यात्रा साहित्य के पितामह राहुल सांकृत्यायन का नमन

यात्रा साहित्य के पितामह राहुल सांकृत्यायन का नमन

महापंडित राहुल सांकृत्यायन शोध एवं अध्ययन केंद्र ने कराया वेबीनार याद किये गए महापंडित राहुल सांकृत्यायन
इन्नोवेस्ट न्यूज़  / 8 nov

महापंडित राहुल सांकृत्यायन के 157 वी जयंती के पूर्व संध्या पर आज का समय और राहुल सांकृत्यायन का सृजन कर्म विषयक ऑनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी वेबीनार का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में संस्था की सचिव डॉ संगीता श्रीवास्तव ने राहुल सांकृत्यायन की स्मृति को नमन करते हुए यात्रा साहित्य के पितामह और महान यायावर बौद्ध भिक्षु के विचारों की आज के समय में प्रासंगिकता को लक्षित करते हुए संस्था की स्थापना के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। कोलकाता से आए विशिष्ट साहित्यकार डॉ अमरनाथ ने कहा कि इस दुनिया को बदल कर एक बेहतर दुनिया बनाने की आकांक्षा रखने वाले हर व्यक्ति के लिए राहुल का जीवन एक सबक है। साहित्यकार प्रोफेसर अवधेश प्रधान ने दुर्गम तिब्बती यात्राएं की चर्चा करते हुए कि आज के नौजवानों के लिए प्रेरणादायक है। इसीलिए उन्हें यात्रा साहित्य का पितामह कहा जाता है वह संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे उन्हें काशी की पंडित सभा ने 1929 में महापंडित की उपाधि से सम्मानित किया था। प्रोफेसर श्रद्धानंद ने कहा कि आज देश में जात पात सांप्रदायिकता किसान खेतिहर मजदूर अस्पृश्यता शैक्षिक व मदन वैमनस्य आर्थिक असंतुलन आदि समस्याएं व्याप्त है राहुल जी के वैचारिक निबंध ओं में इस पर व्यापक चर्चा उन्होंने की है उनके निबंध दिमागी गुलामी भागो नहीं दुनिया बदलो और तुम्हारी 6 में न केवल विधिवत विवेचना की है अपितु इन समस्याओं को सृजित करने वाले कारकों को भी प्रकट करते हुए समाधान की दिशा भी तय की है उनके विचार आज भी प्रासंगिक है। वरिष्ठ कथाकार और साहित्यकार डॉ मुक्ता ने कहा कि राहुल जी की दृष्टि मौलिक है उपेक्षित और वंचितों को स्वर देने और जागृत करने के लिए वह इतिहास के ओझल नायकों का भी अन्वेषण अपने कथा साहित्य में करते हैं। स्त्री चरित्रों के माध्यम से वे महिला के शोषण को उजागर करते हैं साथ ही उनके अधिकारों के स्वर और मुखर करने का प्रयास करते हैं।

 

 

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