
शुम्भ-निशुम्भ के वध के बाद जहां आराम की थी कुष्मांडा देवी
नवरात्र विशेष / इन्नोवेस्ट डेस्क / 19 oct
दुर्गा दर्शन के क्रम में.माँ कुष्मांडा देवी का दर्शन होता है भक्त माँ के दरवार में सुबह से ही कतारबद्ध दिखे मां के जयकारे के साथ भक्त अपनी बारी के इंतजार में घंटो खड़े दिखे सुरक्षा के मद्दे नजर पुलिस ने भी पूरी मुस्तैदी दिखाते नजर आये नगर के दक्षिण क्षेत्र के भव्य मंदिर में देवी दुर्गा (कुष्मांडा) विराजमान हैं। मंदिर से लगा कुंड देवी के नाम से दुर्गाकुंड कहा जाता है। मोहल्ले का नाम भी इसी नाम से विख्यात है।
पौराणिकता : मान्यता है कि सुबाहु नाम के राजा ने कठिन तप कर देवी से यह वरदान प्राप्त किया किया कि देवी इसी नाम से उनकी राजधानी वाराणसी में निवास करें। देवी भागवत पुराण में इसका उल्लेख है। यह भी कथा है कि शुम्भ-निशुम्भ के वध के बाद थकी देवी ने इस स्थान पर ही शयन किया था। उनके हाथ से उनकी असि जिस स्थान पर खिसकी, वह स्थान असि नदी के रूप में विख्यात हुआ। लिंग पुराण के अनुसार दक्षिण में दुर्गा देवी काशी क्षेत्र की रक्षा करती हैं।
ऐतिहासिकता : कुंड के दक्षिण आयताकार आंगन में नागर शैली में निर्मित मंदिर के चारो ओर बरामदे हैं। मध्य में मंडप से सज्जित मुख्य मंदिर के पश्चिमी द्वार के बायीं ओर गणपति और दक्षिणी तरफ भद्रकाली व चंडभैरव के मंदिर हैं। आग्नेय कोण में महालक्ष्मी व महासरस्वती विराजमान हैं। इसके अलावा राधाकृष्ण, हनुमान, शिव आदि देवी देवताओं के विग्रह हैं। माना जाता है कि मुख्य मंदिर नाटौर की रानी भवानी ने बनवाया। चारो ओर के बरामदे बाद में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने बनवा दिए। चारो ओर से पत्थर की सीढि़यों से युक्त दुर्गाकुंड पहले भूमिगत नाले के जरिए गंगा से जुड़ा हुआ था। बाद में इसी रास्ते गंगा के पानी के भी बढ़ आने के कारण बंद कर दिया गया।
महत्त्व : शारदीय नवरात्र के चौथे दिन दुर्गाजी कुष्मांडा के रूप में पूजी जाती हैं। देवी विशेष का दिन होने के कारण हर मंगलवार को भी यहां भक्तों की भीड़ बढ़ जाती है।
औषधियों में भी विराजमान माता दुर्गा
नवरात्र विशेष / इन्नोवेस्ट डेस्क / 19 oct
आइये आज जानते है कि किन किन औषधीय पौधा में कौन कौन देवी विराजमान रहती हैं और इनके गुण क्या क्या होते हैं ।अनादि काल से कहाँ जाता है कि वृक्ष पौधा और लता में भी ईश्वरी शक्तियाँ विद्यमान होती है। नवरात्र के नव दिनों में नव देवियों के आराधना का महत्त्व होता है।
शैलपुत्री ( हरड़ )कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है। यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है।
ब्रह्मचारिणी ( ब्राह्मी ) ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है। इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है।
चंद्रघंटा ( चंदुसूर )यह एक ऎसा पौधा है जो धनिए के समान है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है इसलिए इसे चर्महंती भी कहते हैं।
कूष्मांडा ( पेठा )इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो रक्त विकार दूर कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रोगों में यह अमृत समान है।
स्कंदमाता (अलसी )देवी स्कंदमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है।
कात्यायनी ( मोइया ) देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका। इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं। यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है।
कालरात्रि ( नागदौन )यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं। यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है।
महागौरी ( तुलसी ) तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये रक्त को साफ कर ह्वदय रोगों का नाश करती है।
सिद्धिदात्री ( शतावरी ) दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं। यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है।
– सङ्कलन – चन्दन महाराज