जानिये , इस वासंतिक नवरात्र से जुड़ीं सभी जानकारियां

जानिये , इस वासंतिक नवरात्र से जुड़ीं सभी जानकारियां

 जानिये , इस वासंतिक नवरात्र से जुड़ीं सभी जानकारियां
इन्नोवेस्ट न्यूज़ / 12  अप्रैल

ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नववर्ष का प्रारम्भ माना जाता है। इसे भारतीय संवत्सर भी कहते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। नववर्ष के प्रारम्भ में नौ दिन तक वासन्तिक (चैत्र) नवरात्र कहलाता है। नवरात्र के पावन पर्व पर जगत्जननी माँ जगदम्बा दुर्गाजी की पूजा-अर्चना की विशेष महत्ता है। वासन्तिक नवरात्र में भगवती की आराधना से इच्छित फल की प्राप्ति होती है।

वर्ष में होते हैं चार नवरात्र

2 गुप्त नवरात्र (आषाढ़ व माघ के शुक्लपक्ष) और 2 प्रत्यक्ष नवरात्र (चैत्र व आश्ïिवन के शुक्लपक्ष)। वसन्त ऋतु में दुर्गाजी की पूजा-आराधना से जीवन के सभी प्रकार की बाधाओं की निवृत्ति होती है। वासन्तिक नवरात्र में शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वती जी की विशेष आराधना फलदायी मानी गई है। माँ दुर्गा व नौ गौरी के नौ-स्वरूपों की पूजा-अर्चना से सुख-समृद्धि, खुशहाली मिलती है। भगवती की प्रसन्नता के लिए शुभ संकल्प के साथ नवरात्र के शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना करके व्रत या उपवास रखकर श्रीदुर्गासप्तशती के पाठ व मन्त्र का जप करना विशेष लाभकारी माना गया है।

माँ जगदम्बा की आराधना का विधान

माँ जगदम्बा के नियमित पूजा में सर्वप्रथम कलश की स्थापना की जाती है। प्रख्यात ज्योतिॢवद् विमल जैन ने बताया कि इस बार नवरात्र 13 अप्रैल, मंगलवार से 21 अप्रैल, बुधवार तक रहेगा। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 12 अप्रैल, सोमवार को प्रात: 8 बजकर 01 मिनट पर लगेगी जो कि 13 अप्रैल, मंगलवार को प्रात: 10 बजकर 17 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि के मान के अनुसार 13 अप्रैल, मंगलवार को प्रतिपदा तिथि रहेगी।

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कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

13 अप्रैल, मंगलवार, प्रात: 10 बजकर 17 मिनट तक। कलश स्थापना के लिए कलश लोहे या स्टील का नहीं होना चाहिए। शुद्ध मिट्टी में जौ के दाने भी बोए जाने चाहिए। माँ जगदम्बा को लाल चुनरी, अढ़उल के फूल की माला, नारियल, ऋतुफल, मेवा व मिष्ठान आदि अॢपत करके शुद्ध देशी घी का दीपक जलाना चाहिए। दुर्गासप्तशती का पाठ एवं मन्त्र का जप करके आरती करनी चाहिए। माँ जगदम्बा की आराधना अपने परम्परा व धाॢमक विधान के अनुसार करना शुभ फलदायी रहता है।

माँ गौरी के नौ स्वरूप

वासन्तिक नवरात्र में नौ गौरी के दर्शन-पूजन के क्रम में
प्रथम-मुख निर्मालिका गौरी, द्वितीय-ज्येष्ठा गौरी, तृतीय-सौभाग्य गौरी, चतुर्थ-शृंगार गौरी, पंचम-विशालाक्षी गौरी, षष्ठ-ललिता गौरी, सप्तम-भवानी गौरी, अष्टम्-मंगला गौरी और नवम्-सिद्ध महालक्ष्मी गौरी। नवरात्र में जगत् जननी माँ दुर्गा के नौ-स्वरूपों की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्त्व है।

माँ दुर्गा के नौ स्वरूप
प्रथम-शैलपुत्री, द्वितीय-ब्रह्मचारिणी, तृतीय-चन्द्रघण्टा, चतुर्थ-कुष्माण्डा देवी, पंचम-स्कन्दमाता, षष्ठ-कात्यायनी, सप्तम-कालरात्रि, अष्टम-महागौरी एवं नवम्-सिद्धिदात्री। काशी में नौ दुर्गा एवं नौ गौरी के मन्दिर प्रतिष्ठित हैं। जहाँ भक्तगण अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए नवरात्र में विशेष दर्शन-पूजन करके लाभान्वित होते हैं।

