जो देश अपनी भाषा खो देता है, वो देश अपनी सभ्यता, संस्कृति और अपने मौलिक चिंतन को भी खो देता है-गृह मंत्री

जो देश अपनी भाषा खो देता है, वो देश अपनी सभ्यता, संस्कृति और अपने मौलिक चिंतन को भी खो देता है-गृह मंत्री



काशी भाषाओं का गोमुख-अमित शाह
हिंदी के उन्नयन के लिए काशी से शुरुआत हुई-गृह मंत्री
हिंदी का जन्म काशी से हुई है
1868 में काशी से ही शिक्षा हिंदी में हुई
हिंदी का पहला सम्‍मेलन राजधानी के बाहर होने में 75 वर्ष हो गये-योगी आदित्यनाथ
तुलसीदास यदि अवधि में रामायण न लिखे होते तो आज वह लुप्त हो गया होता
हिंदी का बड़ा काल खंड काशी से जुड़ा है-मुख्यमंत्री
आजादी की लड़ाई भी महात्मा गांधी ने हिंदी में ही लड़ा-योगी आदित्यनाथ

वाराणसी। भारत के गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने शनिवार को बड़ा लालपुर स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय हस्तकला संकुल के ऑडिटोरियम सभागार में राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय द्वारा आयोजित 13-14 नवम्बर (दो दिवसीय) अखिल भारतीय राजभाषा सम्‍मेलन का दीप प्रज्वलित कर विधिवत उद्घाटन किया। इस अवसर पर मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री आमित शाह ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के तहत पहली बार राजधानी से बाहर हा रहा है। यह नई शुरुआत है। आजादी का अमृत महोत्सव महत्वपूर्ण है। यह भविष्य के भारत के लिए संकल्प का समय है। यह संकल्प होना चाहिए कि हिंदी का वैश्विक स्‍वरूप हाे। स्थानीय भाषा और हिंदी पूरक है। राजभाषा विभाग की जिम्मेदारी है कि वह स्थानीय भाषा का भी विकास करे।
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि काशी हमेशा विद्या की राजधानी है। काशी सांस्कृतिक नगरी है। देश के इतिहास को काशी से अलग कर नहीं देख सकते। काशी भाषाओं का गोमुख है। हिंदी का जन्म काशी से हुई है। 1868 में काशी से ही शिक्षा हिंदी में हुई। हिंदी के उन्नयन के लिए काशी से शुरुआत हुई। पहली पात्रिका काशी से ही शुरू हुई। मालवीय जी ने हिंदी से पढ़ाई की चिंता की। उन्होंने कहा कि तुलसी दास को कैसे भूला जा सकता है, जिन्होंने यदि राम चरित मानस नहीं लिखा होता तो आज रामायण लोग भूल जाते। अनेक हिंदी के विद्वानों ने यहीं से भाषा को आगे बढ़ाया। हिंदी भाषा में विवाद खड़ा किया गया। एक समय ऐसा आएगा कि लोग हिंदी नहीं बोल सकेंगे तो लघुता महसूस होगी। जो देश अपनी भाषा को खो देता है तो वह संस्कृति को खो देता है। हिंदी अक्षर शब्द का प्रयोग है अर्थात जिसका कभी क्षरण नहीं हो सकता। जनता मन बना लें तो जो महर्षि देकर गए हैं वह जीवित होगा। उन्होंने अभिभावकों से अनुरोध किया कि वे अपनी भाषा में बोलें। भाषा जितनी समृद्धि होगी संस्कृति उतनी ही मजबूत होगी। युवाओं से उन्होंने अपील किया कि वे हिंदी में बोलने में गर्व महसूस करें।उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन को राजधानी दिल्ली से बाहर करने का निर्णय वर्ष 2019 में ही कर लिया था। लेकिन कोरोना काल की वजह से नहीं कर पाएं, लेकिन आज खुशी है कि ये नई शुभ शुरुआत आजादी के अमृत महोत्सव में होने जा रही है। अमृत महोत्सव, देश को आजादी दिलाने वाले लोगों की स्मृति को फिर से जीवंत करके युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने के लिए तो है ही, ये हमारे लिए संकल्प का भी वर्ष है। उन्होंने आजादी के अमृत महोत्सव के तहत देश के सभी लोगों का आह्वान करते हुए कहा कि स्वभाषा के लिए हमारा एक लक्ष्य जो छूट गया था, हम उसका स्मरण करें और उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। हिंदी और हमारी सभी स्थानीय