जारी है सम्मान का क्रम संस्कृत के प्रकांड विद्वान आचार्य रामयत्न शुक्ल का

जारी है सम्मान का क्रम संस्कृत के प्रकांड विद्वान आचार्य रामयत्न शुक्ल का

जारी है सम्मान का क्रम संस्कृत के प्रकांड विद्वान आचार्य रामयत्न शुक्ल का 
इन्नोवेस्ट न्यूज़  / 2 feb

शिक्षा के क्षेत्र में विशेषकर संस्कृति एवं साहित्य को देश ही नही अपितु विश्वपटल पर सम्मान दिलाने के साथ-साथ शैक्षणिक संरक्षण एवं संवर्धन में उत्कृष्ट विश्वव्यापी योगदान करने पर भारत सरकार द्वारा वर्ष 2021 का पद्मश्री पुरस्कार उत्तर प्रदेश ही नही सम्पूर्ण विश्व में भारत का शिक्षा के क्षेत्र में गौरवान्वित करने वाले काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष और संस्कृत के प्रकांड विद्वान आचार्य रामयत्न शुक्ल को पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजा गया है।

जीवन परिचय 
वर्ष 1932 में वाराणसी में जन्में आचार्य रामयत्न शुक्ल बचपन से ही संस्कृत में विशेष रुचि थी।संस्कृत के प्रकांड विद्वान आचार्य रामयत्न शुक्ल के पिता रामनिरंजन शुक्ल जी भी संस्कृत के विद्वान थें। आचार्य  रामयत्न शुक्ल  धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज और स्वामी चैतन्य भारती से वेदांत शास्त्र,पंडित प्रवर हरिराम शुक्ल जी से मीमांसा शास्त्र और पंडित रामचंद्र शास्त्री जी से दर्शन शास्त्र,योग आदि की शिक्षा ली थी।आचार्य रामरत्न शुक्ल बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में आचार्य के पद पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। 89 वर्ष की आयु में भी आचार्य रामयत्न शुक्ल नई पीढ़ी को संस्कृत से जोड़ने की मुहिम चला रहे है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में आचार्य से पहले उन्होंने संन्यासी संस्कृत महाविद्यालय में व्याकरण विभागाध्यक्ष के पद पर से कैरियर की शुरुआत की थी। उसके बाद शुक्ल गोयनका संस्कृत विद्यालय में प्राचार्य के पद पर नियुक्त हुए और फिर आगे चल कर बी.एच.यू में उन्होंने सेवाएं प्रदान की।

संस्कृत से प्रेम 
सबके महत्वपूर्ण एवं रोचक बात ये है जहाँ आज के दौर में शिक्षा गली चौराहों पर बिक रही है ऐसे में सैकड़ों बच्चों-बच्चियों को मुफ़्त में साहित्य एवं संस्कृति शिक्षा देने वाले आचार्य रामयत्न शुक्ल  89 वर्ष की आयु में भी युवाओं को संस्कृत के प्रति जागरूक कर रहे है। युवा पीढ़ी को संस्कृत से जोड़ने के लिए वें उन्हें मुक्त शिक्षा भी देते हैं।आचार्य रामयत्न शुक्ल ने अध्टाध्यायी की वीडियो रिकार्डिंग तैयार करवायी है,जिसके माध्यम से संस्कृत के लुप्त होते ज्ञान को सहज रूप में नई पीढ़ी तक पहुँचा रहे हैं। इसके लिए सैकड़ों सम्मान के साथ ही उन्हें वर्ष 2015 में संस्कृत के शीर्ष सम्मान ‘विश्वभारती’ से भी सम्मानित किया जा चुका है ।

सम्मान का सिलसिला 
इस वर्ष पद्मश्री के घोषणा में बनारस के तीन हस्तियों का नाम शुमार था। लेकिन संस्कृत के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले आचार्य को लेकर बनारस में एक खास उत्साह रहा। सम्मान करने का मानो होड़ सी लग गयी। इस क्रम में बनारस में सेवा भारती का युवा आयामयुवा भारती के हिमांशु राज ,प्रशान्त त्रिपाठी ,सचिन मिश्र ,डॉ०कृष्णा ,अंकित ,कुशाग्र सहित कई गणमान्यों ने उनके आवास पर वृहद सम्मान के साथ आशीर्वाद लिया।

 

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