इन्नोवेस्ट डेस्क / 15 nov
– देव विगहों सम्मुख कूटे 56 प्रकार के अन्न का भोग
– गोवर्धन पूजा भी हुआ सम्पन्न
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर , मां अन्नपूर्णा और काशी के कोतवाल के दरबार समेत शहर के समस्त देवालयों में आज दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट की झांकी लगाई गयी । कल रात लक्ष्मी पूजन के बाद आज प्रभु को कूटे अन्न से 56 प्रकार के भोग अर्पित की गई। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में 650 किलो लड्डूओं से भव्य मंदिर बनाया गया साथ ही एक हजार किलोअन्न के पके प्रसाद को सजाया जिनमे नाना प्रकार के व्यंजन शामिल है। अन्नपूर्णा मंदिर में माता को लड्डुओं के मंदिर से सजाया गया है । अन्नपूर्णा मंदिर के अनुसार लड्डू, मगदल, बालूशाही, खुरमा,चंद्रकला, काजू बर्फी, काजू बिस्किट, बादाम बर्फी, अंजीर हलवा, बादामहलुवा, मूंग हलुआ, काजू नमकीन, पंचमेवा नमकीन भोग में शामिल है। कच्चे प्रसाद में पांच प्रकार की दाल, सवा क्विंटल चावल, 16 प्रकार के पकौड़े का समावेश किया गया है ।
परंपरा की शुरुआत –
कहते हैं एक बार काशी में अकाल पड़ा , चारों तरफ तबाही मची गयी लोग भूखों मरने लगे । तब महादेव समस्या का हल तलाशने के लिए ध्यानमग्न हो उपाय तलाश में मां अन्नपूर्णा का ध्यान आया । इस कार्य की सिद्धि के लिए भगवान शिव ने खुद मां अन्नपूर्णा के पास जाकर भिक्षा मांगी। माता ने भगवान शंकर को वचन दिया कि अब काशी में कोई भूखा नहीं रहेगा।
अन्नकूट –
नए अनाजों को प्रभु के समर्पण का पर्व हर वर्ष दिवाली के अगले दिन यानी कि आज गोवर्धन पूजा की जाती है जो भगवान कृष्ण, गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा को समर्पित होता है। साथ ही इस दिन 56 या 108 तरह के पकवान बनाकर देवालयों में देव प्रतिमाओं का भोग लगाया जाता है। इन्ही पकवानों के शृंखला को ‘अन्नकूट’ कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार अन्नकूट महोत्सव मनाने से मनुष्य को लंबी आयु तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है। अन्नकूट महोत्सव मनाने का प्रमुख्य उदेश्य नए अनाज की खुद के सेवन के पूर्व भगवान को भोग लगाने का है। इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराके धूप-चंदन तथा फूल माला पहनाकर उनकी पूजा की जाती है और गौमाता को मिठाई खिलाकर आरती संग परिक्रमा भी करते हैं।
गोवर्धनपूजा –
ब्रजवासियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से विशाल गोवर्धन पर्वत को छोटी अंगुली में उठाकर हजारों जीव-जतुंओं और मनुष्यों के जीवन को देवराज इंद्र के कोप से बचाया था। भगवान कृष्ण ने देवराज के घमंड को चूर-चूर कर गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी। उस दिन से ही गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई। इस दिन लोग अपने घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन बनाकर उनकी पूजा करते हैं।