भाषाओं के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं है। उन्होंने कहा कि मुझे गुजराती से ज्यादा हिंदी भाषा पसंद है। हमें अपनी राजभाषा को मजबूत करने की जरूरत है। गृहमंत्री ने कहा कि पहले हिंदी भाषा के लिए बहुत सारे विवाद खड़े करने का प्रयास किया गया था, लेकिन वो वक्त अब समाप्त हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गौरव के साथ हमारी भाषाओं को दुनिया भर में प्रतिस्थापित करने का काम किया है। गृहमंत्री ने कहा कि जो देश अपनी भाषा खो देता है, वो देश अपनी सभ्यता, संस्कृति और अपने मौलिक चिंतन को भी खो देता है। जो देश अपने मौलिक चिंतन को खो देते हैं वो दुनिया को आगे बढ़ाने में योगदान नहीं कर सकते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली लिपिबद्ध भाषाएं भारत में हैं। उन्हें हमें आगे बढ़ाना है।
मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में विशिष्ट अतिथि के रूप में लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आजादी के बाद पहला अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन काशी में हो रहा है। ईश्वर से अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा हमारी मातृ भाषा होती है। मनुष्य सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ कृति है। उन्होंने कहा कि हिंदी का पहला सम्‍मेलन राजधानी के बाहर होने में 75 वर्ष हो गए। तुलसी दास ने रामचरित मानस को रचा जो शिव की प्रेरणा से अवधी भाषा में लिखा गया। अवधि में रचित रामचरित मानस पिछले सैकड़ों वर्षो से रामलीला के माध्यम से जन सामान्य को मिला है। आज हर घर में रामचरित मानस रखा मिलेगा। उन्होंने विशेष रूप से जोर देते हुए कहा कि तुलसीदास यदि अवधि में रामायण न लिखे होते तो आज वह लुप्त हो गया होता। उन्होंने अपने मारीशस यात्रा का उल्लेख करते हुए बताया कि मारीशस के गांव में गए तो देखा कि उनके घरों में रामचरित मानस मौजूद है। वे आज भी उसकी पूजा करते हैं। वे पढ़ नहीं सकते लेकिन श्रवण कर उन्हें आज भी याद है। हिंदी का बड़ा काल खंड काशी से जुड़ा है। किन्तु हिंदी बराबर उपेक्षित रहा। आजादी की लड़ाई भी महात्मा गांधी ने हिंदी में ही लड़ा। पूरे देश को जोड़ने वाली हिंदी का सम्मेलन उत्तर प्रदेश विशेष कर प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में होने पर उन्होंने आभार जताया। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में राजभाषा हिंदी को बढ़ावा देने के लिए हिंदी के लिए कई पुरस्कार दिया जाता है। सात वर्ष पूर्व आमजन के अंदर आत्म़ विश्वास़ की कमी थी। उन्होंने कहा कि विगत 7 वर्षों में भारत की बदलती तस्वीर देशवासियों ने देखा हैं। लेकिन 7 वर्ष पूर्व वैश्विक मंच पर भारत की जो तस्वीर होनी चाहिए थी वह नहीं दिखी।
इससे पूर्व इससे पूर्व गृह एवं गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन वाराणसी के स्मारिका का विमोचन किया।
इस अवसर पर भारी उद्योग मंत्री डॉ0महेंद्र नाथ पांडे, गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, उपसभापति हृदय नारायण दीक्षित, उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग एवं दिव्यांगजन सशक्तिकरण मंत्री अनिल राजभर, पर्यटन मंत्री डॉ0नीलकंठ तिवारी, स्टाम्प मंत्री रविंद्र जायसवाल, विधायक सौरभ श्रीवास्तव, विधायक डॉ0अवधेश सिंह, विधायक सुरेंद्र नारायण सिंह सहित सांसदगण, सचिव राजभाषा, संयुक्त सचिव राजभाषा, कमिश्नर दीपक अग्रवाल, जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा के अलावा पूरे देश के अलग-अलग राज्यों से आये विद्वानगण उपस्थित रहे।


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