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आवश्यक सावधानियां

व्रतकर्ता को अपनी दिनचर्या नियमित व संयमित रखनी चाहिए। अपने परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र भोजन अथवा कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। व्यर्थ के कार्यों तथा वार्तालाप से बचना चाहिए। नित्य प्रतिदिन स्वच्छ व धुले हुए व धारण करने चाहिए। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। क्षौरकर्म नहीं करवाना चाहिए। माँ जगदम्बा व कलश के समक्ष शुद्ध देशी घी का अखण्ड दीप प्रज्वलित करके धूप जलाकर आराधना करना शुभ फलदायक रहता है। नवरात्र में यथासम्भव रात्रि जागरण करना चाहिए। माता जगत् जननी की प्रसन्नता के लिए सर्वसिद्धि प्रदायक सरल मंत्र ‘ॐ  ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ” का जप अधिकतम संख्या में नित्य करना लाभकारी रहता है। नवरात्र के पावन पर्व पर माँ दुुर्गा की पूजा-अर्चना करके अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।

 

 

नवदुर्गा को नौ दिन क्या-क्या करें अर्पित ?

नवरात्र में नौदुर्गा को अलग-अलग तिथि के अनुसार उनकी प्रिय वस्तुएँ अॢपत करने का महत्व है। जिनमें प्रथम दिन (प्रतिपदा)—उड़द, हल्दी, माला-फूल। द्वितीय दिन (द्वितिया)—तिल, शक्कर, चूड़ी, गुलाल, शहद। तृतीय दिन (तृतीया)—लाल व , शहद, खीर, काजल। चतुर्थ दिन (चतुर्थी)—दही, फल, ङ्क्षसदूर, मसूर। पंचम दिन (पंचमी)—दूध, मेवा, कमलपुष्प, बिन्दी। षष्ठ दिन (षष्ठïी)—चुनरी, पताका, दूर्वा। सप्तम दिन (सप्ïतमी)—बताशा, इत्र, फल-पुष्प। अष्टम दिन (अष्टïमी)—पूड़ी, पीली मिठाई, कमलगट्टा, चन्दन, व । नवम् दिन (नवमी)—खीर, सुहाग सामग्री, साबूदाना, अक्षत फल, बताशा आदि।

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दुर्गासप्तशती के कितने पाठ से होते हैं मनोरथ पूरे? 

दुर्गासप्तशती के एक पाठ से फलसिद्धि, तीन पाठ से उपद्रव शान्ति, पाँच पाठ से सर्वशान्ति, सात पाठ से भय से मुक्ति, नौ पाठ से यज्ञ के समान फल की प्राप्ति, ग्यारह पाठ से राज्य की प्राप्ति, बारह पाठ से कार्यसिद्धि, चौदह पाठ से वशीकरण, पन्द्रह पाठ से सुख-सम्पत्ति, सोलह पाठ से धन व पुत्र की प्राप्ति, सत्रह पाठ से राजभय व शत्रु तथा रोग से मुक्ति, अठारह पाठ से प्रिय की प्राप्ति, बीस पाठ से ग्रहदोष शान्ति और पच्चीस पाठ से बन्धन से मुक्ति। सम्पूर्ण एक दिन, तीन दिन, पाँच दिन, सात दिन अथवा नौ दिन तक नियमपूर्वक व्रत रखकर आराधना करने की धाॢमक मान्यता है। नवरात्र में व्रत रखने के पश्चात् व्रत की समाप्ति पर हवन आदि करके निमन्त्रित की हुई कुमारी कन्याओं एवं बटुकों का पूर्ण आस्था व श्रद्धाभक्ति के साथ शुद्ध जल से चरण धोकर पूजन करने के पश्चात् उनको पौष्टिक व रुचिकर भोजन करवाना चाहिए। तत्पश्चात् उन्हें अपनी सामथ्र्य के अनुसार नये व , ऋतुफल, मिष्ठान्न तथा नगद द्रव्य आदि देकर उनके चरणस्पर्श करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। जिससे माता भगवती की कृपा बनी रहे।

