गौरा पहुंची ससुराल, उड़ा रंग-गुलाल

गौरा पहुंची ससुराल, उड़ा रंग-गुलाल

गौरा पहुंची ससुराल, उड़ा रंग-गुलाल

इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 24 मार्च

आज बनारस के नाथ विश्वनाथ ने काशीवाशी के साथ रंग अबीर उड़ाया। हर शहर में होली की अपनी धूम होती हैं अपना अंदाज होता हैं ऐसा ही कुछ अलग अंदाज शिव की नगरी काशी में होती हैं। एकादशी के दिन माँ पार्वती पति अौघड़ दानी संग शिव संग रजत पालकी पर सवार होकर निकलते हैं इस दौरान भक्त जमकर रंग अबीर खेलते हैं और भक्त नारा लगाते हैं हर हर महादेव।

फाल्गुन शुक्ल एकादशी यानि रंगभरी एकादशी आज 24 मार्च को काशी के पुराधिपति अपने परिवार संग भक्तो से रंगअबीर खेला ,मौका था भगवान शंकर संग गौरा, लाडले गनेश को गोद में संभाले , ससुराल जाने का। मंदिर के हर ओर गुलाब के फुले और महामंगलमय अबीर-गुलाल उड़ा। रवायतों की मानें तो यही से काशी की होली की शुरुआत मानी जाती हैं।

बसंत पंचमी को चढ़ता है तिलक –
औघड़दानी के विवाह की रस्म बसंत पंचमी से शुरू होती है, जो कि पार्वती जी की विदाई संग विराम लेती है। बसंत पंचमी को बाबा का तिलक चढ़ता है। इसके बाद महाशिवरात्रि को भगवान शंकर, माता पार्वती संग ब्याह रचाते हैं और भोलेदानी अपनी ससुराल रुक जाते हैं। इसके बाद एकादशी तिथि को अपनी दुल्हन पार्वती का गौना कराते हैं।

पूर्व महंत आवास से निकलती है रजत सवारी –
रंगभरी एकादशी को पूर्व महंत आवास से मंदिर तक शिव परिवार की अद्भुत सवारी निकलती है। परम्परानुसार पूर्व महंत आवास ही पार्वती की ससुराल है। विश्वनाथ मंदिर को पार्वती का मायका माना जाता है। भगवान शंकर, माता पार्वती का गौना कराने शाम को निकलते हैं। लकड़ी के पर रजत पत्तरों से युक्त सिंहासन पर विराजमान शिव परिवार जब राजशाही टोपी पहनकर वाद्ययंत्रों के साथ पुजारियों के कांधे पर सवार होकर निकलते है तो कण-कण से हर-हर महादेव का उद्घोष मुखरित होने लगता है। इसमें शामिल होने के लिए शिवभक्तों का उत्साह उफान मारता है और सभी बारी-बारी से कांधा देते हैं। रजत ˜त्रिशूल व डमरू तथा पीतल के विजयघंट संग निकले शिव परिवार के दरस- परस को टकटकी लगाये भक्तों का अंतर्मन खुशी से झूम उठता है। मंदिर पहुंचने के बाद भगवान शंकर परिवार संग भक्तों से अबीर- गुलाल की होली खेलते हैं। यह सिलसिला देर रात तक चलता है। इसके साथ ही बाबा की ड्योढ़ी से काशी में फागुन की शुरुआत होती है, जो कि बुढ़वा मंगल तक चलता है। रात 12 बजे के पूर्व दूल्हे देवाधिदेव महादेव के संग दुल्हन गौरा अपने ससुराल पहुंचती हैं।

सैकडों साल पुरानी है परम्परा –
बाबा विश्वनाथ के दरबार में रंगभरी एकादशी की परम्परा अनादि काल से चली आ रही है। शोभायात्रा की ज्ञात तिथि 1842 मानी जाती है। हालांकि इसका इतिहास और भी पुराना माना जाता है। पहले काठ के पालकी पर शिव परिवार की शोभायात्रा निकलती थी, लेकिन 1890 में स्वर्गीय पं.रामदत्त त्रिपाठी के समय पहली बार रजत सिंहासन पर भगवान शंकर, माता पार्वती व गणोश की चल रजत प्रतिमाओं को सुशोभित किया गया था, जो कि अब तक बरकरार है और आगे भी रहेगा। चल रजत प्रतिमाएं अनादि काल की हैं। पहली बार स्व. पं. विशेश्वर दयाल त्रिपाठी के सान्निध्य में शोभायात्रा निकाली गयी थी।

यह भी पढ़िए –
BHU में लॉकडाउन , पढ़ाई शुरू होने से पहले ही बंद करने का आदेश
गंगा की अविरलता एवं निर्मलता के लिए नालों को करना होगा बंद- प्रो विश्वम्भर नाथ मिश्रा
गोदौलिया स्थित मल्टीस्टोरी पार्किंग पर आपत्ति
गोदौलिया स्थित मल्टीस्टोरी पार्किंग पर आपत्ति
प्रदेश में 1130 फर्जी अध्यापक सभी डिग्री संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के

पढ़िए , विशेष में ……
इन्हें भी जानिए ,नुकसान रोज पपीता खाने से
पढ़िए ,जनेऊ क्या है और इसकी क्या है महत्ता
धर्मनगरी – काशी विश्वनाथ से जुड़ीं अनसुनी सत्य

 

खबरों को वीडिओ में देखिये

पूर्व विधायक को किससे है जान का खतरा

सच अमृत कलश की , क्या अभी भी है अमृत कलश का अस्तित्व

शुलटंकेश्वर महादेव – जहां से बदलती हैं गंगा अपनी धार

#Mata_sharada मैहर का नाम कैसे पड़ा क्या गिरा था यहाँ सती का ?

छात्रों में भगत सिंह के शहादत पर तकरार

https://innovest.co.in/8746/

 


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!