
अनन्त पुण्यों को एक साथ प्राप्त कराता है मकर-संक्रान्ति के दिन का स्नान
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 14 jan
काशी के घाटों पर भी श्रद्धलुओं की भीड़ है , दशाश्वमेध , अस्सी और केदार घाट ऐसे घाट है जहां भीड़ सबसे अधिक है । सुरक्षा के कारणों से घाट की और जाने वाली सभी सड़कों को वाहनों के लिए बंद किये गए है घाट पर सुरक्षा कर्मी मौजूद है और गंगा तट पर पानी में बैकेटिंग कर स्नार्थियों को गहरे पानी में जाने से रोका जा रहा है ताकि अनहोनी को रोक जा सके ।
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ‘मकर-संक्रान्ति’ कहलाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा गया है। इस तरह मकर-संक्रान्ति एक प्रकार से देवताओं का प्रभातकाल है। इस दिन स्नान, दान,जप,तप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है। इस अवसर पर किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है।
मकर संक्रांति लगने के समय से 20 घटी (8 घण्टा) पूर्व और 20 घटी (8 घण्टा) पश्चात् पुण्य काल होता है। इसी में तीर्थादि स्नान तथा दान करना चाहिए।
मकर-संक्रान्ति के दिन स्नान न करने वाला व्यक्ति जन्मजन्मान्तर में रोगी तथा निर्धन होता है-
रविसंक्रमणे प्राप्ते न स्नायाद्यस्तु मानवः।
सप्तजन्मनि रोगी स्यान्निर्धनश्चैव जायते।।(धर्मसिन्धु)
मकर-संक्रान्ति के दिन गंगास्नान तथा गंगा तटपर दान की विशेष महिमा है। तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर का मकर-संक्रान्ति का पर्वस्नान तो प्रसिद्ध ही है। मकर-संक्रान्ति के विषय में संत तुलसीदास जी ने लिखा है-
माघ मकरगत रबि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
ऐसा कहा जाता है कि गंगा,यमुना, और सरस्वती के संगमपर प्रयाग में मकर-संक्रान्ति के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं। अतएव वहाँ मकर-संक्रान्ति के दिन स्नान करना अनन्त पुण्यों को एक साथ प्राप्त करना माना जाता है।
देखिये काशी के दशाश्वमेध घाट पर स्नान का क्रम
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