13 अप्रैल से चैत्र नवरात्र , जानिये क्यों है ये ख़ास , क्या मिलता है फल

13 अप्रैल से चैत्र नवरात्र , जानिये क्यों है ये ख़ास , क्या मिलता है फल

 

 

– धर्म नगरी
 13 अप्रैल से चैत्र नवरात्र , जानिये क्यों है ये ख़ास , क्या मिलता है फल
इन्नोवेस्ट न्यूज़  / 10 अप्रैल

ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नववर्ष का प्रारम्भ माना जाता है। इसे भारतीय संवत्सर भी कहते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। नववर्ष के प्रारम्भ में नौ दिन तक वासन्तिक (चैत्र) नवरात्र कहलाता है। नवरात्र के पावन पर्व पर जगत्जननी माँ जगदम्बा दुर्गाजी की पूजा-अर्चना की विशेष महत्ता है। वासन्तिक नवरात्र में भगवती की आराधना से इच्छित फल की प्राप्ति होती है।

वर्ष में होते हैं चार नवरात्र

2 गुप्त नवरात्र (आषाढ़ व माघ के शुक्लपक्ष) और 2 प्रत्यक्ष नवरात्र (चैत्र व आश्विन  के शुक्लपक्ष)। वसन्त ऋतु में दुर्गाजी की पूजा-आराधना से जीवन के सभी प्रकार की बाधाओं की निवृत्ति होती है। वासन्तिक नवरात्र में शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वती जी की विशेष आराधना फलदायी मानी गई है। माँ दुर्गा व नौ गौरी के नौ-स्वरूपों की पूजा-अर्चना से सुख-समृद्धि, खुशहाली मिलती है। भगवती की प्रसन्नता के लिए शुभ संकल्प के साथ नवरात्र के शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना करके व्रत या उपवास रखकर श्रीदुर्गासप्तशती के पाठ व मन्त्र का जप करना विशेष लाभकारी माना गया है।

 

 

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माँ जगदम्बा की आराधना का विधान

माँ जगदम्बा के नियमित पूजा में सर्वप्रथम कलश की स्थापना की जाती है। प्रख्यात ज्योतिॢवद् विमल जैन ने बताया कि इस बार नवरात्र 13 अप्रैल, मंगलवार से 21 अप्रैल, बुधवार तक रहेगा। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 12 अप्रैल, सोमवार को प्रात: 8 बजकर 01 मिनट पर लगेगी जो कि 13 अप्रैल, मंगलवार को प्रात: 10 बजकर 17 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि के मान के अनुसार 13 अप्रैल, मंगलवार को प्रतिपदा तिथि रहेगी।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

13 अप्रैल, मंगलवार, प्रात: 10 बजकर 17 मिनट तक। कलश स्थापना के लिए कलश लोहे या स्टील का नहीं होना चाहिए। शुद्ध मिट्टी में जौ के दाने भी बोए जाने चाहिए। माँ जगदम्बा को लाल चुनरी, अढ़उल के फूल की माला, नारियल, ऋतुफल, मेवा व मिष्ठान आदि अॢपत करके शुद्ध देशी घी का दीपक जलाना चाहिए। दुर्गासप्तशती का पाठ एवं मन्त्र का जप करके आरती करनी चाहिए। माँ जगदम्बा की आराधना अपने परम्परा व धाॢमक विधान के अनुसार करना शुभ फलदायी रहता है।

 

 

 

माँ गौरी के नौ स्वरूप
वासन्तिक नवरात्र में नौ गौरी के दर्शन-पूजन के क्रम में

प्रथम-मुख निर्मालिका गौरी, द्वितीय-ज्येष्ठा गौरी, तृतीय-सौभाग्य गौरी, चतुर्थ-शृंगार गौरी, पंचम-विशालाक्षी गौरी, षष्ठ-ललिता गौरी, सप्तम-भवानी गौरी, अष्टम्-मंगला गौरी और नवम्-सिद्ध महालक्ष्मी गौरी। नवरात्र में जगत् जननी माँ दुर्गा के नौ-स्वरूपों की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्त्व है।

माँ दुर्गा के नौ स्वरूप

प्रथम-शैलपुत्री, द्वितीय-ब्रह्मचारिणी, तृतीय-चन्द्रघण्टा, चतुर्थ-कुष्माण्डा देवी, पंचम-स्कन्दमाता, षष्ठ-कात्यायनी, सप्तम-कालरात्रि, अष्टम-महागौरी एवं नवम्-सिद्धिदात्री। काशी में नौ दुर्गा एवं नौ गौरी के मन्दिर प्रतिष्ठित हैं। जहाँ भक्तगण अपनी मनोकामना की पूॢत के लिए नवरात्र में विशेष दर्शन-पूजन करके लाभान्वित होते हैं।

 

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पालन करें

व्रतकर्ता को अपनी दिनचर्या नियमित व संयमित रखनी चाहिए। अपने परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र भोजन अथवा कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। व्यर्थ के कार्यों तथा वार्तालाप से बचना चाहिए। नित्य प्रतिदिन स्वच्छ व धुले हुए व धारण करने चाहिए। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। क्षौरकर्म नहीं करवाना चाहिए। माँ जगदम्बा व कलश के समक्ष शुद्ध देशी घी का अखण्ड दीप प्रज्वलित करके धूप जलाकर आराधना करना शुभ फलदायक रहता है। नवरात्र में यथासम्भव रात्रि जागरण करना चाहिए। माता जगत् जननी की प्रसन्नता के लिए सर्वसिद्धि प्रदायक सरल मंत्र ‘ॐ  ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ” का जप अधिकतम संख्या में नित्य करना लाभकारी रहता है। नवरात्र के पावन पर्व पर माँ दुुर्गा की पूजा-अर्चना करके अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।

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