जानिए क्या है नाइट ब्लड सर्वे अभियान, फाइलेरिया उन्मूलन के लिए लिया जाएगा 19 हजार से अधिक लोगों का ब्लड सैम्पल

जानिए क्या है नाइट ब्लड सर्वे अभियान, फाइलेरिया उन्मूलन के लिए लिया जाएगा 19 हजार से अधिक लोगों का ब्लड सैम्पल

– ग्रामीण के 8 व शहर के 24 पीएचसी का चलेगा अभियान
– अभियान 26 अगस्त से 10 सितंबर तक

फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम एमडीए (मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) के तहत जनपद में लोगों को फाइलेरिया रोग से बचाव के साथ संक्रमण का पता लगाने के लिये स्वास्थ्य विभाग द्वारा ब्लड सर्वे के तहत रात्रि के प्रहर में सैंपल लिया जाएगा। फाइलेरिया से ग्रसित मरीजों की खोज के लिए रात के समय में रक्त पट्टिका तैयार की जाएंगी। जांच में पॉज़िटिव पाये जाने पर सरकार द्वारा मरीजों का निःशुल्क इलाज भी कराया जाएगा। आज अभियान से जुड़े फाइलेरिया नियंत्रण इकाई के स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षण दिया गया। जनपद के सभी ब्लॉक व शहर स्तरीय स्वास्थ्य केन्द्रों यह चलाया विभाग द्वारा हर पीएचसी-सीएचसी से 600 ब्लड स्लाइड तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है।

आखिर रात में क्यों..
फाइलेरिया के माइक्रोफाइलेरी अपने नेचर के मुताबिक रात्रि के समय रक्त में सक्रिय हो जाते हैं, इसी के आधार पर लक्षण को आसानी से पहचाना जा सकता है। इसलिए रात में ही ब्लड सैंपल लिया जाता है और उसकी स्लाइड बनाकर जाँच के लिये लैब में भेजा जाता है। जहां लैब टेक्नीनीशियन द्वारा परीक्षण का कार्य शुरू कर दिया जाता है।

जांच और इलाज
जांच के बाद यदि माइक्रो फाइलेरिया की दर एक प्रतिशत से कम हुई तो यह सर्वे पुनः किया जाएगा। इस सर्वे में सभी का रेपिड टेस्ट (एफ़टीएस किट) किया जाएगा जिससे फाइलेरिया से ग्रसित मरीज का जल्द से जल्द पता लग सकेगा। इसके बाद मरीज को तत्काल प्रभाव से उपचार पर रखा जाएगा।

इन नामों से प्रचालित
यह बीमारी हाथीपांव नाम से भी प्रचलित है। लिंफेटिक फाइलेरियासिस को आम बोलचाल में फाइलेरिया या हाथीपांव कहते हैं। यह रोग मच्छर के काटने से ही फैलता है।

लक्षण
फाइलेरिया के सामान्यतः कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते हैं। बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द और सूजन की समस्या दिखाई देती है। पैरों और हाथों में सूजन, हाथीपांव और हाइड्रोसिल (अंडकोषों का सूजन), महिलाओं के स्तन में सूजन के रूप में भी यह समस्या सामने आती है।

ये है दवा का क्रम
जांच में पाजिटिव आने के बाद मरीजों का चिकित्सा का खर्च स्वास्थ्य विभाग वहन करता है। मरीज को पहले वर्ष में चार बार दवा खिलाई जाती है, जबकि दूसरे वर्ष में तीन बार तथा तीसरे वर्ष से दो बार दवा खिलाई जाती है। इस रोग से पूरी तरह से छुटकारा पाने के लिये इस दवा का कोर्स पूरा करना अति आवश्यक है।

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