
भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वस्व स्थान प्राप्त है। गुरु का स्थान सर्वोपरि है। हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। तिथि विशेष पर गुरु की आराधना करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। जिससे जीवन आलोकित होकर सुख-समृद्धि, सौभाग्य के पथ पर अग्रसित होता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व अति उमंग व हर्ष उल्लास के साथ मनाने की परम्परा चली आ रही है। गुरु पूर्णिमा का पर्व 13 जुलाई, बुधवार को पड़ रहा है। इस बार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 12 जुलाई, मंगलवार को अर्ध रात्रि के पपश्चात् 4 बजकर 01 मिनट पर लग रही है, जो कि 13 जुलाई, बुधवार को अर्ध रात्रि 12 बजकर 08 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व 13 जुलाई, बुधवार को हर्षोल्ïलास के साथ मनाया जाएगा। आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर कोकिला पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन महर्षि वेद व्यास जी की भी पूजा-अर्चना करने की विशेष महिमा है। पूर्णिमा तिथि के दिन प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ वस्त्र धारण करके, ध्यानादि करके गुरु पूर्णिमा के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। अपनी दिनचर्या नियमित संयमित रखते हुए शुचिता के साथ मन-वचन-कर्म पर ध्यान देते हुए गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाना चाहिए।
गुरुपूजा का विधान
काष्ठ की नवीन चौकी पर श्वेत वस्त्र पर पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण 12-12 रेखाएँ बनाकर व्यासपीठ बनाने का विधान है तथा दशों दिशाओं में अक्षत छोड़कर दिग् बन्धन किया जाता है। ब्रह्म, ब्रह्मा, परावर शक्ति, व्यास, शुकदेव, गोड़़पाद, गोविन्द स्वामी और शंकराचार्य के नाममन्त्र से आवाहन करके पूजा करते हैं। अपने दीक्षा गुरु तथा माता-पिता, पितामह, भ्राता आदि की भी पूजा करने का विधान है। इस दिन अपने गुरु को भक्ति भाव श्रद्धा के साथ नवीन वस्त्र, नकद द्रव्य, ऋतुफल एवं मिष्ठान्न आदि भेंट स्वरूप अर्पित करके चरण स्पर्श करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि गुरु का आशीर्वाद ही जीवन में कल्याण करने वाला, सौभाग्य में अभिवृद्धि करने वाला माना गया है।
अपनी पारिवारिक परम्परा के अनुसार अपने गुरु की श्रद्धा भक्ति व आस्था के साथ पूजा-अर्चना करके उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए। गुरु की कृपा से समस्त कष्ट व अनिष्टों का निवारण होता है। जीवन में सुख समृद्धि खुशहाली आती है। पूर्णिमा तिथि के दिन ब्राह्मण व जरूरतमन्दों को देव दर्शन के पश्चात् यथाशक्ति दान-पुण्य कर पुण्य लाभ अर्जित करना चाहिए।
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