नवरात्रि के नवमी तिथि को सिद्धिदात्री स्वरूप की होती है पूजा,जानें पूजा विधि और माता महत्व

नवरात्रि के नवमी तिथि को सिद्धिदात्री स्वरूप की होती है पूजा,जानें पूजा विधि और माता महत्व

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नवमी तिथि व शुभ मुहूर्त
पारण का समय 4 अक्टूबर 2022 को दोपहर 02 बजकर 20 मिनट के बाद
नवमी तिथि प्रारम्भ – 3 अक्टूबर 2022 को शाम 04:37 बजे से
नवमी तिथि समाप्त – 4 अक्टूबर 2022 को दोपहर 02:20 बजे तक

– आज शारदीय नवरात्र की नवमी तिथि है। आज माता के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा हो रही है। जानिए माता सिद्धिदात्री की पूजा के विधि विधान और इस दिन का महत्व

शारदीय नवरात्र 2022 में भक्त मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना करते हैं। नवमी के दिन माता की पूजा आराधना करने का अलग ही महत्व है। मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु वर्ष में दो बार 9 दिन का उपासना रखते हैं। पहला चैत्र नवरात्र के नाम से जाना जाता है, वहीं दूसरा आश्विन माह में किया जाता है। जिसको शारदीय नवरात्र कहा जाता है। इस वर्ष शारदीय नवरात्र की शुरुआत 26 सितंबर से हुई। आज माता के नौवें रूप की पूजा हो रही है। वाराणसी में माँ सिद्धिदात्री का मंदिर सीके 6/28 बुलानाला में स्थित है।

सर्व सिद्धियां देती हैं मां सिद्धिदात्री
मां सिद्धिदात्री सर्व सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी हैं। मां की कृपा से उनके उपासक या भक्त के कठिन से कठिन कार्य भी चुटकी में संभव हो जाते हैं। नवरात्रि में मां भगवती के सभी 9 रूपों की पूजा अलग-अलग दिन की जाती है। मान्यता है कि इन नौ दिनों में माता की पूजा अर्चना करने से सुख, शांति, यश, वैभव और मान-सम्मान हासिल होता है।महानवमी का दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित होता है। मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उन्हें यश, बल और धन भी प्रदान करती हैं। इस दिन दुर्गा पूजा की शुरुआत महास्नान और षोडशोपचार पूजा से होती है। महा नवमी पर देवी दुर्गा की पूजा महिषासुर मर्दिनी के रूप में की जाती है जिसका अर्थ है भैंस दानव का विनाशक। ऐसा माना जाता है कि महा नवमी के दिन दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध किया था।

मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि
माता के नौवें रूप सिद्धिदात्री की भी पूजा मां के अन्य रूपों की तरह ही की जाती है, लेकिन इनकी पूजा में नवाह्न प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ किस्म के फूल और नौ प्रकार के फल अर्पित करने चाहिए। पूजा में सबसे पहले कलश और उसमें मौजूद देवी देवताओं की पूजा करें। इसके बाद माता के मंत्र का जाप करें।

मां सिद्धिदात्री का मंत्र
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

कन्या पूजन का महत्व
हिंदू धर्म के अनुसार नवरात्रों में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। मां भगवती के भक्त अष्टमी या नवमी को कन्याओं की विशेष पूजा करते हैं। नौ कुंवारी कन्याओं को सम्मानित ढंग से बुलाकर उनके पैर धोकर आसन पर बैठा कर भोजन कराकर सबको दक्षिणा और भेंट दी जाती है।कन्या पूजन के नियम: श्रीमद् देवीभागवत के मुताबिक कन्या पूजन के कुछ नियम भी हैं। इनमें एक साल की कन्या को नहीं बुलाना चाहिए। क्योंकि वह कन्या गंध भोग आदि पदार्थों के स्वाद से बिल्कुल अनजान रहती है। ‘कुमारी’ कन्या वह कहलाती है जो दो वर्ष की हो चुकी हो, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छ वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चण्डिका,आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती हैं।

पूजन विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
मां की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं.
स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें.
मां को रोली कुमकुम भी लगाएं.
मां को मिष्ठान और पांच प्रकार के फलों का भोग लगाएं.
मां स्कंदमाता का अधिक से अधिक ध्यान करें.
मां की आरती करें.


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