कंप्यूट्रेसी -नेटीजन के सहारे होगा वर्चुअल रैली, डिजिटल अभियान

कंप्यूट्रेसी -नेटीजन के सहारे होगा वर्चुअल रैली, डिजिटल अभियान


– अजय कुमार तिवारी , वरिष्ठ पत्रकार

लखनऊ । वर्चुअल रैली, डिजिटल सम्पर्क, आँनलाइन प्रचार ये शब्द उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पर्याय के रूप प्रयोग किये जा रहे हैं। वर्चुअल रैली, डिजिटल सम्पर्क, आँनलाइन प्रचार का तात्पर्य है कि अब हम उत्तर प्रदेश वाले पूरी तरह से साक्षरता से आगे निकल चुके हैं। साक्षरता के लिए अंग्रेजी में लिटरेसी का प्रयोग होता है तो नागरिक के लिए सिटीजन। लिटरेसी और सिटीजन शब्द भी डिजिटल दुनिया के दौर आगे निकल चुका है। लिटरेसी अब कंप्यूट्रेसी बन गया है जिसका मतलब है कि डिजिटल दुनिया का साक्षरता हासिल होना। इसी प्रकार सिटीजन भी नेटीजन बन चुका है जिसका साफ संदेश है कि डिजिटल दुनिया का नागरिक। अब बात उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कंप्यूट्रेसी और नेटीजन का है। चुनाव आयोग ने रैलियों, सभाओं, रथयात्राओं पर रोक लगा दिया है। अब सभी चुनाव प्रचार डिजिटल मंच पर वर्चुअल ही होगा। डिजिटल मंच पर राजनीतिक दल अपने मीडिया सेल के माध्यम से लम्बे समय से दखल देते रहे हैं। सियासी दल सोशल मीडिया पर जहां वीडियो, आँडियो और टेक्स्ट संदेशों को दूसरों को प्रभावित करते रहे हैं तो दूसरी और इन वीडियो, आडियो और टेक्स्ट से हमलावर भी होते रहे हैं। ऐसे में सोशल मीडिया आरोप-प्रत्यारोप, फेक न्यूज का कबाड़खाना भी बन गया। अब चुनाव आयोग की घोषणा के बाद सभी को वर्चुअल माध्यम से ही मतदताओं के बीच पहुंचना है। राजनीतिक दल तो अपने मीडिया सेल को मजबूत कर चुके हैं लेकिन उपयोक्ताओं की स्थिति को देखना होगा। वर्चुअल संदेश, प्रचार उन्हीं तक पहुंच पायेगा जो इस दुनिया के खिलाड़ी हैं। जो डिजिटल मीडिया से दूर हैं उन तक वर्चुअल प्रचार नहीं पहुंच पायेगा। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में डिजिटल डिवाइड की खाई को पाटना होगा। डिजिटल डिवाइड की खाई इतना अधिक है कि अब सिटीजन और नेटीजन के बीच की दूरी को देखा जा सकता है। संदेश साफ है कि वर्चुअल रैली सिर्फ नेटीजन तक होगी सिटीजन तक पहुंचना मुश्किल होगा। सिटीजन तक तो सिर्फ पारम्परिक प्रचार ही पहुँचेंगे। हां, इतना अवश्य है कि चुनाव आयोग ने पांच लोगों की टोलियों में मैन टू मैन सम्पर्क, प्रचार की छूट दी है। यह सीधा सम्पर्क चुनाव को अवश्य प्रभावित करेगा।

वास्तविक प्रचार बनाम आभासिक प्रचार
चुनाव आयोग ने वर्चुअल प्रचार का संदेश दे कर जहां आभासिक मंच पर लोगों को लाने की कोशिश की है तो वहीं वास्तविक सम्पर्क अभियान चलाने की संभावना को बरकरार रखा है। चुनाव प्रचार के दौरान नागरिकों का सम्पर्क दो स्तर पर हो गया है। मतदाता भी दो वर्गों में बंट चुका है एक डिजिटल हो चुका है तो दूसरा अब भी डिजिटल नहीं है। वास्तविक बनाम आभासिक दुनिया की दुनिया बरकरार रहेगी। शहरों में जहां सबसे अधिक कम्प्यूटेसी है, डिजिटल दक्षता हासिल है तो वहीं गांवों में अभी भी कम्प्यूटेसी, डिजिटल प्रसार सीमित है। राजनीतिक दलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वास्तविक और आभासिक दोनों माध्यमों से मतदाताओं के बीच पहुंचना है।

मतदाताओं के लिए परख की चुनौती
वर्चुअल प्रचार अभियान उत्तर प्रदेश में शुरू हो चुका है। ट्वीटर, फेसबुक, यूट्यूब सहित दूसरों मंचों पर भी तेजी से राजनीतिक दल अपने मीडिया सेल से संदेश, प्रचार सामग्री देते रहे हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौरान झूठ और प्रलाप में बदल चुका है। मतदाताओं को यह तय करना मुश्किल होगा कि वह किस सामग्री पर विश्वास करें। वास्तविक मुद्दे, सही तथ्यों को भटकाने की कोशिश भी होगी। मतदाताओं को फेक न्यूज से बचना भी होगा।



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