
शिव की नगरी काशी में ज़गत के पालनहार प्रभु जगन्नाथ की पालकी यात्रा आज शाम को निकाली गई । भक्तों के कंधों पर सवार होकर प्रभु मौसी के घर पहुंचेगे जहाँ अगले तीन दिनों तक नगर भ्रमण पर रहेंगे जिसे रथयात्रा मेला के रूप में जाना जाता है। गाजे बाजे के साथ निकाली गयी इस यात्रा में बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं मान्यता है की भगवान् की पालकी को कन्धा देने और इस पालकी यात्रा में शामिल होने पर सभी मनोकामनाएं स्वत: ही पूरी हो जाती हैं ।
शिव की नगरी काशी में आज विष्णु के जयकारे के साथ भक्तों के कंधे पर सवार भगवान् जगन्नाथ निकले भक्तों के बीच समतुल्य भाव दर्शाने के लिए ही भगवान् उनके कंधे पर सवार हो कर नगर भ्रमण पर निकलते हैं ….! भक्तों के लिए भी अपने आराध्य के करीब पहुचाने का ज़रिया है यह पालकी यात्रा ….।
पंद्रह दिनों की बीमारी के बाद आज भगवान् भक्तों से मिलने मंदिर छोड़ कर नगर भ्रमण के लिए निकल पड़े यात्रा के पीछे एक बहुत रोचक कथा है। मान्यता है कि एक बार देवी सुभद्रा अपनी ससुराल से द्वारिका आई थीं। उन्होंने अपने दोनों भाइयों से नगर-दर्शन की इच्छा व्यक्त की। बलराम और श्रीकृष्ण ने उन्हें एक रथ पर बैठा दिया। और अपने रथ पर पहुचने के लिए लिया अपने भक्तों के कन्धों का सहारा …और तब से ही यह पालकी यात्रा निकाली जाने लगी …..। वाराणसी में भगवान् जग्गंनाथ के इस मंदिर में भक्तों की असीम आस्था भी जुडी है । और हर साल बड़ी संख्या में भक्त यहाँ भगवान् जगन्नाथ की पालकी यात्रा के दर्शन के लिए आते हैं ।
भगवान अपने भाई और बहन के साथ पूर्णिमा को स्नान करने के बाद बीमार हो जाते है। …15 दिन बीमार रहने के बाद ये स्वास्थ्य लाभ के दृष्टि से अपने ननिहाल डोली पर सवार हो कर जाते है इस डोली यात्रा में भक्त डोल नगाड़ा ,शंख और डमरू के साथ विदाई करते है । माना जाता है की इस यात्रा के दर्शन से पापो का शमन हो जाता है ।
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