यही कारण है कि आज भी भगवान जगन्नाथ श्री बलभद्र और सुभद्रा जी की मूर्तियां अधूरी ही बनाई जाती है और भक्त बड़े ही धूमधाम और श्रद्धा से इन विग्रहों की पूजा अर्चन करते हैं.


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