चैत्र शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि
19 अप्रैल, सोमवार को अद्र्धरात्रि 12 बजकर 02 मिनट पर लगेगी जो अगले दिन 20 अप्रैल, मंगलवार को अद्र्धरात्रि के पश्चात 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगी। तत्पश्चात् नवमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी। अष्टमी तिथि का हवन, कुँवारी पूजन महानिशा पूजा 20 अप्रैल, मंगलवार को ही सम्पन्न होगी। उदया तिथि के मुताबिक 20 अप्रैल, मंगलवार को अष्टमी तिथि का मान रहने से महाअष्टमी, दुर्गाष्टïमी का व्रत आज ही रखा जाएगा। नवरात्र व्रत का पारण दशमी तिथि को विधि-विधानपूर्वक किया जाएगा। नवरात्र के धार्मिक अनुष्ठान में कुमारी कन्याओं की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करना लाभकारी रहेगा। कुमारी कन्याओं को त्रिशक्ति यानि महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती देवी का स्वरूप माना गया है। कुमारी कन्याओं के साथ बटुक की भी पूजा करने का नियम है।

कैसे करें व्रत का पारण

नवरात्र व्रत के पारण के अन्तर्गत अपनी अभीष्ट की पूर्ति के लिए हवन करने के पश्चात् अलग-अलग वर्ण या सभी वर्णों की कन्याओं का पूजन करना चाहिए।

देवीभागवत ग्रन्थ के अनुसार कुंवारी कन्याओं के पूजन का फल

(1) ब्राह्मण वर्ण की कन्या-शिक्षा ज्ञानार्जन व प्रतियोगिता, (2) क्षत्रिय वर्ण की कन्या-सुयश व राजकीय पक्ष से लाभ, (3) वैश्य वर्ण की कन्या-आॢथक समृद्धि व धन की वृद्धि के लिए, (4) शूद्र वर्ण की कन्या-शत्रुओं पर विजय एवं कार्यसिद्धि हेतु पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

कन्या की आयु के अनुसार की जाती है पूजा

दो वर्ष से दस वर्ष तक की कन्या को देवी स्वरूप माना गया है, जिनकी नवरात्र पर भक्तिभाव के साथ पूजा करने से भगवती प्रसन्न होती हैं। शास्त्रों में दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या-त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या-कल्याणी, पाँच वर्ष की कन्या-रोहिणी, छ: वर्ष की कन्या-काली, सात वर्ष की कन्या-चण्डिका, आठ वर्ष की कन्या-शाम्भवी एवं नौ वर्ष की कन्या-दुर्गा तथा दस वर्ष की कन्या-सुभद्रा के नाम से दर्शाया गया है। इनकी पूजा-अर्चना करने से मनोवांछित फल मिलता है। अस्वस्थ, विकलांग एवं नेत्रहीन आदि कन्याएँ पूजन हेतु वर्जित हैं। फिर भी इनकी उपेक्षा न करते हुए यथाशक्ति यथासामर्थ्य इनकी सेवा व सहायता करनी चाहिए। जिससे जगत् जननी माँ दुर्गा की कृपा सदैव बनी रहे।

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नवरात्र में करें नवग्रहों को प्रसन्न

ज्योतिॢवद् विमल जैन ने बताया कि नवरात्र में नौ ग्रहों की अनुकूलता के लिए भी विधि-विधानपूर्वक नवग्रह शान्ति करवाने के पश्ïचातï् नवग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी करना चाहिए। नवरात्र में ग्रहों की अनुकूलता के लिए पूजा-अर्चना करना विशेष लाभदायी रहता है।

राशि के अधिपति ग्रह का मन्त्र एवं जप एवं संख्या इस प्रकार है

मेष (मंगल) ॐ  अं अंगारकाय नम: (जप संख्या-10,000), वृषभ (शुक्र) ॐ शुं शुक्राय नम: (जप संख्या-16,000), मिथुन (बुध) ॐ बुं बुधाय नम: (जप संख्या-10,000), कर्क (चन्द्रमा) ॐ सों सोमाय नम: (जप संख्या-11,000), सिंह (सूर्य) ॐ घृणि सूर्याय नम: (जप संख्या-7,000), कन्या (बुध) ॐ बुं बुधाय नम: (जप संख्या-10,000), तुला (शुक्र) ॐ शुं शुक्राय नम: (जप संख्या-16,000),  वृश्चिक (मंगल) ॐ अं अंगारकाय नम: (जप संख्या-10,000), धनु (वृहस्पति) ú बृं बृहस्पतये नम: (जप संख्या-19,000), मकर (शनि) ॐ शं शनैश्चराय नम: (जप संख्या-23,000), कुंभ (शनि) ॐ शं शनैश्चराय नम: (जप संख्या-23,000), मीन (वृहस्पति) ॐ बृं बृहस्पतये नम: (जप संख्या-19,000)

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