
होलिका दहन
होलिकादहन आज , कल दर्शन करिये चौसट्ठी देवी का
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 27 मार्च
@ दहन से पूर्व पूजन और परिक्रमा का है विधान
@ हिरणकश्यप की बहन थी होलिका
@ जिसे न जलने का वरदान
@ शाम 06.37 से 8.56 तक का शुभ समय
@ बनारस में 3500 होलिका है स्थपित
बुराइयों को भस्मीभूत करने की रात आ गयी। माना जाता है कि होलिका में प्रज्ज्वलित अग्नि के साथ वातावरण में फैली अशुद्धियां नष्ट हो जाती है। शहर में जगह-जगह लकड़ियों व झाड़-झंकरों और पुराने टूटे-फूटे फर्नीचरों के ढेर पर स्थापित भक्त प्रह्लाद को गोद में लिए हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के विग्रह आज रविवार की रात दहन हो जाएगी। इसके साथ ही सामाजिक समरसता के प्रतीक फाग के रंग बरसने लगेंगे। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार होलिका दहन का शुभ काल 28 मार्च को गोधूलि बेला 6 बजकर 37 मिनट से 8 बजकर 56 मिनट तक का है। ऐसे में सोमवार को होली मनायी जाएगी। कहीं-कहीं मंगलवार को भी होली मनायी जायेगी।
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होलिका दहन , लाभ और उसके राख के फायदे
पिछले एक पखवारे से तैयारियां पूरे रंगत में है । गली-मुहल्लों और चट्टी-चौराहे पर होली की टोलियां होलिका का चंदा बटोरने में जुटी रही थी। बच्चों का चंदा जुटाते गोल जगह-जगह नजर आया। राहगिरों और सवारी व निजी वाहनों को रोक-रोक चंदा की वसूली की गयी।गलियों में छोटे-छोटे बच्चे रस्सी और बांस की बैरिकेडिंग कर चंदा ऐंठते रहे। ज्योतिष के अनुसार भद्रा के दिन चतुर्दशी और प्रतिप्रदा में होली जलाना वर्जित है। अगर होली गलती से जल जाए तो देश व राज्य के लिए अशुभ होता है। काशी में होली 29 को और अन्य प्रांतों में 30 को होली मनायी जाएगी।
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चौसट्ठी देवी – चैत्र प्रतिपदा यानि होली के दिन देवी का प्राकट्य दिवस
होली की शाम को 64 योगिनियों की अधिष्ठात्री चौसट्ठी देवी के दर्शन की भी धार्मिंक मान्यता निभायी जाएगी। काशीखण्ड के 45वें अध्याय के 44वें श्लोक में इनके दर्शन का उल्लेख मिलता है। धार्मिंक मान्यताओं- परम्पराओं और लोक आस्थाओं में रची-बसी अविनाशी काशी में एक ऐसा मंदिर जहां होली के दिन दर्शन-पूजन का विशेष महात्म्य है। मां चौसट्ठी देवी का मंदिर दशाश्वमेध क्षेत्र के बंगाली टोला की तंग गलियों में स्थापित है। इसके अलावा दशाश्वमेध घाट पर उतर कर बांयी ओर सम्पर्क घाटों की कतार चौसट्ठी घाट तक ले जाएगी। जहां करीब 64 सीढ़ियां पार करते ही मइया रानी का दरबार मिलेगा।माता का भव्य मंदिर अतिप्राचीन है। इस बाबत मंदिर के पुजारी चुन्नी लाल पण्ड्या ने बताया कि चैत्र प्रतिपदा के दिन माता के दर्शन की धार्मिंक मान्यता है। इसी दिन माता रानी प्राकट्य हुई थी। इनके दर्शन से भूत-प्रेत, बाधा-विघ्न और पाप-दोष से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही स्त्रियों के दर्शन से उन्हें गर्भ सम्बंधी समस्याओं से निजात भी मिल जाती है। दिन विशेष पर माता रानी के दर्शन और अबीर-गुलाल चढ़ाने की पौराणिक परम्परा आज भी कायम है। होली की शाम श्रद्धालुओं का तांता लगता है। मंदिर में होली के अलावा नवरात्र के नौ दिन मइया रानी का मुखौटा बदल-बदलकर पूजन होता है तथा दीपावली पर अन्नकूट झांकी भी सजायी जाती है।
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