दिन के अनुसार जाने प्रदोष व्रत का फायदा
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 9 मार्च
– वार के अनुसार प्रदोष व्रत का फल
– प्रदोष व्रत करने का विधान
भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में भगवान शिवजी की विशेष महिमा है। तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में भगवान शिव ही देवाधिदेव महादेव की उपमा से अलंकृत हैं। भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख है। कलियुग में भगवान शिवजी की प्रसन्नता के लिए किए जाने वाला प्रदोष व्रत अत्यन्त चमत्कारी माना गया है। प्रदोष व्रत से दु:ख-दारिद्र्य का नाश होता है। जीवन में सुख-समृद्धि खुशहाली आती है, जीवन के समस्त दोषों के शमन के साथ ही सुख-समृद्धि का सुयोग बनता है। सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्त पर्यन्त जो त्रयोदशी तिथि हो, उसी दिन यह व्रत रखा जाता है।
प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि प्रदोष बेला होने पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस बार यह व्रत 10 मार्च, बुधवार को रखा जाएगा। फाल्गुन कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 10 मार्च, बुधवार को दिन में 2 बजकर 41 मिनट पर लगेगी जो कि 11 मार्च, गुरुवार को दिन में 2 बजकर 40 मिनट तक रहेगी। प्रदोष बेला में त्रयोदशी तिथि का मान 10 मार्च, बुधवार को होने के फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। प्रदोष बेला की अवधि दो या तीन घटी मानी गई है, एक घटी 24 मिनट की होती है। इसी अवधि में भगवान् शिवजी की पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए। व्रत वाले दिन व्रतकर्ता को सम्पूर्ण दिन निराहार व निराजल रहना चाहिए। सायंकाल सूर्यास्त के पूर्व पुन: स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर प्रदोष बेला में भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
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वार के अनुसार प्रदोष व्रत का फल
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग प्रभाव है। वारों (दिनों) के अनुसार सात प्रदोष व्रत माने गए हैं, जैसे—रवि प्रदोष-आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष-शान्ति एवं रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि, भौम प्रदोष-कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष-मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष-विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूॢत, शनि प्रदोष-पुत्र सुख की प्राप्ति। अभीष्ट-मनोकामना की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है।
प्रदोष व्रत करने का विधान
व्रतकर्ता को प्रात:काल शुभ घड़ी ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होना चाहिए। अपने इष्ट देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। व्रतकर्ता को दिनभर निराहार रहना चाहिए। सायंकाल प्रदोष बेला में पुन: स्नान करके यथासम्भव धुले हुए या स्वच्छ वस्त्र धारण कर श्रद्धा भक्ति व आस्था के साथ भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अॢपत करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा विशेष फलदायी होती है। भगवान् शिवजी की महिमा में शिवमन्त्र का जप तथा स्कन्दपुराण में वॢणत प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं प्रदोष व्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए जिससे मनोकामना की पूर्ति होती है। व्रत से सम्बन्धित कथाएँ भी सुननी चाहिए। यह व्रत महिलाएँ एवं पुरुष दोनों के लिए फलदायी है। इस दिन अपनी दिनचर्या सुव्यवस्थित रखते हुए भगवान शिवजी की अर्चना करने पर शीघ्र लाभ होता है। शिवजी की महिमा में रखे जाने वाला प्रदोष व्रत जीवन के समस्त दोषों का शमन करके सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। व्रत के दिन अपनी सामथ्र्य के अनुसार ब्राह्मणों को दान करना चाहिए, साथ ही गरीबों व असहायों की सेवा व सहायता अवश्य करनी चाहिए, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली बनी रहे।
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