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जीवित्पुत्रिका व महालक्ष्मी व्रत ,28 / 29 सितम्बर, वुधवार/ गुरुवार को
* पुत्र के दीर्घायु व आरोग्य के लिए महिलाएँ रखती हैं जीवित्पुत्रिका व्रत
तय तिथियों पर किए जाने वाले उपवास से मना की पूर्ति तो होती ही है साथ ही सुख-सौभाग्य में भी होती है। महालक्ष्मीजी को प्रसन्नता के लिए रखा जाने वाला श्रीमहालक्ष्मी व्रत 29 सितम्बर, गुरुवार को जाएगा। ज्योतिषविद् विनय जैन ने बताया कि आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन श्रीमहालक्ष्मी व्रत रखा जाता है।
पुत्र के आरोग्य व दीर्घायु के लिए महिलाएँ जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं। जोषिपुत्रिका का महिलाएँ भी रखती हैं, जिनके पुत्र जीवित नहीं रहते या अल्पायु रहते हो। यह व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी तिथि के दिन रखा जाता है। आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 28 सितम्बर, मंगलवार की सायं 6 बजकर 17 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 29 सितम्बर बुधवार की रात्रि 8 बजकर 30 मिनट तक रहेगी। चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी तिथि का मान 29 सितम्बर, बुधवार को होने के फलस्वरूप श्रीमहालक्ष्मी व्रत एवं जीवित्पुत्रिका (जिउतिया) व्रत इसी दिन रखा जाएगा।
व्रत-पूजा का विधान
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रत के दिन प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करने के पश्चात् श्रीमहालक्ष्मी जी के व्रत कर संकल्प लेना चाहिए। अपनी जीवनचर्या में पूर्ण शुचिता रखते हुए व्रत के प्रारम्भ में अष्टमी तिथि के दिन निराजल रहकर अपनी परम्परा और मान्यता के अनुसार विधि-विधानपूर्वक लक्ष्मीजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। दूसरे दिन नवमी तिथि के दिन व्रत का पारण किया जाता है। महालक्ष्मी जी के व्रत के पारण के पश्चात् ब्राह्मण को भोजन भी करवाकर दान-दक्षिणा देना चाहिए। आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जीमूतवाहन को भी पूजा-अर्चना करने का नियम है। जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा भी सुनो जाती है। धार्मिक-पारिवारिक रीति-रिवाज के अनुसार व्रत के प्रारम्भ में उड़द के साबूत दाने को महिलाएं निगल कर प्रारम्भ करती हैं। इसके पश्चात् अन्न व जल कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता ।
बच्चे सुत के साथ ही सोने व चाँदी के भी बनते हैं जिउतिया धागे का गण्डा बनाकर गण्डे की विधि-विधानपूर्वक पूजा की जाती है। व्रती महिलाएँ जिउतिया का सूत्र पूजनोपरान्त अपने गले में धारण करती हैं। जिउतिया सोने या चाँदी से भी बनवाया जाता है। जितिया लाल धागे के सूत्र में पुत्र की संख्या के अनुसार धारण किया जाता है। रक्षासूत्र के रूप में पुत्र को भी गले में जिउतिया धारण करवाया जाता है। सोलह दिन से चल रहे व्रत का पारण श्रीलक्ष्मीजी के दर्शन-पूजन के पश्चात् किया जाएगा। पुत्र को जीवनरक्षा तथा उत्तम आयु एवं सौभाग्य के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत अत्यन्त फलदायी बताया गया है। श्रद्धा आस्था व भक्तिभाव के साथ किए गए व्रत का फल शीघ्र ही मिलता है। श्रीमहालक्ष्मीजी के व्रत से जीवन में धन, ऐश्वर्य व वैभव की प्राप्ति तथा सुख-सौभाग्य म अभिवृद्धि के साथ ही खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होता है।
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