कांवड़यात्रा : कंधे (स्कंध) पर लोकहित का वरण करना



– सलिल पांडेय, मिर्जापुर
सावन के बाद भाद्रपद (भादौ) के कृष्णपक्ष की अष्टमी को कृषि के देवता श्रीकृष्ण के प्रकट होने के पहले श्रद्धालु भी कृषक-भाव में हो जाएं, इसकी पूर्व तैयारी का उद्देश्य भी कांवड़-यात्रा है।

– भाद्रपद की कृष्ण अष्टमी को कृषक-प्रतिनिधि श्रीकृष्ण के प्रकट होने के पूर्व कृषक स्वरूप धारण करना भी यात्रा का उद्देश्य
– श्रवणकुमार की कांवड़ यात्रा : अशक्त माता पिता से श्रेष्ठ चक्रवर्ती सम्राट भी नहीं

1-कांवड़ धारण करने का मतलब अपने अहंकार-भाव का त्याग करना।
2-प्रभुता छोड़ लघुता की यात्रा।
3-‘लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूरि, चींटी शक्कर ले चली हाथी के सिर धूरि’-(कबीर) दोहे का स्मरण करते रहना।
4-कहार बन जाना।
5-कहार कश्यप ऋषि के संतान माने जाते हैं।
6-कहार कंधे पर पानी और पालकी ढोते है।
7-पानी ढोने का मतलब संवेदना का जल और पालकी का अर्थ पालन-पोषण का भाव है।
8-सावन में कांवड़यात्रा के जरिए शिवजी के अभिषेक का शिवपुराण में उल्लेख नहीं है।
9-कांवड़यात्रा के जरिए क्षेत्र-भ्रमण करना और जहाँ आवश्यकता हो, वहां लोगों की सेवा करना है।
10-मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के पिता चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के नेतृत्व में निकली थी कांवड़-यात्रा।
11-‘कोटिन्ह काँवरि चले कहारा ।
विविध वस्तु को बरनै पारा ।।
(गोस्वामी तुलसीदास के मानस के बालकाण्ड की 220वीं चौपाई), अर्थात- कहार करोड़ों काँवरें लेकर चले । उनमें अनेक प्रकार की इतनी वस्तुएं थीं कि जिनका वर्णन कौन कर सकता है ?
12-यह प्रसंग तब का है जब श्रीराम शिवजी का धनुष तोड़ चुके हैं और राजा जनक राजा दशरथ को सीताजी से विवाह के लिए प्रस्ताव भेजते हैं ।
13-दशरथ जनकपुरी के लिए निकल पड़े हैं । उस समय उनके साथ कांवड़ लिए अयोध्या के तमाम लोग चल रहे हैं ।
14- इस दृष्टि से देखा जाय तो कांवड़-यात्रा का उद्देश्य एक राज्य से दूसरे राज्य की यात्रा पर जाते समय इतनी सामाग्री लेकर सक्षम और समर्थ लोग चलते थे कि रास्ते में यदि कहीं दुर्भिक्ष या अन्य कारणों से कोई पीड़ित दिखे तो कांवड़ की सामाग्री उन पीड़ितों को दी जाए ताकि संकट में पड़े लोगों की प्राण-रक्षा हो सके ।
15-स्वामी विवेकानन्द के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहँस भी सभी ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए निकले थे।
16-वैद्यनाथ धाम आते आते मार्ग में अकालपीड़ितों को देखा तो आगे की यात्रा स्थगित कर दी तथा सारी सामाग्री इन अकालपीड़ितों में बांट दी ।
17-उनका कहना था कि अकाल से मरते लोगों को छोड़कर यात्रा करना पाप है ।
18-गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार बरसात के दिनों में राजा या सक्षम व्यक्ति अपने लोगों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में जाएं और जहां जिस प्रकार की आवश्यकता हो, लउसे उस इलाके में उपलब्ध कराएं।
19-वर्षा ऋतु में सन्त-महात्मा चातुर्मास करते थे ।
20-राजाओं के युद्ध इन 4 महीनों में स्थगित हो जाते थे । मांगलिक कार्यक्रमों पर भी विराम लग जाता रहा । अतः यह समय भगवान शंकर के दर्शन के माध्यम से मानवता की सेवा का होता है ।
21-मान्यता भी है कि वर्षा ऋतु में महादेव कैलाश से उतर कर मैदान में आते हैं । महादेव के धरातल पर आते ही प्रकृति भी झूम उठती है । महादेव का यह आगमन धरती के लोगों की खुशहाली के लिए होता है ।
22-अतः कांवड़ यात्रा की पूर्ण सार्थकता एवं सात्विकता यह परिलक्षित होता है कि जिस मार्ग से कांवड़यात्री गुजरे, उस क्षेत्र में असहाय जीवन जीने वालों की खोजखबर लेते हुए आगे बढें।
23-प्राचीन काल में कांवड़यात्री तांबा, चांदी आदि के लोटे में जल लेकर चलता था । धातु के बर्तन के स्पर्श और उसके उपयोग से स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता था ।
24- प्लास्टिक कांवड़यात्रा का प्रयोग स्वास्थ्य की भी दृष्टि से उचित नहीं है ।
25-श्रवण कुमार द्वारा कांवड़-यात्रा का सन्देश कि अशक्त माता-पिता के आगे चक्रवर्ती सम्राट भी श्रेष्ठ नहीं।


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