शास्त्र संरक्षण में आज भी अग्रसर है शारदा भवन – प्रो.रामकिशोर

शास्त्र संरक्षण में आज भी अग्रसर है शारदा भवन – प्रो.रामकिशोर


शारदा भवन
– गणपति उत्सव में जुटे संस्कृत विद्वान्, विद्वत गोष्ठी में विद्वानों ने रखे अपने-अपने मंतव्य

शारदा भवन 93 वर्ष का संकल्प पूर्ण कर 94वें साल में उसको प्रतिपादित करते रहना काफी सराहनीय है। यहाँ प्रतिस्थापित गणेश जी की प्रतिमा के समक्ष विभिन्न प्राच्य शास्त्रों पर चर्चा व इसके उपरान्त निर्णय तथा उत्साहवर्धन हेतु पदक प्रदान करना यह सब अपने में एक अनुपम कड़ी है। जिसे पंडित गौरीनाथ पाठक की परम्परा में उनके पुत्रद्वय यादव राव पाठक और विनोद राव पाठक अपने कुटुंब के साथ अक्षुण बनाए रखें हैं जो साधुवाद के पात्र हैं। उक्त बातें अगस्त्यकुंड स्थित शारदा भवन में गणेशोत्सव के चतुर्थ दिवस पर शास्त्र संगोष्ठी में संस्कृत के विद्वान प्रो.रामकिशोर त्रिपाठी ने कही। इन्होनें अपने वक्तव्य में बोला की संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान् रहे पंडित गौरीनाथ पाठक के अमर कीर्ति का पावन स्मारक है यह शारदा भवन। शास्त्र चर्चा व सांस्कृतिक गतिविधयों का विशिष्ट स्थान है। उत्सव की महिमा यहाँ सिद्ध हो जाती है जिसका प्रमुख कारण यहाँ प्रतिवर्ष उदीयमान शास्त्र विद्वानों व शास्त्रीय संगीत के नवोदित कलाकारों का जुटान होना है।

चतुर्थ दिवस पर विद्वत गोष्ठी में विद्वानों ने अपने-अपने मंतव्य में कहा कि उत्सव प्रधान नगरी काशी में 94वें वर्ष में भी परम्परा को यादव राव पाठक परिवार द्वारा अक्षुण बनाएं रखना अनुकरणीय है। साथ ही एक ही मंच पर विभिन्न आयोजन का समायोजन करना सराहनीय है।
विद्वत गोष्ठी में पद्म अवार्डियों का सम्मान भी हुआ। जिसमें प्रो.कमलाकांत त्रिपाठी,डा.शिवनाथ मिश्र थे। इसके पूर्व तीन विषयों व्याकरण,न्याय व वेदान्त में छात्रों हेतु शास्त्रार्थ का आयोजन हुआ। जिसमें क्रमश: प्रत्ययलोपे प्रत्ययलक्षणमिति सूत्रार्थविचार: , हेत्वाभासीयप्रथमलक्षणविचार: ,मिथ्यात्वविचार: आदि सूत्रों पर 45 विद्यार्थियों ने आपस में अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किए। यहाँ निर्णायक के रूप में डा.रमाकांत पाण्डेय,प्रो.दिव्यस्वरूप ब्रह्मचारी,डा. रामलखन पाठक आदि थे। विजयी प्रतिभागियों को दैवज्ञवाचस्पति पंडित योगेश्वर पाठक,वेदमूर्ति पंडित रमाकांत पाठक व महामहोपाध्याय पंडित बटुकनाथ शास्त्री खिस्ते की स्मृति में पदक प्रदान किये गए। कार्यक्रम की अध्यक्षता संम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.हरेराम त्रिपाठी ने किया। आगतों का स्वागत स्मिता वी.पाठक संचालन डा.विनोद राव पाठक व धन्यवाद ज्ञापन संयोजक यादव राव पाठक ने दिया। उपस्थित अन्य प्रमुख जनों में डा.कमला पाण्डेय,डा.हरिप्रसाद अधिकारी,आचार्य गायत्री प्रसाद पाण्डेय,आचार्य विजय द्विवेदी,डा.कमलाकांत त्रिपाठी,पंडित स्वपनिल पाठक, पंडित कपिल पाठक,पंडित वरद पाठक,आचार्य पवन शुक्ला,डा.शेषनारायण मिश्र,डा. उमाशंकर त्रिपाठी,डा.श्रीराम पाण्डेय,डा.कमलेश झा,आशीष मणि त्रिपाठी आदि थे।

कल दिनांक 04 सितम्बर – रात्रि 8 बजे से संगीत का कार्यक्रम होगा जिसमें डा.शुभंकर डे का गायन व पुष्कर भागवत द्वारा वायलिन का वादन होगा।

नूतन बालक गणेशोत्सव समाज सेवा मंडल
राम जन्म से रामराज्य अभिषेक के रामकथा को विभिन्न रागों में प्रस्तुतीकरण

नूतन बालक गणेशोत्सव समाज सेवा मंडल द्वारा नाना फडणवीस के बारे में मनाए जा रहे 114 में गणेशोत्सव के तृतीय दिन प्रातः वेदमूर्ति वीरेश्वर नारायण दातार तथा पंडित हेमंत जोशी के आचार्यत्व में पुरुषोत्तम महाजन और उत्कर्ष माधव रटाटे द्वारा गणेश जी का षोडशोपचार पूजन किया गया । तत्पश्चात बादाम से सहस्रनामार्चन का कार्यक्रम हुआ ।रात्रौ इंदौर से पधारे श्अभय माणके व अमृता माणके द्वारा सुमधुर गीत रामायण की प्रस्तुति की गई । इसमें रामायण की कथा को एक नए रूप में चित्रित किया गया । शिक्षा पूरी होने के बाद भगवान् श्री राम के सामने क्या-क्या चुनौतियां आती है तथा किस प्रकार वे अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं? उनके जीवन में कौन-कौन से संघर्ष हैं? विश्वामित्र ने उन्हें किस प्रकार से राक्षसों का वध करने के लिए समर्थ बनाया ? इस सारी कथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है? साथ ही साथ वर्तमान समाज सेवकों के लिए भी शिक्षा देने वाला ऐसा यह गीत रामायण नवीन रूप में प्रस्तुत हुआ । गीत रामायण मराठी भाषा का अजर अमर संगीत काव्य है ! महाराष्ट्र के कवि गजानन दिगंबर मदगुलकर की रचना को संगीत से सजाया है सुधीर फड़के ने ! अभय माणके एवं अमृता माणके ने देश विदेश में संगीत काव्य के 4000 सफल प्रयोग किए हैं राम जन्म, सीता स्वयंवर, केवट प्रसंग, सेतु बंधन और रामराज्य अभिषेक से इस रामकथा को विभिन्न रागों में प्रस्तुत किया ! वर्तमान संदर्भ में इस रामकथा को जोड़ने का अनूठा प्रयोग इस कार्यक्रम की सफलता का मुख्य आकर्षण रहा । कार्यक्रम में की बोर्ड पर संगत श्री रवि सालके व तबले पर वैभव भगत व किशन राम ने संगत की ।


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