
पितृ पक्ष – जानिए पूरी जानकारी , 21 सितम्बर, मंगलवार से, 6 अक्टूबर, बुधवार को समापन ,
श्राद्ध के फायदे और कितने प्रकार के होते ये कर्म
जाको राखे …माँ बेटी ट्रैन के नीचे
प्राचीन परंपरा के अनुसार प्रतिवर्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष के रूप में मनाया जाता है। हम अपने स्वर्गलोक निवासी देवतुल्य पूर्वजों की आत्मा शांति एवं उन्हें तृप्त व संतुष्ट करने हेतु श्राद्ध, तर्पण पिंडदान सिद्दादान एवं जरूरतमंदो की मदद धर्म समझकर करते हैँ।
इन पंद्रह दिनों के दौरान हमारी उंगली पकड़कर पग-पग पर साथ चलने वाले हमारे पूर्वज अपने प्रति श्रद्धा का इम्तेहान लेते हैं, दरअसल इन पंद्रह दिनों के दौरान वो हमारे इर्द-गिर्द ही रहते हैं। ऐसे में अपने प्रति श्रद्धा का मूल्यांकन उनके द्वारा किया जाता है। संतुष्टि के पश्चात उनके द्वारा दिया गया आशीर्वाद जहाँ परिवार को खुशहाल बनाता है, वहीं उनकी उपेक्षा हम सभी के लिए भारी पढ़ती है। सत्य तो यह है कि बिना उनके तृप्त हुए आपको अपने ईष्ट देवी-देवता की पूर्ण कृपा भी नही मिल सकती, साथ ही समस्त ग्रह देवता भी प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
पितृ -दोष के कारण
आज बदलते परिवेश में नयी पीढ़ी की व्यस्त जिंदगी पारिवारिक गुरुओं द्वारा सही मार्गदर्शन का अभाव, विभिन्न भ्रांतियाँ, भय, अज्ञानता, अत्यंत सम्पन्नता या फिर इस धर्म को बोझ या दिखावा मात्र समझने की भूल अंततः पितृ-दोष को हमारे जीवन में घोल देती है। हमारा जीवन पारिवारिक कलेश, मांगलिक एवं वांछित कार्यों में रुकावट वंश-वृद्धि में रूकावट अकल्पित भय शारीरिक, मानसिक व पारिवारिक परेशानियाँ, अशांत मन, समस्याग्रस्त जीवन पथ आदि कष्टों के भवसागर में कब फस जाता है, हमको इसका अंदाजा भी नहीं होता। कुल मिलाकर हमारे जीवन का सुख दुख हमारी श्रद्धा पर निर्भर करता है, अगर देखा जाये तो हमारे समस्त बंद द्वारों के ताले की चाभी है- पितृ-धर्म। कहावत है- पितृ खुश तो इंसान राजा और नाखुश तो भिखारी।
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