इन्नोवेस्ट धर्मनगरी / 16 nov
रक्षा बंधन की तरह भाई-बहन के पावन प्रेम के प्रतीक भइया दूज पर्व का बेसब्री से इंतजार करती बहनें आज दिन विशेष पर अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगाकर मंगलकामना करती है। वहीं भाई अपने बहनों के घर भोजन ग्रहण कर खुद को धन्य मानते हैं। भैयादूज और गोवर्धन पूजा पूजा के बाद बहनों ने अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर एवं आरती उतार उनके सलामती और दीर्घायु की मंगल कामना की। भाइयों ने भी बहनों को स्नेह के रूप में उपहार आदि भेंट कर जीवन में सुख-समृद्धि बने रहने के लिए बहन के हाथ का पकाया हुआ भोजन भी ग्रहण किया।
आज के दिन सुबह सवेरे व्रती महिलाओं और बहनो ने घर के आंगन को गोबर के लेप से शुद्ध करने के साथ गोबर से किनारों को घेर गोबर से गोधन और गोधाइन और दो द्वारपाल भी बनाये। जिन्हें स्नान आदि कराकर पीले वस्त्र से सुशोभित किया गया। षडोशोपचार पूजन-अर्चन के बाद गोधन और गोधाइन, गणेश जी और तुलसी जी सहित सहित पांच कथाएं सुनी गयी। कथा सुनने के साथ ही पांच सुहागिनों ने मूसल में सिन्दूर लगाकर गोधन और गोधाइन के बीच ईट, सुपाड़ी और चने की कुटाई की गयी। इसके बाद बहनों ने भाइयों की लम्बी आयु के लिए भाइयों का नाम लेकर भटकईया के कांटे को अपनी जीह्वा में स्पर्श कराकर उसे फेंक दिया। साथ ही हल्दी मिश्रित रूई की माला बनाकर पांच बार हाथ की अगुंलियों में लपेटा और उसके दोनों सिरों को आपस में जोड़कर उसे गोधन कूटाई में दे दिया। और अंत में भाइयों को बहनों ने टीका लगा चना खिलाकर उनकी दीर्घायु की कामना की।
आज पर्व विशेष पर बहनें गोबर से मांडवा बनाकर उसमें अक्षत व हल्दी से चित्र बनाती है। फिर फल, फूल, सुपाड़ी, धूप, रोली व मिठाई रखकर दीप जलाती है। साथ ही यम दूज की कथा भी सुनी जाती है। भाइयों के सलामती की दुआ मांगने के लिए बहनें इस दिन का बड़ी बेसब्री से इतंजार करती है। भैया दूज भाई-बहन के बीच के संबंधों में नए सिरे से रंग भरने हर साल आता है, ताकि भौतिक दूरियां मन के बीच दूरियां न पैदा कर सकें। साथ ही इसका यह भी उद्देश्य है कि भाई के साथ-साथ बहन की भूमिका को भी महत्वपूर्ण माना जाए, क्योंकि भाईदूज तभी है, जब बहन का आशीष साथ है। इसकी कहानियों में भी भाई पर आए संकटों को दूर करने के लिए बहन के प्रयासों का उल्लेख किया गया है। भैया दूज न सिर्फ भाई को कर्तव्यनिष्ठ बनाने की प्रेरणा देने के लिए है, बल्कि उसमें बहन की भूमिका भी बहुत बड़ी है। वह भाई को जीवन में कर्तव्यों को याद दिलाकर उन्हें निभाने का आशीष देती है। उसके उज्जवल भविष्य की कामना करती है। बहन का आशीष उसे कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने में संबल का काम करता है।
अनेक नामों से जाना जाता है ये पर्व
भाई और बहन के परस्पर प्रेम को प्रगाढ़ता देने वाला यह पर्व दीपोत्सव के संपन्न होने के रूप में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इसे कई नामों से जाना जाता है। हिंदी भाषी शहरों में इसे यम द्वितीया, भातृद्वितीया, भाई दूज और गोधन आदि नामों जाना जाता है, जबकि महाराष्ट्र में इसे भाव -भीज, बंगाल में भाई फोटा और नेपाल में भाई टीका के रूप में मनाया जाता है।
यह है धार्मिक मान्यता
इस पर्व के पीछे यूं तो कई पौराणिक कथाएं हैं, किंतु सर्वाधिक प्रचलित है सूर्य और संज्ञा की संतानों यम और यमी या यमुना की कथा। कहा जाता है भाई यम और बहन यमी में काफी प्रगाढ़ता थी, किंतु समय के साथ ऐसा भी एक दौर आया, जब दोनों एक-दूसरे से काफी दूर हो गए। बहन यमी अपने भाई यम को देखने तक के लिए तरस कर रह गईं। उन्होंने भाई यम तक कई बार अपना संदेश भिजवाया, किंतु अपने कार्य-दायित्व में व्यस्त यम अपनी बहन से मिलने का समय ही नहीं निकाल पा रहे थे। बहन प्रतीक्षा में रही। इसी बीच कभी एक बार वह बहन के घर मिलने आए, तो हतप्रभ रह गए। बहन यमुना उनसे ऐसे उमड़कर मिली कि यम को अपनी गाफिली का गहराई से अनुभव हुआ। उनके भीतर बहन के प्रति दबा हुआ प्रेम उमड़ आया। बहन ने भाई की आरती उतारी, ललाट पर अक्षत-रोली का तिलक लगाया और उनके प्रदीर्घतम मंगलमय जीवन की अनंत कामना की। अभिभूत होकर यम ने यह वरदान दिया कि आज के दिन संसार भर में भाई-बहन के पर्व भातृ द्वितीया के रूप में मनाया जाएगा।
दूसरी कथा भी –
दूसरी कथा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है। कहते हैं, इसी दिन श्रीकृष्ण नरकासुर को मारने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के पास गए थे। प्रसन्नतापूर्वक सुभद्रा ने अपने भाई का पारंपरिक रूप से स्वागत किया और उनकी पूजा-आरती उतारी थी। भाई-बहन का यह मिलन इतना विशिष्ट था कि कालांतर में इसकी स्मृति में भैया दूज पर्व प्रचलित हो गया।
जैन धर्म में भी
यह पर्व जैन-संस्कृति से भी जुड़ा हुआ है। एक अन्य कथा के अनुसार, स्वामी महावीर को इसी दिन निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। उनके निर्वाण प्राप्त करने से उनके भाई राजा नंदीवर्धन भावनात्मक रूप से अत्यंत व्यथित और बेचैन हो उठे। उन्हें संभालना किसी के लिए संभव नहीं हो पा रहा था। ऐसे में उनकी बहन सुदर्शना ने आगे आकर अपने भाई की आहत भावनाओं पर दिलासा का मरहम रखा। उन्होंने कुछ इस तरह उन्हें दिलासा दी कि उनके भाई पर इसका चमत्कारी प्रभाव पड़ा। राजा नंदीवर्धन भावनात्मक रूप से नियंत्रित हो गए।
कहते हैं, इसकी याद में तभी से महिलाएं भैया दूज मनाने लगीं। कुल मिलाकर, यह पर्व भाई और बहन दोनों के ही महत्व को रेखांकित करता है और उनके बीच पावन संबंधों में ताजगी और मजबूती देने वाला है। ।
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