पिडियाट्रिक डेन्टिस्ट – बच्चों के खराब दांत के दुष्परिणाम, कारण एवं उनका निदान

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बच्चों के दॉंतों में कीड़ा लगना तथा दन्तक्षय होना एक सामान्य स्वास्थ्य समस्या है। विष्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विष्व में लगभग 50.60ः बच्चों में दॉंतों में कीड़ा लगने की बीमारी पाई जाती है। भारत के भी 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे इससे प्रभावित हैं। विकसित एवं विकासशील दोनों प्रकार के देशों में यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। चिकित्सा विज्ञान की भाशा में दॉंतों की सड़न अथवा कीड़ा लगने को early childhood caries कहा जाता है और यदि यह 6 वर्ष से नीचे की अवस्था के बच्चे में पाई जाती है इसका प्रसार बहुत तेजी से होता है।

कैविटी के कारण
बच्चों के दॉंतों में caivity का निर्माण एवं प्रसार बहुत तेजी से होता है जिसके मुख्य कारण निम्न हैंः-
1. बच्चों के आहार में षर्करा एवं स्टार्च का अधिक मात्रा में होना
2. लम्बे समय तक बोतल के द्वारा दूध पीना
3. शहद अथवा अन्य मीठे पैसिफायर का प्रयोग
4. मुख एवं दॉंत स्वच्छ न रखना
5. बच्चों के मुख में कीटाणुओं का स्तर उच्च होना
6. बच्चों के दॉंतों की बाहरी ठोस परत का मोटाई कम होना
7. पानी में फ्लोराइड की कमी
8. अभिभावकों में जानकारी की कमी एवं जानकारी होने पर भी लापरवाही करना।

इसके परिणाम
भारत जैसे विकासषील देश में अधिकांश माता पिता बच्चों के दॉंतों की सड़न caivity को अनदेखा कर देते है। जिसके परिणामस्वरूप कई प्रकार की समस्याए पैदा हो सकती हैं।
1. पक्के दॉंतों का समय से पहले आ जाना
2. दॉंतों का टेढ़ा मेढ़ा होना
3. बच्चों को बोलने में परेषानी होना
4. चेहरे की सुन्दरता में कमी
5. बच्चों का पाचन बिगड़ जाना
6. भोजन को ठीक प्रकार से चबा न पाने की वजह से बच्चों के पोशण में कमी
7. बच्चों की षारीरिक वृद्धि प्रभावित होना
8. माता पिता पर आर्थिक बोझ बढ़ना
9. माता पिता एवं बच्चों दोनों का मानसिक तनाव बढ़ना

इन बातों का रखे ध्यान
बच्चों के माता-पिता यदि कुछ बातों का ध्यान रखें एवं कुछ आसान उपाय अपनाएं तो बच्चों में दॉंतों की सड़न को रोका अथवा कम किया जा सकता हैः-
1. प्रथम दॉंत के मुॅह के अन्दर दिखने के साथ ही ब्रष करना प्रारम्भ करें।
2. फ्लोराइड टूथपेस्ट का दिन में दो बार प्रयोग करें (3 साल से कम उम्र के बच्चों में फ्लोराइड टूथपेस्ट वर्जित है)।
3. सामान्य टूथपेस्ट की मात्रा 3 साल से कम उम्र के बच्चे के लिए “चावल के दाने” के बराबर तथा 3 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे के लिए “मटर के दाने” के बराबर होनी चाहिए।
4. यदि आप फ्लोराइड की अधिकता वाले क्षेत्र में रहते हैं तो फ्लोराइड टूथपेस्ट का प्रयोग न करें तथा कितनी मात्रा में फ्लोराइड लेना है इसके लिये बाल दन्त चिकित्सक से सम्पर्क करें।
5. आवश्यकता पड़ने पर डेन्टल फ्लास का प्रयोग बच्चों को करना सिखाएॅं।
6. यदि बच्चा सोते समय बोतल का प्रयोग करता है तो मीठी चीजों का प्रयोग न करें । बोतल पीने के बाद पानी से कुल्ला कराएं।
7. बच्चों को नियमित रूप से पौश्टिक आहार एवं थ्पइमते थ्ववक जैसे गाजर, मूली, सेव आदि का प्रयोग खाने के बाद करें।
8. प्रत्येक 6 माह पर बच्चों के दॉंतों की जॉंच बाल दन्त विषेशज्ञ से कराएं।

ये होते है उपचार
बच्चों के दॉंतों में कीड़ा लगने की स्थिति में तुरन्त बाल दन्त विषेशज्ञ से उपचार कराएं। उपचार इस बात पर निर्भर करता हैं कि कितना दन्तक्षय हुआ है। सामान्य रूप से –
– दॉंतों में फिलिंग या मसाला भरना
– रूट-कैनाल टीटमेंट
– अत्यधिक सड़े हुए दॉंतों का उखाड़ना
– समयपूर्व गिरे अथवा उखड़े दॉंतों के स्थान देकर, दो दॉंतों के बीच की जगह को सुरक्षित रखा जा सकता है। जिससे आने वाले दॉंत अपनी सही जगह पर आ जायें।
– यदि बच्चे को अंगूठा चूसने या मॅुह से सॉंस लेने की बीमारी है तो उन्हें haibiy breaking apliance देकर ठीक किया जा सकता है।



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