किशोरी की प्रथम माहवारी (मीनार्की) : मानसिक और शारीरिक बदलाव , बरते ये सावधानियां

किशोरी की प्रथम माहवारी (मीनार्की) : मानसिक और शारीरिक बदलाव , बरते ये सावधानियां

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– माहवारी में स्वच्छता का रखें विशेष ध्यान, रहें सजग
– प्रजनन अंगों की नियमित रूप से करें सफाई
– समस्या होने पर निकटतम स्वास्थ्य केंद्र में स्त्री रोग विशेषज्ञ से लें सलाह

वाराणसी । मासिक चक्र (माहवारी) एक प्राकृतिक तथा स्वाभाविक शारीरिक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया एक किशोरी के शरीर को भविष्य में गर्भधारण के लिए तैयार करती है। किशोरियों से इस सामान्य शारीरिक प्रक्रिया के विषय में बात करना जरूरी होता है, क्योंकि अधिकांश किशोरियों के मन में प्रथम माहवारी (मीनार्की) के बारे में विभिन्न प्रकार की आशंकायें होती हैं। इस मनोस्थिति को परामर्श के द्वारा दूर किया जाता है।
किशोरियों को प्रथम माहवारी (मीनार्की) के बारे में अवश्य जानकारी रखना चाहिये। माहवारी प्रजनन तंत्र के सही प्रकार से एवं स्वस्थ रूप से कार्य करने का संकेत हैं। माहवारी कम से कम 3 से 7 दिन तक रह सकती है, कभी-कभी 2 दिन कम ज्यादा हो सकती है। लेकिन किसी-किसी में यह अधिक दिन अथवा कम दिन भी रह सकती है। यदि माहवारी के दौरान शुरुआती 2-3 दिनों में वह 3 से 4 पैड प्रतिदिन प्रयोग करती हैं अथवा रक्तश्राव अधिक होता है तथा यदि माहवारी 7 दिनों से अधिक रहती है तो यह अधिक रक्तश्राव की स्थिति होती है। ऐसे में अपने नजदीकी सरकारी अस्पताल के डाक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिये।
माहवारी (मीनार्की) की प्रक्रिया के बारे में बात करते हुये वरिष्ठ परामर्शदाता एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ मधुलिका पांडे ने बताया कि माहवारी लड़कियों के यौन रूप से परिपक्व होने की शुरुआत का संकेत है। यह प्रायः यौन विकास के क्रम में शुरू होती है। तथा इस समय शारीरिक विकास चरम पर होता है। यह प्रक्रिया एक किशोरी के शरीर को भविष्य में गर्भधारण के लिए तैयार करती है। माहवारी स्त्री के प्रजनन अंग जोकि गर्भाशय कहलाता है से नियमित अंतराल पर रक्त तथा ऊतकों का श्राव है। प्रत्येक माह एक डिंब या अंडा हार्मोन के कारण किसी एक अंडाशय में परिपक्व होता है। यदि अंडा शुक्राणु के द्वारा निषेचित नहीं होता तो गर्भाशय कि आंतरिक परतें टूटना शुरू हो जाती हैं, यह टूटी हुई परतें मासिक रक्तश्राव के रूप में बाहर निकलती हैं। यह हर महीने चलता है तथा इसकी अवधि लगभग 20 से 30 दिन की होती है।
मासिक चक्र सामान्य रूप से लड़की के 10 से 14 वर्ष की आयु के बीच किशोरावस्था में पहुँचने पर आता है, और 45 से 55 वर्ष के बीच रजोनिवृत्ति (मेनोपाँज) होने तक आता रहता है। मासिक चक्र प्रत्येक 21 से 35 दिनों पर आता है आर 3 से 7 दिन तक रहता है जब तक दूसरी बार अंडा बनने की प्रक्रिया नहीं शुरू हो जाती है। मासिक चक्र औसतन 28 से 30 दिन का होता है।

माहवारी से पूर्व सामान्य बदलाव –
कुछ किशोरियाँ मासिक रक्तश्राव शुरू होने से कुछ दिन पहले असहज महसूस करती हैं। उनमें निम्न लक्षण हो सकते हैं जैसे स्तनों में दर्द, सिर दर्द, थकान, बदहजमी, कमर में दर्द तथा पेट का निचला हिस्सा भरा हुआ महसूस होना। किशोरियों को आश्वासन दें की चिंता की कोई बात नहीं है, क्योंकि ये लक्षण हर महीने हार्मोन्स में परिवर्तन के कारण होते हैं। तथा एक बार मासिक चक्र शुरू होने पर स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। उन्हें आराम करने की सलाह दें।

मासिक चक्र से संबन्धित समस्यायें –
इसमें मुख्यतः अधिक या अल्प रक्तश्राव, माहवारी के दौरान दर्द, आरटीआई/एसटी आई, पोलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओडी), 16 वर्ष तक माहवारी न आना, माहवारी हर माह न आना या ज्यादा दिन पर आना इत्यादि हैं।

उपाय–
उपर्युक्त समस्या होने पर अपने नजदीकी सरकारी अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श लें। पीसीओडी (ओवरी में गांठ होना) की समस्या होने पर अल्ट्रासाउंड कराना चाहिये। डाक्टर की परामर्श के अनुसार किशोरियों को गर्भाशय के कैंसर से बचने के लिए ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) का टीका जरूर लगवाना चाहिए। किशोरियों को समझाएँ की मासिक चक्र का क्रम शुरुआती कुछ वर्षों के बाद सामान्य हो जायेगा। ज्यादा समस्या होने पर किशोरियों को अपने निकटतम स्वास्थ्य केंद्र पर स्त्री रोग विशेषज्ञ को अवश्य दिखाना चाहिए।

माहवारी के दौरान स्वास्थ्य एवं स्वच्छता-
माहवारी के दौरान व्यक्तिगत स्वच्छता से किशोरियों को आराम एवं आत्मविश्वास महसूस होगा। इस दौरान नियमित स्नान करें। कब्ज से बचने के लिए नियमित ज्यादा पानी पिएँ तथा स्वास्थ्यवर्धक व पोषक आहार का सेवन करें। पौष्टिक आहार न लेने पर एनीमिया की संभावना बन सकती है। ऐसे में अपने ख़ून, सीरम प्रोलैक्टिन तथा टीएसएच की भी जांच करायें।

स्वच्छता बनाए रखने के लिए किशोरियाँ मुलायम सूती पैड या सैनिटरी पैड का इस्तेमाल कर सकती हैं। सूती कपड़े में सोखने की अच्छी क्षमता होती है। कपड़े या पैड को दिन में 2 से 3 बार आवश्यकतानुसार बदलना चाहिए। कपड़े तथा अन्तः वस्त्रों को साबुन तथा पानी से अच्छी तरह से धोकर धूप में सुखाना चाहिए। पैड का प्रयोग करने के पश्चात उसे एक कागज में लपेटकर नष्ट करना चाहिए। प्रजनन अंगों को नियमित रूप से साफ करना चाहिये।


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