
– एक जुलाई को होगी श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मामला पर वकील कमीशन भेजने की मांग पर सुनवाई
श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मामले में वाराणसी के ज्ञानव्यापी परिसर की तरह अधिवक्ता कमीशन से सर्वे कराए जाने की मांग को लेकर दाखिल प्रार्थनापत्र पर सुनवाई अब एक जुलाई को होगी। श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह ने यहां ईदगाह मस्जिद की जमीन पर दावा किया है। कहा कि वर्तमान में जो शाही ईदगाह है, वह वास्तव में भगवान केशवदेव का प्राचीन मंदिर है। जहाँ इसके अवशेष आज भी मौजूद हैं। फिलहाल ये मामला एक बार फिर से कोर्ट पहुंच चुका है । हिंदू पक्षकारों ने मांग की है कि इस मस्जिद परिसर के सर्वे के लिए एक टीम का गठन किया जाए जो मुआयना करके बताएं क्या इस मस्जिद परिसर में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां और प्रतीक चिन्ह मौजूद हैं जो ये बताते हैं कि यहां पर इस मस्जिद से पहले हिंदुओं का मंदिर हुआ करता था।
जानिये क्या है तथ्य
दावा है कि जिस जगह पर यह ईदगाह मस्जिद बनाई गई है वहीं पर कंस का वो कारागार था जहां पर श्री कृष्ण का जन्म हुआ था । मुगल सम्राट औरंगजेब ने साल 1669-70 के दौरान श्री कृष्ण जन्मभूमि स्थल पर बने मंदिर को तोड़ दिया और वहां पर इस ईदगाह मस्जिद का निर्माण करवा दिया था । दायर याचिका में ये भी सवाल उठाया गया है कि जब यह जमीन श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की थी तो आखिर श्री कृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान नाम की संस्था ने 1968 में ईदगाह कमेटी के साथ मस्जिद को न हटाने का फैसला किस आधार पर कर लिया। दरअसल श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के नाम से एक सोसाइटी 1 मई 1958 में बनाई गई थी। इसका नाम 1977 में बदलकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान कर दिया गया था। 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ एवं शाही मस्जिद ईदगाह के प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता किया गया कि 13.37 एकड़ भूमि पर श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और मस्जिद दोनों बने रहेंगे। फिर 17 अक्टूबर 1968 को यह समझौता पेश किया गया और 22 नवंबर 1968 को सब रजिस्ट्रार मथुरा के यहां इसे रजिस्टर किया गया था। ये विवाद कुल मिलाकर 13.37 एकड़ भूमि के मालिकाना हक का है। जिसमें से 10.9 एकड़ जमीन श्री कृष्ण जन्मस्थान के पास और 2.5 भूमि शाही ईदगाह मस्जिद के पास है।
दूसरे पक्ष की दलील
मुस्लिम पक्ष की तरफ से अदालत में एक और दलील जो प्रमुखता से पेश की जा रही है वह है 1991 का वर्कशिप एक्ट । मुस्लिम पक्ष के मुताबिक इस एक्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि देश में 1947 से पहले धार्मिक स्थलों को लेकर जो स्थिति थी वह उसी तरह बरकरार रखी जाएगी और उसमें कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी । हालांकि इसमें राम जन्मभूमि का विवाद एक अपवाद था। वहीं हिंदू पक्षकार और वकील इस दलील का ये कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि ऐसा नहीं है कि यह मामला अचानक दायर हुआ। वर्कशिप एक्ट में भी कहा गया है कि अगर किसी मामले में लगातार अदालतों में मामले दायर होते रहे हैं या लंबित है तो वह मामला 1991 के वर्कशिप एक्ट के तहत नहीं आएगा ।
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