जानिये, हॉलीवुड अभिनेता सिल्वेस्टर स्टैलोन के अलावा किन किन हस्तियों ने किया हैं पिंडदान

जानिये, हॉलीवुड अभिनेता सिल्वेस्टर स्टैलोन के अलावा किन किन हस्तियों ने किया हैं पिंडदान


हिंदू धर्म को विश्व गुरु कहा जाता है । हिंदू धर्म के सिद्धान्तों को चिंतन तथा वैश्विक सिद्धांत माना जाता है । विश्वकल्याण, विश्व शांति, ‘वसुधैव कुटुंबकम’, ‘सर्वेपि सुखिनः सन्तु, सर्वे सन्तु निरामयः’ आदि हमारे धर्म के विचार भी अखिल मानव जाति के उद्धार के लिए है, न कि केवल हिन्दू समाज के उन्नति के लिए ! हिन्दू हो, मुसलमान हो या ईसाई । धर्मशास्त्र का जो पालन करेगा, उसे उसका निश्चित ही लाभ होगा । जो नहीं करेगा, उसकी हानि होगी । जिस प्रकार जो दवाई लेगा, उसे पंथ, मत, मजहब के भेद के बिना लाभ होगा, वैसे ही हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार कृति करने से सभी को लाभ होता है ।
भौतिक सुख की अपेक्षा मानसिक सुख तथा शांति इनका महत्त्व होता है । केवल भौतिक प्रगति देखने से मानसिक समस्याओं का समाधान नही मिलता है । इसी कारण “गया जी” में अनेक विदेशी, श्राद्ध के लिए आते है । क्योंकि आधुनिक विज्ञान तथा भौतिक प्रगति उनको राहत नहीं दे पा रही है ।

जिस प्रकार हॉलीवुड अभिनेता सिल्वेस्टर स्टैलोन ने भारत में अपने पुत्र का पिंडदान किया, उसी प्रकार रशिया के दिवंगत वामपंथी नेता के लिए तर्पण करने का उदाहरण हमारे सामने है, मार्च 2010 में रूस के पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की धुर विरोधी रहीं रूसी नेता साझी उमालातोवा ने येल्तसिन की आत्मा की शांति के लिए भारत में तर्पण और पिंडदान किया था । उमालातोवा रूस की पूर्व सांसद हैं और ‘पार्टी ऑफ पीस एंड यूनिटी’ की संस्थापक अध्यक्ष रही हैं। वो कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़ी नेता रही हैं । वह गोर्बाचेव और येल्तसिन की कट्टर विरोधी थीं और सोवियत संघ के विघटन की सख्त विरोधक थीं । सोवियत विघटन की बात को लेकर इनके बीच तीखे विवाद भी हुए थे।

उमालातोवा का कहना था कि, येल्तसिन बार-बार मेरे सपने में आते हैं और राजनीतिक मुद्दों पर बहस करते हैं । कभी वो अपने विचारों के लिए अपराध बोध से ग्रस्त लगते हैं और दुखी लगते हैं। ऐसा लगता है कि येल्तसिन की आत्मा असंतुष्ट और अशांत है । उन्होंने अपने इस सपने की चर्चा की और उपाय पूछा। विद्वानों ने पिण्डदान की सालाह दी और फिर उनके मार्गदर्शन में उन्होंने ये संस्कार कराए थे । वहां पर येल्तसिन के लिए तर्पण करने के अलावा उन्होंने अपने माता-पिता और अफगानिस्तान में मारे गए अपने दो भाइयों के लिए भी यज्ञ और पिंडदान किया और शांति की कामना की थी । उसके उपरांत उमालातोवा का कहना था, श्राद्ध-तर्पण करने के बाद से मै काफी सहज महसूस कर रही हूं। लगता है कि मेरे ऊपर कोई ऋण था, जो उतर गया है । इसके बाद उमालातोवा भारतीय संस्कृति और विचारों से इतनी प्रभावित हुई हैं कि उन्होंने वैदिक धर्म में दीक्षा लेने का निर्णय लिया ।
भारत में श्राद्ध आदि विधियों का अनेक लोग मजाक उडाते है । उन्हे वह अंधविश्वास लगता है । विदेशी लोग आधुनिकता की और जा रहे है और भारत इन सभी कारणों से पिछडा हुआ है, ऐसा उनका तर्क रहता है । लेकिन इसके विपरीत विदेशों में भी पितरों के विषय में बहुत कुछ किया जाता है। इस सम्बन्ध में ईसाई पंथ के साथ साथ यूरोप, लैटिन अमेरिका तथा अमेरिका में भी रूढ़ियाँ प्रचलित हैं।


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